पहले नहीं घटाई, अब घटाई टैक्स से कमाई
किसी भी मर्ज को समझने के लिए आजकल बहुत सी आधुनिक मशीनें हैं,लेकिन जनता की नब्ज समझने के लिए चुनाव परिणाम के छिपे संदेश समझने की स्किल की जरूरत होती है. देश में 3 लोकसभा और 29 विधानसभा चुनाव के परिणाम आए और राजनेताओं को जनता की नब्ज समझ आ गई. जनता ने जरा सी आंख क्या दिखाई, दूसरे दिन ही राजनेताओं को दिख गई महंगाई और महंगाई के टूल किट पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स घटा दिया गया.
केंद्र सरकार ने अपनी एक्साइज ड्यूटी घटाई ,तो राज्य सरकारों ने अपने टैक्स घटाएं. मध्यप्रदेश में केंद्र और राज्य के टैक्स घटाने से पेट्रोल 11 रुपए 91 पैसे और डीजल 17 रुपए 24 पैसे सस्ता हो गया है. देश के 22 राज्यों ने अपने टैक्स घटाएं हैं. जिन राज्यों ने अभी नहीं घटाया है, उन्हें भी घटाना ही पड़ेगा, क्योंकि जनता ने महंगाई पर अभी तो अंगड़ाई ली है. अगर वह महंगाई के खिलाफ खड़ी हो गई, तो सिंहासन डोल जाएंगे.
पेट्रोलियम पदार्थों और रसोई गैस पर केंद्र और राज्य का टैक्स तथा तेल कंपनियों एवं डीलर का कमीशन मिला कर पेट्रोल और डीजल की मूल कीमतों से दो गुनी कीमत पर पेट्रोल और डीजल मिल रहा है. पेट्रोलियम पदार्थ सरकार को आयातित करने पड़ते हैं. जो भी अंतरराष्ट्रीय कीमत होती है ,उस पर देश की किसी भी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता, लेकिन केंद्र और राज्य के टैक्स जरूर तर्कसंगत और संतुलित होने चाहिए.
जनता पर तरह-तरह के टैक्स लगाए जाते हैं और जनता उन्हें भरती है. उसी से सरकारों एवं विकास योजनाओं का संचालन होता है, पेट्रोल डीजल पर तत्काल और खरा सोने जैसा होता है. जनता पेट्रोल पंप पर गई और सरकारों को टैक्स मिला. बाकी टैक्स में तो चोरी की भी गुंजाइश होती है. लेकिन पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स सरकारों के लिए फुलप्रूफ होता है.
पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स लादने के लिए सभी सरकारें जिम्मेदार हैं .देश का कोई भी राजनीतिक दल, जो सरकार में रहा है , उसने पेट्रोल और डीजल पर टैक्स बढ़ाया है. कांग्रेस की सरकार ने तो इस टैक्स को मूल्य आधारित कर दिया है. पेट्रोलियम पदार्थों की जैसे ही अंतरराष्ट्रीय कीमतें बढ़ती हैं, उसी अनुपात में टैक्स भी प्रतिशत के आधार पर बढ़ जाता है. यह राजनेताओं का सोचा-समझा हथकंडा था. पहले टैक्स बढ़ाने या घटाने के लिए सदन में विधेयक लाना पढ़ते थे. टैक्स बढ़ाने पर राजनेताओं को आलोचना का शिकार बनना पड़ता था. जब से मूल्य आधारित टैक्स शुरू हुआ, तब से हर दिन दरों में उतार-चढ़ाव होता रहता है.
उपचुनाव में जनादेशको भाँपकर भविष्य की कुर्सी के लिए टैक्स में कमी चारे जैसा है. . हो सकता है, बाद में फिर से टैक्स बढ़ा दिया जाए. मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने ऐसा ही किया था. चुनाव घोषणा-पत्र में पेट्रोल डीजल पर टैक्स कम करने का वायदा किया और सरकार में आने पर कम करने की बजाय 5% वेट बढ़ा दिया. पूर्व अनुभव के आधार पर ही यह धारणा मजबूत हो रही है कि फिर से भविष्य में इससे ज्यादा टैक्स लादा जा सकता है.
चलो किसी भी स्थिति में सही, डीजल और पेट्रोलकुछ सस्ता हुआ है. जनता को उसका लाभ मिला है. कुछ लोग इसे सरकारों का जनता को “गिफ्ट” बता रहे हैं . प्रजातंत्र के वास्तविक मालिक को कौन सी सरकार गिफ्ट देगी? गिफ्ट दिया जाता है अपने निजी धन से. सरकारी धन. सरकारी धन से जनता का हक दिया जाता है उसे गिफ्ट कहना जायज नहीं है.
पेट्रोल और डीजल के जो रेटकम हुए हैं, उसका लाभ सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने वाले लोगों को भी मिलना चाहिए, मालवाहक वाहनों में महंगे डीजल के कारण जो दरें बढ़ा दी गई थीं, उन्हें भी कम किया जाना चाहिए अन्यथा सरकारीरियायत का लाभ वास्तविक जनता को नहीं मिल पाएगा. शहरों में सार्वजनिक परिवहन के साधनों बस ऑटो के भाड़े भी पेट्रोल डीजल के नाम पर जबरदस्त बढ़ाए गए थे. अब जब पेट्रोल और डीजल सस्ता हो गया है, तो थोड़ी भाड़ा दरें भी कम करने के लिए सरकार को सख्ती से कदम उठाना चाहिए.
पेट्रोल डीजल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि से परिवहन लागत बढ़ने के कारण उपभोग की चीजें भी जो महंगी हो गई थीं. उनकी दरों में भी कमी परिलक्षित होना चाहिए, तभी टैक्स में कमी का लाभ नीचे तक सभी के पास पहुंचेगा., सरकार को इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करना चाहिए, नहीं तो रियायत का लाभ उठाने में कुछ लोग ही सफल होंगे.
वही पार्टी जनता की नब्ज समझ सकती है, जिसका पब्लिक कनेक्ट हो और भाजपा इस में सिद्धहस्त है.