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मंडल के हाथ में कमंडल, सामाजिक समरसता के लिए शुभ मंगल, यूपी चुनाव में निखरेगा आभामंडल.. सरयूसूत मिश्र 

सार

यूपी चुनाव काफी महत्वपूर्ण हैं. यह देश की राजनीती को भी प्रभावित कर सकते हैं. आज भारतीय राजनीति की धुरी ऐसी बदली कि मंडल के हाथ में कमंडल पहुंच गया है. भाजपा कभी सवर्णों की पार्टी मानी जाती थी. उसमें अब अमूलचूल बदलाव आ गया है. पार्टी संगठन और सरकार में पिछड़े और दलित वर्गों का बोलबाला है...

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विस्तार

यूपी चुनाव राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी काफी महत्वपूर्ण हैं| यूपी के परिणाम देश की राजनीती को भी प्रभावित कर सकते हैं| पांचों राज्यों के चुनावों में जातीय राजनीति का विकराल रूप दिखाई पड़ रहा है| चुनाव को अगड़े पिछड़े के बीच तब्दील कर राजनीतिक लाभ के प्रयास चरम पर हैं| चुनावों को मंडल वर्सेस कमंडल करने की कोशिशें तेज हो गई हैं| राजनीति आज चुनावों के समय का मामला नहीं है| अब यह 24X7 का प्रोफेशन हो गया है| सामाजिक बदलावों और राजनीतिक स्थिति पर सतत पैनी नजर और प्रोफेशनल प्रबंधन के बिना राजनीतिक सफलता नामुमकिन हो गई है| विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के दौर में शुरू हुई मंडल वर्सेस कमंडल की राजनीति आज फलीभूत हो रही है| इसका सबसे ज्यादा फायदा भाजपा ने उठाया है|

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सामाजिक पकड़ और भविष्य की नब्ज को समझने की क्षमता से भाजपा की रणनीतियां और नेतृत्व बदलते रहे हैं| आज भारतीय राजनीति की धुरी ऐसी बदली कि मंडल के हाथ में कमंडल पहुंच गया है| देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंडल वर्ग की OBC जाति से आते हैं| इस प्रकार देश की सत्ता का कमंडल आज मंडल के हाथ में पहुंच गया है| यूपी चुनाव में ओबीसी दलित और अति पिछड़ी जाति की राजनीति करने वाले उम्र दराज नेता जातियों के  शोषण की बात को उठाकर जातीय कड़ाही में उबाल लाने की कोशिश कर रहे हैं| जब ओबीसी के पास ही सत्ता पहुंच गई है तब शोषण की बात विश्वास योग्य कैसे हो सकती है? मंडल से कमंडल ने जब मात खाई थी, तभी कमंडल में मंडल को लाने के सुनियोजित प्रयास किए गए, जिनके नतीजे आज दिख रहे हैं| भाजपा कभी सवर्णों की पार्टी मानी जाती थी| उसमें अब अमूलचूल बदलाव आ गया है| पार्टी संगठन और सरकार में पिछड़े और दलित वर्गों का बोलबाला है|

उत्तर प्रदेश के 75 जिले के भाजपा जिला अध्यक्षों में 65 प्रतिशत पिछड़े और दलित वर्ग के हैं| यह अनायास नहीं है, बहुत सोच समझ कर किया गया है, विधायक लोकसभा और राज्यसभा सदस्य, केंद्रीय मंत्रिमंडल और राज्यों के मंत्रिमंडल, पंचायतों तथा स्थानीय संस्थाओं और भाजपा शासित राज्यों के निगम मंडलों में, ओबीसी और दलित बहुतायत में हैं| जो अपने आप नहीं हो गया है, इसको योजनाबद्ध ढंग से किया गया है| जो संवैधानिक पद है जैसे राष्ट्रपति, वहां भी भाजपा ने सामाजिक न्याय की स्थापना की है| भाजपा सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के जरिए दलितों और ओबीसी को जोड़ने का कार्य किया गया है| कमंडल से मंडल की ओर  बढ़ती भाजपा ने शुरुआत में इन जातियों के स्थापित नेताओं को अपने साथ जोड़ा और सफलता हासिल की| भाजपा यह जानती थी कि बाहर से आने वाले नेता उसकी विचारधारा और सिद्धांतों में दीक्षित नहीं है| सत्ता भोगी यह नेता कभी भी नया ठिकाना तलाश सकते हैं|

जातीय ताकत वाले नेता सत्ता, साधन और राजनीतिक खुरचन की हिस्सेदारी में भी जातीय बंदूक का इस्तेमाल करते हैं| यूपी में स्वामी प्रसाद मौर्य और अन्य नेताओं के साथ ऐसा ही हुआ, उम्र दराज बुजुर्ग भटके हुए नेता बुझने के पहले भभकते ही हैं| भाजपा छोड़कर दूसरे दलों में गए नेता ऐसे ही भभक रहे हैं| भाजपा को इन नेताओं से नुकसान होने की संभावना कम है, क्योंकि हर जिले और विधानसभा क्षेत्र में इन जातियों के नए नेतृत्व विकसित कर दिए गए हैं| विधानसभा क्षेत्रों में अधिकांश स्थान पर सभी प्रमुख दलों के प्रत्याशी इन्हीं जातियों के हैं| यहीं से भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति उसे प्लस करेगी|  “मंडल वर्सेस कमंडल” इन चुनावों में हिंदुत्व और कमंडल का लाभ बीजेपी के प्लस में रहेगा, देश में बीजेपी के उभार को बाकी राजनीतिक दल, हिंदू मुस्लिम राजनीति से जोड़ते हैं, इसलिए देश में लोकतंत्र और मुस्लिमों के खतरे का डर दिखाकर  राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं|

मुस्लिमों को डराते हैं कि भाजपा हिंदू राष्ट्र घोषित कर देगी, भाजपा हिंदू राष्ट्र क्यों घोषित करेगी? प्रैक्टिकली हिंदुओं के राष्ट्र हिंदुस्तान में राजनीतिक सत्ता हिंदुओं के हाथ में ही है| ऐसा कौन सा राज्य है जहां नेतृत्व मुस्लिमों के हाथ में है| यूपी में भी चुनाव सनातन धर्मियों के बीच में ही हो रहा है| देश की राजनीति में आज मंडल वर्ग के नेतृत्व के मुकाबले के लिए जनेऊ दिखाने, मंदिर मंदिर दर्शन करने, का दिखावा कौन लोग कर रहे हैं? भाजपा ने आज देश में इतना तो कर ही दिया है कि कोई भी नेता या दल हिंदुओं के खिलाफ राजनीति का दुस्साहस नहीं कर सकता| यूपी चुनाव में ऊपरी तौर से जातीय राजनीति हावी दिखती है, लेकिन भारत में जातियां कितनी भी हों, जीवन पद्धतियां दो ही हैं “हिंदू और मुस्लिम”|

हिंदुत्व की जीवन पद्धति भारत की आत्मा है, भाजपा ने उसी आत्मा को पहचाना और इस पर चलते हुए सामाजिक समरसता को अपनाया है| आज विभिन्न जातियों को हिंदुत्व के विरुद्ध खड़े होने के लिए कुछ दल  उकसाते हैं, वह हिंदुत्व को सवर्ण से जोड़कर बताते हैं, जबकि मुस्लिमों और ईसाइयों को छोड़कर हर धर्म और जाति की जीवन पद्धति हिंदुत्व है| हिंदू देवी देवताओं, पूजा पद्धति और तीर्थ स्थलों में उनका जीवन बसता है| कोई चाहे तो वह सवर्ण हिंदुत्व, ओबीसी हिंदुत्व, दलित हिंदुत्व और हिन्दुओं की हर जातियों की अलग-अलग हिंदू जीवन पद्धति दर्शा सकता है| इसमें हिंदुत्व जीवन पद्धति कॉमन है यही कॉमन जीवन पद्धति और संस्कृति का नरेटिव और राजनीतिक स्वरूप भाजपा अपना चुकी है|

देश में भाजपा की राजनीतिक सफलता जातिय राजनीति और हिंदुत्व का मिलाजुला स्वरूप रहा है| पांच राज्यों के चुनाव खासकर उत्तर प्रदेश में मंडल के हाथ कमंडल की राजनीति उभरेगी| इस राजनीति का आभामंडल और अधिक चमकेगा| भाजपा से टूटने वाले जातीय नेताओं को लेने वाले सेकुलर दल, मुस्लिमों के साथ उनका सामंजस्य कैसे बनायेंगे, जो नेता भाजपा की सरकार में  पोषित रहे हैं, उनको क्या मुस्लिम स्वीकार करेंगे? सामाजिक समरसता के साथ कमंडल हाथ में लेकर, मंडल की राजनीति इतनी जल्दी कम कमजोर होगी ऐसा नहीं ही लगता|