दूसरी तरफ महापौर के टिकट चयन में कांग्रेस भाजपा से न सिर्फ कहीं आगे रही,बल्कि उसने लड़ाकू प्रत्याशी मैदान में उतारे. वह तो बुरहानपुर और उज्जैन की बारीक जीत ने भाजपा की लाज बचा ली, वरना 16 में से 7 मेयर ही भाजपा के खाते में दिखते..!
नगरपालिकाओं और नगर परिषदों में बेहतर प्रदर्शन करने के बावजूद यदि भाजपा सात नगर निगमों में 2014 के सभी सोलह नगर निगम चुनाव जीतने के प्रदर्शन को नहीं दोहरा सकी तो उसकी बड़ी वजह प्रत्याशी चयन की कांग्रेसी कार्यशैली को अपनाना है। दूसरी तरफ महापौर के टिकट चयन में कांग्रेस भाजपा से न सिर्फ कहीं आगे रही,बल्कि उसने लड़ाकू प्रत्याशी मैदान में उतारे। वह तो बुरहानपुर और उज्जैन की बारीक जीत ने भाजपा की लाज बचा ली, वरना 16 में से 7 मेयर ही भाजपा के खाते में दिखते।
इस बार मेयर टिकटों को लेकर कांग्रेस से ज्यादा रस्साकशी भाजपा में थी। इसी के चलते बैठकों के लंबे दौर चलने के बावजूद पार्टी सही प्रत्याशी तक नहीं पहुंच सकी। अंतत-हुआ यही कि कांग्रेसी तर्ज पर इलाके के भाजपाई क्षत्रपों के भरोसे उम्मीदवार उतारे गए और उन्हें जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और वीडी शर्मा ने पूरा जोर लगाया लेकिन बावजूद इसके वांछित नतीजे नहीं आए तो इसकी वजह गुटीय प्रत्याशी होने के कारण कार्यकर्ताओं में वह जोश नहीं दिखा जिसके लिए भाजपा जानी जाती है। कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता भाजपा के लिए चिंता पैदा करने वाली है। कार्यकर्ता उपेक्षित महसूस कर रहा है। इंदौर में तो कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला को टीम ने पुष्यमित्र भार्गव को शानदार जीत दिला दी।
भोपाल में विश्वास सारंग, कृष्णा गौर और रामेश्वर की तिकड़ी ने बेहद कमजोर प्रत्याशी मालती राय को जितवा लिया। लेकिन उज्जैन में जीत भले भाजपा की हुई हो लेकिन मोहन यादव का करिश्मा दिखाई नहीं दिया। बुरहानपुर में अर्चना चिटनिस भाजपा की सुनिश्चित हार को जीत में बदलने की शिल्पकार साबित हुईं। खंडवा में सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल और विजय शाह के प्रयासों ने रंग दिखाया।
सागर में भूपेंद्र सिंह , गोविंद राजपूत और शैलेंद्र जैन की तिकड़ी ने कड़े मुकाबले में संगीता तिवारी को जिता कर ही दम लिया। दतिया में नरोत्तम की मेहनत रंग लाई। लेकिन ग्वालियर में मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की पसंद से टिकट पाने वाली सुमन शर्मा पार्टी के दिग्गजों का भरोसा हासिल नहीं कर सकीं। कमोबेश यही हाल जबलपुर और छिंदवाड़ा का रहा। रीवा में भी कांग्रेसी शैली में प्रत्याशी चयन के प्रयोग नाकाम हो गया। प्रबोध व्यास को राजेंद्र शुक्ला के खाते से
टिकट मिला लेकिन बाकी नेताओं ने उनसे किनारा कर लिया। ग्वालियर और मुरैना में पहले दिन से दिख रहा था कि भाजपा प्रत्याशी कमजोर है।
कटनी में संजय पाठक के कहने पर ज्योति दीक्षित को टिकट दिया तो कटनी की जनता ने अपने मिजाज के मुताबिक भाजपा की बागी प्रत्याशी प्रीति सूरी को जिता दिया। छिंदवाड़ा में भी भाजपा की प्रयोगधर्मिता लोगों को रास नहीं आई। भाजपा इस बात का संतोष कर सकती है कि ग्वालियर, जबलपुर कटनी और सिंगरौली में भाजपा के ज्यादा पार्षद जीते हैं। रीवा, बुरहानपुर, सतना में उसके ज्यादा पार्षद जीते हैं। बावजूद इसके भाजपा को सतना, बुरहानपुर रीवा के साथ मुरैना में अपनी परिषद बनाने के लिए निर्दलीय और बागी प्रत्याशियों का जुगाड़ करना पड़ेगा।