राजीव गांधी द्वारा लाए गए पंचायत राज और स्थानीय निकाय सरकारों को क्या अब कांग्रेस कमजोर करना चाहती है? यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि डेढ़ साल की मध्य प्रदेश सरकार ने अपने पहले बजट में ही पंचायत और नगरीय निकायों के बजट पर सर्जिकल स्ट्राइक की है|
मध्यप्रदेश में पंचायत और स्थानीय निकाय कैंसे बच पाएंगे?
बजट में कमी और वृद्धि को थोड़ा बहुत माना जा सकता है| लेकिन एक साल में 12 हजार 676 करोड़ की कटौती कर इन निकायों को कमजोर करने के लिए सर्जिकल अटैक किया गया है| यह धनराशि इन निकायों के माध्यम से विकास के लिए खर्च होने थी लेकिन राशि नहीं मिलने से विकास के कार्य नहीं हो सके|
कभी कांग्रेस पंचायत राज और नगरीय निकायों की सरकारें स्थापित करने के लिए, संविधान में किए गए 73 वें और 74 में संशोधन को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानती रही है| पंचायत राज संस्थाएं ग्रामीण अधोसंरचना के विकास के साथ गांव में मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं| इसी प्रकार नगरीय निकाय शहरी क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के विकास को अंजाम देते हैं| स्थानीय संस्थाओं के बजट में इतनी बड़ी कटौती को इसीलिए सर्जिकल स्ट्राइक कहा जा रहा है क्योंकि 15 साल बाद सरकार में आई कांग्रेस में पंचायत राज संस्थाओं को भी राजनीतिक नजरिए से देखा गया| साल 2019 में जो पंचायत राज और नगरीय संस्थाएं कार्यरत थी, उनके चुनाव 2014-15 में हुए थे, इसलिए उन जनप्रतिनिधियों को पुरानी सरकार से जोड़ा गया, शायद यही इन संस्थाओं की बजट कटौती का प्रमुख कारण रहा|
विधानसभा में पेश किये गये, 31 मार्च 2020 को समाप्त हुए वर्ष के लिए, नियंत्रक महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन में, पंचायतों और नगरीय निकायों के बजट में कटौती प्रकाश में आई है| भाजपा सरकार के समय 2018-19 में पंचायत राज और नगरीय निकायों को 37709 करोड रुपए वित्तीय सहायता के रूप में उपलब्ध कराए गए थे| दिसंबर 2018 में सरकार में आने के बाद कांग्रेस विधानसभा में 2019-20 का बजट ही पेश कर पाई| इसी वर्ष के बजट के लेखा प्रतिवेदन में महालेखाकार द्वारा बताया गया है कि इस वर्ष पंचायत राज और नगरीय निकायों को 25 हज़ार करोड़ रुपए की सहायता उपलब्ध कराई गई है जो कि साल 2018-19 की तुलना में 12676 करोड़ कम है|
किस बजट में कितनी कमी की गयी?
उच्च माध्यमिक विद्यालय एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में ₹260.94 करोड़
इंदिरा आवास योजना में ₹795.06 करोड़
प्राथमिक विद्यालय में ₹766.79 करोड़
माध्यमिक विद्यालय में ₹428.45 करोड़
अध्यापक संवर्ग के वेतन के लिये अनुदान में ₹5,187.55 करोड़
सभी के लिये आवास में ₹3,444.60 करोड़
शहरी परिवर्तन एवं पुनर्जीवन के लिये अटल मिशन में से ₹957.75 करोड़
मध्यप्रदेश में शिक्षा की स्थिति को सुधारने की जहां आवश्यकता है वहां शिक्षा अनुदान में इस तरह की कटौती शिक्षा व्यवस्था को कितना प्रभावित करेगी यह केवल समझा जा सकता है| अध्यापकों को वेतन के लिए भी सरकार ने पूरा पैसा ना देकर उसमें भी कटौती कर दी| इसके साथ ही इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत बनने वाले आवासों की राशी में इस कटौती का सरकार के पास क्या जस्टिफिकेशन हो सकता है?
पंचायतों और नगरीय निकायों के प्रति इस तरह का नकारात्मक रवैया कोई सरकार कैसे अपना सकती है? पंचायतों और नगरीय निकायों के 3 सालों से चुनाव नहीं हो रहे हैं| पुराने जनप्रतिनिधी ही कार्य का संचालन कर रहे हैं| लेकिन लोकतांत्रिक संस्थाओं में समय पर चुनाव नहीं होना उन संस्थाओं को कमजोर करने जैसा है| मध्य प्रदेश के दोनों प्रमुख दल, पंचायत और नगरीय निकायों के चुनाव के लिए, एक दूसरे से आगे निकलने का प्रदर्शन करते हुए दिखाई पड़ते हैं| भाजपा सरकार ने चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ की थी, लेकिन पिछड़े वर्गों के आरक्षण के प्रावधानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रकाश में, चुनाव प्रक्रिया रुक गई है| सभी नेता पिछड़े वर्गों के सर्वाधिक हितैषी होने का प्रामाणिक तथ्य आए दिन रखते रहते हैं| इन संस्थाओं के चुनाव नहीं हो रहे हैं| संस्थाएं अपना वजूद खोती जा रही हैं| इन संस्थाओं के बजट में भी राजनीति हो रही है| पंचायतों और नगरीय निकायों की नीतियों में भी सहमति नहीं है| नीतियों में बदलाव के भ्रम जाल में न्यायिक समीक्षा की स्थिति बनी और अंततः चुनाव टल गए|
मध्यप्रदेश में 51 जिला पंचायतों, 313 जनपद पंचायतों एवं 22811 ग्राम पंचायतों में 3 लाख 50 हज़ार निर्वाचित प्रतिनिधि हैं| भले ही नये निर्वाचन नहीं हुए हैं लेकिन अभी इन्हीं प्रतिनिधियों के नियंत्रण में यह संस्थाएं अपना कामकाज कर रही हैं| पंचायतों और नगरीय निकाय में भी लोकसभा और विधानसभा के समान 5 वर्ष का निर्वाचित प्रतिनिधियों का कार्यकाल होता है| पंचायत और नगरीय चुनाव जिस तरह से टले हैं और जो विसंगतियां सामने आई हैं, उससे तो लगता है कि एक पंचवर्षीय कार्यकाल निकलने के पहले शायद ही चुनाव प्रक्रिया संपन्न हो पाए| वैसे यह कोशिश तत्परता के साथ होनी चाहिए कि पंचायत और नगरीय निकायों के चुनाव जल्दी से जल्दी हो सकें| निचले स्तर पर गवर्नेंस की संस्थाओं में नए जनप्रतिनिधियों के आने से निश्चित ही कामकाज में तेजी और नयापन आएगा|