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एक तरफ राष्ट्रवाद, एक तरफ वंशवाद

सार

अखिल भारतीय कांग्रेस की सर्वोच्च निर्णायक सेंट्रल वर्किंग कमेटी चुनने के लिए सभी राज्यों से एआईसीसी डेलीगेट के चुनाव हो गए हैं. यह चुनाव मध्यप्रदेश में भी हो गए. इलेक्ट्रेड और को-ऑप्टेड डेलीगेट की सूची जारी कर दी गई है. यह चुनाव कब हुए? इस चयन का आधार क्या रहा? इसकी जानकारी सूची बनाने वालों को ही पता होगी. सूची पर आ रही प्रतिक्रियाएं बता रही है कि पूर्ववत कमलनाथ ने अपनी पसंद के अनुसार चयन कर सूची बना दी.

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विस्तार

मध्यप्रदेश में दो ही ताकतवर नेता और खेमा माने जाते हैं. इस सूची में इन दोनों कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की हिस्सेदारी दिखाई दे रही है. कांग्रेस के रायपुर में हो रहे राष्ट्रीय अधिवेशन में सीडब्ल्यूसी के सदस्यों के चुनाव होने की संभावना है.

इसी चुनाव के लिए एआईसीसी डेलीगेट की जरूरत है और उसी रणनीति के हिसाब से डेलीगेट बनाए गए हैं. जिस तरह से कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव प्रायोजित ढंग से कराकर इसे लोकतांत्रिक बताया गया था. उसी तरह से इन डेलीगेट को भी चुना गया है.

मध्यप्रदेश में घोषित एआईसीसी की लिस्ट की सबसे बड़ी खासियत यह बताई गई है कि इसमें पिता पुत्र की तीन जोड़ी एक साथ सदस्य के रूप में शामिल हैं. इसमें सबसे पहला नाम तो कमलनाथ का है जिन्होंने अपने सांसद पुत्र को एआईसीसी डेलीगेट बनाया है. दूसरा नाम दिग्विजय सिंह और उनके पुत्र जयवर्धन सिंह का है. आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया और उनके पुत्र विक्रांत भूरिया भी इस लिस्ट की खासियतों में शामिल है. 

जिन नेता पुत्रों को एआईसीसी की लिस्ट में शामिल किया गया है उनमें सक्रियता की दृष्टि से जयवर्धन सिंह और विक्रांत भूरिया को मिले स्थान को पिता के कारण कहना सही नहीं होगा. इस कैटेगरी में नकुल नाथ ही माने जाएंगे क्योंकि उनकी राज्य स्तर पर सक्रियता दिखाई नहीं पड़ती है. उनका पॉलिटिकल एक्सपोजर कमलनाथ तक ही सीमित दिखाई देता है.

आदिवासी नेता उमंग सिंगार, पूर्व मंत्री विधायक सचिन यादव इस सूची में शामिल नहीं है. जयस के हीरालाल अलावा जो कांग्रेस के विधायक हैं उन्हें भी एआईसीसी डेलीगेट नहीं बनाया गया है. इससे ऐसा लगता है कि शायद जयस के साथ कांग्रेस का तालमेल होने की संभावना नहीं है. अविश्वास प्रस्ताव के समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हीरालाल अलावा को इंगित करते हुए आदिवासी विकास और पेसा कानून पर अपनी बात रखी थी. उससे एहसास हो रहा था कि हीरालाल अलावा कांग्रेस से छिटक सकते हैं. 

कांग्रेस में अक्सर ऐसा देखा गया है कि जब कोई पद देने की बात आती है तब कार्यकर्ताओं की उपेक्षा होती है. पार्टी आज अपनी दुरावस्था के दौर से गुजर रही है. तो उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि बात तो कार्यकर्ताओं की जाती है लेकिन पद देते समय परिवारवाद को ज्यादा महत्व मिलता है. कांग्रेस की परिवारवाद की बीमारी कोई मध्यप्रदेश की नहीं है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वंशवाद की बेल पर ही पार्टी में कब्जा जमाए हुए बैठे हैं.

कांग्रेस के उदयपुर सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था कि 50 प्रतिशत पद युवाओं को दिए जाएंगे. एआईसीसी डेलिगेट की सूची देखकर क्या कोई कह सकता है कि इसमें नए युवाओं को एक भी मौका दिया गया है. 

राहुल गांधी, गांधी परिवार के वारिस नहीं होते तो क्या पार्टी को इतनी राजनीतिक असफलताओं के बाद भी उनको पार्टी के निर्णायक के रूप में बनाए रखा जाता? कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भले खड़गे बन गए हो लेकिन उन्हें एआईसीसी में सामान्य निर्णय लेने का भी अधिकार शायद नहीं होगा. राजस्थान में अशोक गहलोत द्वारा जिस तरह का आचरण किया गया है और उस पर कांग्रेस आलाकमान द्वारा कोई भी फैसला नहीं किया जा सका उससे तो अब यह तय हो गया है कि कांग्रेस में आलाकमान नाम की कोई चीज नहीं है. 

राजस्थान अशोक गहलोत चला रहे हैं तो मध्य प्रदेश कमलनाथ चला रहे हैं. इन दोनों राज्यों में आलाकमान के निर्देश भी अनसुने किए जाते हैं. अशोक गहलोत ने अपने बेटे को एआईसीसी डेलिगेट बना दिया है. सांसद विधायक के चुनाव के लिए बड़े नेता अपने पुत्रों को मौका देते हैं लेकिन पार्टी में भी कोई पद कार्यकर्ताओं को मिल जाए इसमें भी संशय बना रहता है.

एआईसीसी डेलिगेट की सूचियों का असली परिणाम तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में देखने को मिलेगा जब सीडब्ल्यूसी के चुनाव के लिए लोग मैदान में उतरेंगे. इन सदस्यों के मतदान से सीडब्ल्यूसी सदस्य निर्वाचित होने का इतिहास रचने का प्रचार किया जाएगा. मध्य प्रदेश से सीडब्ल्यूसी के चुनाव में प्रत्याशी निश्चित रूप से उतरेंगे. बहुत जल्दी यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन नेता चुनाव लड़ते हैं. इसके साथ ही एआईसीसी डेलिगेट की इस सूची की पूरी भूमिका भी स्पष्टता के साथ सामने आ जाएगी.
 
भारत जोड़ो यात्रा से उत्साहित कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रवाद, कट्टरता और नफरत के खिलाफ अपनी आवाज को मुखर करने की बात कर सकती है. यह अजीब स्थिति है कि बात राष्ट्रवाद की और संरक्षण वंशवाद को. कांग्रेस परिवारवाद से जड़ो तक प्रभावित हो गई है. एआईसीसी के लिए जारी मध्य प्रदेश की सूची एक और संकेत कर रही है कि विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी का चयन का आधार क्या और कैसा रहेगा? योग्यता और पार्टी कार्यकर्ता को बिना किसी भेदभाव के मौका मिलने की उम्मीद शायद बेमानी ही होगी. 

जब पार्टी के लिए लिस्ट में ही वंशवाद और परिवारवाद हावी है तो फिर विधानसभा सीटों पर टिकट में तो मारामारी चरम पर होगी. आदिवासी वोटों पर सबकी नजर है लेकिन आदिवासियों को अवसर देने में हमेशा भेदभाव होता रहा है. वहीं इस सूची में भी परिलक्षित हो रहा है. चुनाव ना होते तो शायद यह सूची सार्वजनिक ना होती.

यह केवल कांग्रेस में नहीं है सरकार में भी बहुत सारी नियुक्तियां चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए की जा रही हैं. विकास प्राधिकरण में सरकार ने कुछ नियुक्तियां की है. नवंबर-दिसंबर में मध्य प्रदेश में चुनाव संपन्न होना है. यह माना जा सकता है कि नवंबर में निश्चित रूप से आचार संहिता लग जाएगी. अब केवल 8 महीने बचे हैं. कोई भी इतने कम समय में विकास प्राधिकरण में क्या परिणाम दे सकेगा? नियुक्तियां क्या पहले नहीं हो सकती थी. चुनाव नजदीक आते ही नियुक्तियों की याद क्यों आती है? यह भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ क्रूर मजाक ही कहा जायेगा.