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कुरैशी को सच का सामना करने की शक्ति दे परवरदिगार ? ऐतिहासिक भूलों को करना होगा स्वीकार! भूत ढोना कैसे बनता है भविष्य के लिए अंधकार ? सरयूसुत मिश्र

सार

अन्याय, अत्याचार और अनाचार का कोई मजहब नहीं होता| कश्मीर और भारत देश बदल रहा है| नए भारत के इस बदलाव को जो लोग महसूस नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें अब देश में राजनीतिक संरक्षण मिलने की संभावना न्यूनतम होती जा रही है..!

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विस्तार

देश में मज़हबी कट्टरता की बयार एक खतरनाक संकेत दे रही है| यूपी सहित पांच राज्यों  के चुनाव परिणामों में भाजपा की चार राज्यों में विजय से मुस्लिम परस्त राजनीति में निराशा से राजनीतिक कट्टरता का अजीब दौर दिखाई पड़ रहा है| “कश्मीर फाइल्स फिल्म” ने कश्मीरी पंडितों के दर्द को हिंदुस्तान का दर्द बना दिया है| कश्मीरी पंडितों ने जो कुछ भोगा था उसके क्रूर दृश्यों को फिल्म में देखकर, हिंदुओं में जहां राजनीतिक एकीकरण की भावना बढ़ी है, वही मुस्लिम कश्मीर की सच्चाई को नकारने अथवा कमतर करके बताने की कोशिश कर रहे हैं|

ऐसी आवाजें भी उठ रही हैं कि इस फिल्म के जरिए देश में सांप्रदायिक विभाजन को राजनीतिक मकसद से बढ़ाया जा रहा है| मुस्लिम परस्त राजनीतिक दल और बुद्धिजीवी सच का सामना करने से क्यों पीछे हट रहे हैं ? आज सर्वाधिक उपयुक्त समय है कि कश्मीरी पंडितों के दर्द को सभी मजहब के लोग सोचें समझें और स्वीकार करें, उन्हें उनका स्वर्ग कश्मीर फिर से लौटाने का समर्थन और सहयोग करें| आज जमाना छिपने छिपाने का नहीं रहा, सोशल मीडिया और इंटरनेट के जमाने में सब कुछ खुल गया है|  अब ना तो हिजाब से  चेहरे ढककर  लड़कियों को पीछे धकेला जा सकता है, और ना ही  मजहबी तुष्टीकरण को राजनीतिक हिजाब से ढका जा सकता है|

“वसुधैव कुटुंबकम” के सनातन संविधान पर चलने वाला भारत, अपने वतन के किसी भी मजहब के व्यक्ति को क्या कभी अलग-थलग कर सकता है ? हिंदुस्तान की गुलामी के इतिहास को हिंदुस्तानियों की कायरता मानने वालों को, अब शायद जवाब मिल रहा है| “काफ़िर” और “गजवा-ए-हिंद” की सोच को हिंदुस्तान पूरी ताकत से नकार चुका है| ऐसा नहीं है कि ऐसी सोच के खिलाफ दूसरे धर्म के लोग ही सक्रिय हैं| बल्कि उसी मजहब में विरोध की आवाजें बुलंद हो रही है|

तीन तलाक पर मुस्लिम महिलाओं की बुलंद आवाज इसका उदाहरण है| उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में भाजपा के कार्यकर्ता “बाबर” की उनके ही रिश्तेदारों द्वारा क्रूर हत्या की घटना मजहबी सोच पर शिक्षित युवाओं की नई सोच के प्रतीक के रूप में इतिहास में दर्ज हो गई है| विवादित बाबरी ढांचे के स्थान पर राममंदिर के निर्माण के साथ भारत के सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना शुरू हुयी|  भाजपा के “बाबर” का बलिदान मजहबी कट्टरता के खिलाफ मंगल मिशन का लांच माना जा सकता है|

लोकतांत्रिक देश में किसी राजनीतिक दल को अछूत मानकर, अपनी आबादी की ताकत के आधार पर, राजनीतिक दलों के पक्ष में मताधिकार का उपयोग कर, सिस्टम में कट्टरता का लाभ उठाने की रणनीति, अब शायद भारत में समाप्त करने की शुरुआत हो चुकी है| यूपी चुनाव परिणाम इस बात के स्पष्ट संदेश दे रहे हैं कि मुस्लिम समाज ने एक तरफा होकर, भाजपा के खिलाफ समाजवादी पार्टी के पक्ष में, मतदान किया था| इतनी आक्रामकता के बावजूद मुस्लिम समर्थक दल सत्ता तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो सका|

चाहे राजनीतिक लोग हों या किसी भी समाज के जागरूक नागरिक, वह सब यह समझने में भूल कर रहे हैं कि क्रिया की प्रतिक्रिया पहले भले ही धीरे-धीरे होती थी, लेकिन अब ऐसी स्थिति बन गई है कि प्रतिक्रिया में लोग एकजुट हो रहे हैं, यही एकजुटता नयी राजनीतिक परिस्थितियों को भारत में मजबूत कर रही है| ऐसा नहीं है कि कोई भी दल किसी भी समाज को अलग रखना चाहता है, लेकिन मिलजुल कर जीवन यापन करने की भारतीय संस्कृति को तो, भारत में रहने वाले हर व्यक्ति को मानना और अपनाना ही पड़ेगा|

पिछले दिनों भारत के पूर्व  मुख्य चुनाव आयुक्त  कुरैशी भोपाल में एक वक्तव्य देते हैं कि हिंदू मुस्लिमों को बांटना चाहते थे “आतंकी” अब ये काम “कश्मीर-फाइल्स” कर रही है|  कोई भी फिल्म घटनाओं के दृश्यों को दिखाती है| अगर कश्मीर फाइल के दृश्य समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं तो क्या ऐसे बुद्धिजीवियों को उन घटनाओं के बारे में प्रतिक्रिया नहीं देना चाहिए, क्या उन्हें ऐसी घटनाओं के लिए माफ़ी नहीं मांगना चाहिए? जिनके दृश्य इतने  खतरनाक हैं तो वास्तविक घटना कितनी खौफ़नाक और हृदय विदारक रही होगी?

कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की कभी कुरेशी जैसे बुद्धिजीवियों ने आलोचना क्यों नहीं की? अगर इस मजहब के लोग मजहबी कट्टरता को अस्वीकार करने लगे तो धीरे-धीरे कट्टरता अपने आप कम हो जाएगी और समाज में विभाजन नहीं बल्कि एकीकरण के स्थितियां बढ़ती जाएंगी| पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ.एसवाई कुरेशी यह भी कहते हैं की हिजाब भले ही कुरान का हिस्सा नहीं है, लेकिन हिजाब पहनने के बारे में न्यायालय आदेश कैसे दे सकता है? इस पर तो निर्णय मौलवी करेंगे| उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया है कि मौलवी क्या IPC पर फैसला करेंगे?  इतने बड़े शासकीय संवैधानिक पद पर बैठने वाले व्यक्ति की सोच ये है तो समाज के अन्य लोगों की सोच क्या होगी? क्या वे कुरैशी का अनुसरण नहीं करेंगे? 

उच्च न्यायालय ने स्कूलों में ड्रेस में जाने के आदेश को वैध ठहराया है हिजाब पहनने पर रोक नहीं लगाई है| जो चाहें हिजाब पहनें, बाजार जाएँ,  शादी ब्याह में जाएँ, उससे न्यायालय के आदेश का कोई लेना देना नहीं है| कुशीनगर में बाबर की हत्या क्या इसलिए करना जायज है कि वह राजनीति में भाजपा का समर्थक वर्कर था? क्या मुस्लिम होना मतलब भाजपा विरोधी  होना है? बाबर की क्या गलती है? उसने अपनी समझ से किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन किया तो क्या उससे उस समाज के लोगों  और नाते-रिश्तेदारों  को मारने का अधिकार मिल जाता है?

ऐसी घटनाएं होती रही हैं, माना जाता है कि भाजपा के लिए बाबरी और बाबर दोनों राजनीतिक लाभ का सौदा रहे हैं| कुशीनगर का बाबर शिक्षित युवा मुस्लिम नौजवानों में राजनीतिक स्वतंत्रता का आगाज करेगा..! हर समाज, हर  परिवार में इतिहास में कुछ अच्छाइयां होती हैं, तो कुछ भूलें होती हैं| अच्छाइयों  को तो अपना भविष्य बनाना चाहिए, लेकिन बुराइयों के भूतकाल को सिर पर लेकर ढोने से पीढ़ियों का भविष्य खराब और अंधकार में जाने के लिए अवसर क्यों देना चाहिए? चाहे हिंदू हो या मुसलमान सबको इसी भारत की धरती पर अपना खुशहाल जीवन गुजारना है, तो फिर कट्टरता के जरिए भारत को जख्मी करने के प्रयास क्यों किए जाते हैं?

कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी अपनी रक्षा के लिए एकजुट होकर मुकाबला करता है| पहले कभी भारत के मौलिक लोग कमजोर या कायर रहे होंगे, जिससे मुगल और अंग्रेज हमारे देश पर शासन कर सके| लेकिन अब यही इतिहास फिर से दोहराने की भूल का दुस्साहस किसी भी स्तर पर करना आत्मघाती कदम के अलावा कुछ भी नहीं होगा| इतिहास के सबक से सशक्त भारत में अब विश्व के भूगोल को बदलने की क्षमता है| सांप्रदायिक विभाजन निश्चित ही देश के लिए खतरनाक होगा, लेकिन सच का सामना तो करना ही पड़ेगा| सच अगर विनाशकारी था तो उसे स्वीकार कर प्रायश्चित  करना ही प्रगतिशील समाज का धर्म और कर्म होना चाहिए| हम एक दूसरे को मार-काट कर नहीं, बल्कि गले लगा कर खुशहाल भारत बना सकते हैं|