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नाम बदलने से ब्रांड कैसे बदलेगा?

सार

भले नाम प्रयागराज हो अमरूद तो इलाहाबादी ही कहलायेगा।

janmat

विस्तार

अमरुद खरीदने कल बाजार गया। ठेले पर रखे तीन तरह के अमरूदों की कीमत ठेले वाले ने ₹40, 60 और 80 रूपये किलो बताया। सबसे महंगे अमरूद के बारे में पूछा, तो उसने कहा इलाहाबादी अमरूद है खाएंगे तो अमरूद का असली मजा पाएंगे। मैंने कहा कि इलाहाबाद का तो नाम बदलकर प्रयागराज हो गया है, तो उसने कहा शहर का नाम कुछ भी हो जाए अमरूद तो इलाहाबादी ही कहलायेगा।

यह वाकया नाम बदलने की राजनीति और उससे ब्रांड नहीं बदलने का सटीक उदाहरण है। देश में शहरों, कस्बों, सड़कों, स्टेशनों, योजनाओं आदि के नाम बदलने की राजनीति आजादी के बाद से ही हो रही है। ऐसा नहीं है कि केवल भाजपा सरकारों में ही नाम बदले जा रहे हैं। कांग्रेस ने भी खूब नाम बदले हैं कितने राज्यों के नाम बदले गए हैं। मद्रास, तमिलनाडु किया गया उड़ीसा का ओड़िसा, उत्तरांचल को  उत्तराखंड नाम किया गया। केरल और कर्नाटक भी राज्य के बदले हुए नाम है ।

कांग्रेस की सरकार ने बनारस का नाम बदलकर वाराणसी किया था। यह बात अलग है कि अभी भी लोग बनारस ही कहते हैं वहां के लोगों को अपने बनारसीपन पर गर्व होता है।

दिल्ली के कनॉट प्लेस को राजीव गांधी चौक और कनॉट सर्कस को इंदिरा गांधी चौक कांग्रेस की सरकार में किया गया था। यह अलग बात है कि अभी भी लोग इसे कनॉट प्लेस और कनॉट सर्कस ही बोलते हैं। बम्बई को मुंबई में बदला गया। मद्रास का नाम बदल कर चेन्नई, कलकत्ता का कोलकाता तो बैंगलोर का बेंगलुरु किया गया।

नाम परिवर्तन में मध्यप्रदेश पिछड़ा हुआ था। अभी हाल के दिनों में नाम परिवर्तन कर सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना में मध्यप्रदेश ने कदम आगे बढ़ाया है। होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदापुरम और बावई का नाम बदलकर माखन नगर किया गया। इसके पहले हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन, बैरागढ़ का नाम संत हिरदाराम नगर और महू का नाम डॉक्टर अंबेडकर नगर किया गया । अभी तक जो भी नाम बदले गए हैं उनकी बोलचाल में स्वीकार्यता नहीं हो सकी है अभी भी लोग बैरागढ़, हबीबगंज और महू ही बोलचाल में कहते हैं।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान होशंगाबाद और बाबई के नाम बदलने की घोषणा पहले ही कर चुके थे। उनकी घोषणा अब पूरी हुई है और भारत सरकार ने नाम परिवर्तन की स्वीकृति दे दी है। 

सांस्कृतिक गौरव को पुनर्स्थापित और पुनर्जीवित करना किसी भी राष्ट्र या राज्य का धर्म होता है। ऐतिहासिक कारणों से भारत मुगल और ब्रिटिश साम्राज्य के स्मृति चिन्हों से भरा पड़ा है।

आजादी के बाद बनी सरकारों ने ना मालूम किन कारणों से मुगल और ब्रिटिश साम्राज्य के स्मृति चिन्हों को बदलने पर ध्यान नहीं दिया। मुगल और ब्रिटिश शासकों के नाम पर सड़क, चौराहे, मोहल्ले हर शहर और हर जिले में कहीं न कहीं मिल जायेंगे।

सांस्कृतिक गौरव और पहचान को पुनर्स्थापित  करना हमारा कर्तव्य है। इस दिशा में किए जा रहे प्रयास प्रशंसनीय कहे जा सकते हैं, लेकिन नाम बदलाव को धर्म से जोड़ना श्रेयस्कर नहीं है।

बहुलतावादी भारत में सामाजिक एकीकरण पहली जरूरत है। नाम परिवर्तन को धर्म के आधार पर प्रदर्शित करना विभिन्न धर्मों के बीच विभाजन पैदा करेगा जो देश हित में नहीं होगा।

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने तीन शहरों इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज, मुगलसराय का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय नगर और फैजाबाद का नाम अयोध्या कर दिया है। यूपी में चुनाव के दृष्टिगत अनेक शहरों आजमगढ़, अलीगढ़, मुजफ्फरपुर आदि के नाम बदलने के प्रस्ताव भी चर्चा में है।

अभी तो देश का ही नाम बदलने की चर्चा बनी हुई है।  देश जब आजाद हुआ, तो अंग्रेज इसे इंडिया कहते थे। जब भारत का संविधान बन रहा था, संविधान सभा में यह प्रस्ताव रखा गया कि इंडिया का नाम बदलकर भारत कर दिया जाए, तो उस पर सहमति नहीं बनी।

संविधान के अनुच्छेद 1 में लिखा है कि “इंडिया देट इज भारत”। इंडिया का नाम भारत करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं विचाराधीन है।

मध्यप्रदेश में शहरों के नाम बदलने से उत्साहित नेताओं ने मध्य प्रदेश से गुलामी के सारे चिन्ह मिटाने का संकल्प व्यक्त किया है। भोपाल का नाम भोजपाल करने का प्रस्ताव भी विचाराधीन है। ओबैदुल्लागंज, नसरुल्लागंज, हलाली डैम ऐसे ना मालूम कितने नाम हैं, जिनको बदलने की मांग नेता उठा रहे हैं। सांस्कृतिक पहचान के लिए नाम बदलना स्वागत योग्य है।

धर्म विशेष से जुड़े नामों को बदल कर राजनीतिक ध्रुवीकरण की सोच का समर्थन नहीं किया जा सकता। भोपाल का नाम बदलकर भोजपाल कर भी दिया जाता है, तो भोपाली अंदाज और बोलचाल तो नहीं बदल सकती। सूरमा भोपाली को सूरमा भोजपाली तो नहीं कहा जा सकता। शहरों कस्बों और योजनाओं का नाम  बदलने की राजनीति बढ़ती ही जा रही है। मध्य प्रदेश कांग्रेस भी नामों के बदलाव की राजनीति में पीछे नहीं है।

कांग्रेस की ओर से इंदौर और ग्वालियर का नाम बदलने का प्रस्ताव किया गया है । कांग्रेस इंदौर का नाम बदलकर देवी अहिल्या बाई नगर और ग्वालियर का नाम बदलकर रानी लक्ष्मी बाई नगर करना चाहती है। कुछ नाम सांस्कृतिक पहचान से जुड़े हैं उनमे बदलाव बिल्कुल ठीक है लेकिन राजनीति के लिए बदलाव नही होना चाहिए।

इसके साथ ही नाम बदलने के किसी भी प्रस्ताव पर विचार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक विशेषज्ञों की समिति गठित की जाना चाहिए। चूँकि  नाम परिवर्तन की स्वीकृति केंद्र स्तर से होती है, इसलिए केंद्र के निर्णय के पहले विशेषज्ञों की समिति नाम परिवर्तन के औचित्य पर विचार करें। इसके बाद भारत सरकार उस पर अपना निर्णय करें तो इस पर राजनीति कम की जा सकती हैं।

शहरों के नाम बदलने से ज्यादा शहर का ब्रांड बनाने की जरूरत है। जब शहर का अपना ब्रांड होगा तो नाम कुछ हो शहर तो अपने ब्रांड से ही जाना जाएगा। ब्रांड के साथ शहर का नाम जुड़ेगा। शहर की तरक्की और विकास की पहचान उसका ब्रांड बनेगा ।