भारत सरकार को अब खुद ही कुछ सोचना चाहिए. उनके विभाग महंगाई के मुद्दे पर आईना दिखा रहे है...!
भारत सरकार को अब खुद ही कुछ सोचना चाहिए| उनके विभाग महंगाई के मुद्दे पर आईना दिखा रहे है| भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति में वर्ष 2014 के बाद अभूतपूर्व वृद्धि होकर यह अप्रैल माह में 7.79 प्रतिशत हो गई। इसी तरह, मौसम विभाग के मुताबिक पिछले महीने भारत का मासिक और प्रतिदिन का उच्चतम तापमान बढ़कर 39 डिग्री के पार जा पहुंचा था |
पिछले 24 घंटे जरुर मौसम की मार से निजात के संकेत दे रहे हैं| ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के बहु-आयामीय सूचकांक-2021 के अनुसार भारत में लगभग 22.5 प्रतिशत लोग अत्यंत गरीब हैं और रोजाना 2 डॉलर प्रतिदिन से भी कम पर गुजारा करके किसी तरह अपना वजूद कायम रखने की जद्दोजहद कर रहे हैं।
हकीकत यह है कि आंकड़ों में दिखाई गई इस आय आधारित गरीबी से कहीं ज्यादा बहुआयामी दरिद्रता उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनयापन में व्याप्त हो चुकी है। कोविड दुष्काल, बेरोजगारी और उच्च मुद्रास्फीति की वजह से और बड़ी संख्या में भारतीय, संपूर्ण गरीबी के जाल में जा फंसे हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर आंकी गई खुदरा और थोक मुद्रास्फीति में पिछले कुछ महीनों से लगातार बढ़ोतरी हुई है। इस साल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जनवरी में ६.०१ फरवरी में 6.07 मार्च में 6.95 तो अप्रैल में 7.79 प्रतिशत जा पहुंचा।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ो के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक जो कि जनवरी में 13.68 प्रतिशत था, वह मार्च माह में 14.5 प्रतिशत हो गया। हालांकि पिछले कुछ समय से रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक मुद्रस्फीति में और इजाफा किया है लेकिन भारत में बढ़ते ईंधन और खाद्य मूल्यों से बनी मुद्रा स्फीति पहले से चली आ रही है और कीमतें स्थिर करने के लिए किए गए सरकारी प्रयास तब हुए जब गरीब महंगाई से हलकान हो गया,पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में छुट का लाभ अमीर तबके को ही मिला।
भारत के गरीबों को महंगाई की मार सबसे ज्यादा सहनी पड़ रही है, ग्रामीण क्षेत्र में जो उपभोक्ता खाद्य मूल्य मार्च, 2021 में 3.94 प्रतिशत था वह अप्रैल, 2022 में 7.66 प्रतिशत हो गया। अगर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाने-पीने की वस्तुओं की बात करें तो खाद्य तेल और घी के मूल्य में बढ़ोतरी 24.7 प्रतिशत, ईंधन तेल, हल्के परिवहन और संचार क्षेत्र में वृद्धि 11 प्रतिशत हुई।
अभी भी भारत में ईंधन पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पेट्रोल और डीजल पर कर वसूलने से घरेलू कीमतें बहुत ज्यादा है। वस्तु की उत्पादन लागत और बिक्री मूल्य ज्यादा होने के पीछे मुख्य वजह ऊंची खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति दर है, जिसकी वजह से आगे थोक मुद्रास्फीति में इजाफा होता है।
मुख्य मुद्रास्फीति दर, जिसमें खाद्य और ईंधन के मूल्य में रोजाना के उतार-चढ़ाव शामिल नहीं हैं, वह आधिकारिक सीमा पार कर चुकी है और इन हालात में मौद्रिक नीतियां त्वरित परिणाम देने में असफल दिख रही हैं। मौद्रिक नीतियां अपने आप में खुदरा मुद्रास्फीति को थामने की गारंटी नहीं है जब तक कि सरकार एक ओर ईंधन कर में अपने हिस्से की कटौती करके रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें कम न करवाए और दूसरी तरफ आयात से खाद्य वस्तुओं का मूल्य नीचे न लाए। वास्तव में, मौद्रिक नीति तभी थोक मूल्य सूचकांक नीचे लाने में सफल हो सकती है जब आर्थिक गतिविधियों की एवज पर खुदरा मुद्रास्फीति कम न हो।
रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत कर देने से खुदरा मूल्य में कमी होने की बजाय बैंकों से लिए कर्ज की सूद दर में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियों में कमी आएगी। रेपो दर में वृद्धि भारत की आर्थिक प्रगति को धीमा करेगी।
मुद्रा स्फीति बढ़ते रहने का असर बच्चों, महिलाओं और गरीबों के स्वास्थ्य और पोषण गुणवत्ता पर जारी रहेगा क्योंकि उनकी प्रतिदिन की कैलोरी जरूरतें पूरी न होंगी। इसलिए खाद्य एवं ईंधन मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने, ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने, आय असमानता घटाने, गरीब की सहायता, आवश्यक वस्तुओं के सार्वजनिक वितरण को सुदृढ़ करने और औसत दिहाड़ी मजदूरी बढ़ाने के लिए संवेदनशील सरकारी दखलअंदाजी जरूरी है। इन नीतिगत उपायों से जीवनयापन की लागत और गरीब पर मुद्रास्फीति का प्रभाव काफी कम किया जा सकता है। आंकड़े सरकारी फाइलों पर है, और नीति सरकार के हाथ में, गरीबों को तो फ़िलहाल दिन में तारे नजर आ रहे हैं|