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गंगा पर राजनीतिक दुराग्रह छोड़ बात करें 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 10 Oct

सार

यह बताना ज़रूरी है, बनारस में गंगा के रविदास घाट से रवाना होकर ‘गंगा विलास’ क्रूज बिहार, बंगाल और बांग्लादेश होते हुए असम के डिब्रूगढ़ पहुंचेगा..!

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विस्तार

प्रतिदिन विचार-राकेश दुबे                                        

17/01/2023 

शायद ही देश में कोई ऐसा जानकार होगा, जो यह नहीं जानता है कि पूर्वी एशिया के तमाम छोटे देश विदेशी पर्यटकों के जरिये जो विदेशी मुद्रा हासिल करते हैं, उसके मुकाबले में भारत बहुत पीछे हैं। इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि पर्यटन संस्कृति अपने साथ अपसंस्कृति भी लाती है। इसके बावजूद वैश्वीकरण के दौर में विदेशी नकद-नारायण की अपनी महिमा है, जिसकी त्रासदी कोरोना संकट के बाद श्रीलंका समेत तमाम देशों ने भुगती भी। फिर भी भारत बनारस से बांग्लादेश होते हुए असम तक की लंबी यात्रा पर चलने वाले दुनिया के सबसे लंबे क्रूज ‘गंगा विलास’ का जलावतरण निस्संदेह भारतीय पर्यटन जगत में एक कदम है। 

यह बताना ज़रूरी है, बनारस में गंगा के रविदास घाट से रवाना होकर ‘गंगा विलास’ क्रूज बिहार, बंगाल और बांग्लादेश होते हुए असम के डिब्रूगढ़ पहुंचेगा। यह यात्रा 51 दिन में पूरी होगी और विभिन्न राज्यों के पचास महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों से गुजरेगी। इसी सबके बीच इसका विरोध भी शुरू हुआ है। वैसे तो विरोध की आवाजें गैर भाजपा शासित राज्यों व विपक्षी दलों की तरफ से हैं। विरोध की तल्ख टिप्पणी कुछ दिनों पहले भाजपा गठबंधन से अलग हुए जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह की तरफ से आयी है। उन्होंने गंगा में बाढ़ से भरने वाली गाद तथा क्रूज पर होने वाले खर्च पर सवाल उठाये हैं। वहीं सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इसके चलने से निषाद समाज को होने वाले नुकसान की बात कही है। जिस पर भाजपा नेता कह रहे हैं कि इस तर्क से तो नदी पर पुल भी नहीं बनने चाहिए। निस्संदेह, तार्किक आधार पर किसी कदम का विरोध जरूर होना चाहिए, लेकिन वजह राजनीतिक दुराग्रह न हो।

इसके बावजूद,गंगा विलास क्रूज को लेकर अंतर्राष्ट्रीय जगत में खासा उत्साह है। इस बार की यात्रा में शामिल 36 पर्यटकों में से 32 स्विट्जरलैंड के हैं और अगले दो साल के लिये इसकी बुकिंग पूरी हो चुकी है। केंद्र सरकार भी क्रूज की विश्वस्तरीय सुविधाओं का दावा कर रही है। बताया जा रहा है कि क्रूज में सवार यात्री भारत व बांग्लादेश के 27 रिवर सिस्टमों व सात नदियों से गुजरेंगे। कलकत्ता शिपयार्ड में तैयार क्रूज को स्वदेशी तकनीक व साज-सज्जा तथा वास्तुकला के सांचे में ढाला गया है। यात्रा के लिये जरूरी तमाम आधुनिक सुख-सुविधाएं इसमें उपलब्ध हैं। इस यात्रा का सफर पांच राज्यों से होता हुआ 51 दिन बाद डिब्रूगढ़ में संपन्न होगा। इसमें 15 दिनों का बांग्लादेश में होने वाला पड़ाव भी शामिल है।

बहरहाल विदेशी सैलानी इस दौरान वैश्विक धरोहरों, राष्ट्रीय पार्क व दर्शनीय स्थलों से रूबरू होंगे। केंद्र सरकार का कहना है कि विदेशी यात्री गंगा-विलास के जरिये हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व विविधता से जुड़ सकेंगे। निस्संदेह, यदि इस नये प्रयास से पर्यटन व रोजगार को बढ़ावा मिलता है तो अच्छी बात है, लेकिन सत्ताधीशों को ध्यान रखना चाहिए कि गंगा करोड़ों लोगों की आस्था की प्रतीक है, भोग विलास की नहीं। वहीं व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये गंगा के पर्यावरण पर प्रतिकूल असर भी नहीं पड़ना चाहिए। खासकर गंगा की डाल्फिन और अन्य जलचरों का प्राकृतिक अधिवास बाधित न हो।