उन्होंने आजीवन शासन करने की स्थितियां बना ली हैं, उनकी निरंकुश सत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके मुकाबले कोई अन्य उम्मीदवार नहीं था. उन्हें चीन की संसद और नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के करीब तीन हजार सदस्यों ने चुना..!
०प्रतिदिन विचार-राकेश दुबे
14 /03 /2023
उथल-पुथल के दौर से गुजर रहे पड़ौसी देश चीन में स्थायित्व की बयार चलने का आभास हो रहा है, यह आभास कितना भारत के पक्ष में होगा? दूर की कौड़ी है। अभी तो खबर यह है कि
तीसरे कार्यकाल के लिये शी जिनपिंग को चीन का राष्ट्रपति बनाया गया है। यह इतिहास में उल्लेखनीय रूप से दर्ज घटना है। इसके प्रभाव कहाँ और कैसे होंगे? एक प्रश्न है। वे चीनी गणराज्य के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद सबसे लंबी अवधि तक शासन करने वाले नेता हो गये हैं। उन्होंने आजीवन शासन करने की स्थितियां बना ली हैं। उनकी निरंकुश सत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके मुकाबले कोई अन्य उम्मीदवार नहीं था। उन्हें चीन की संसद और नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के करीब तीन हजार सदस्यों ने चुना।
इसके साथ शी को केंद्रीय सैन्य आयोग का भी फिर से अध्यक्ष चुन लिया गया है। वे दुनिया की सबसे बड़ी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के भी अध्यक्ष बने रहेंगे। उल्लेखनीय है कि ताइवान के गर्माए मुद्दे, रूस-यूक्रेन युद्ध, अमेरिका व पश्चिमी देशों के साथ तनावपूर्ण संबंधों और भारत के साथ लद्दाख में उत्पन्न गतिरोध की पृष्ठभूमि में शी जिनपिंग ने चीन में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। चिंता की बात यह है कि चीन सैन्य आधुनिकीकरण के प्रयासों को तेज कर रहा है। उसने इस बार फिर रक्षा बजट में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि की है।
इसके बावजूद कि पिछले तीन वर्षों में कोरोना संकट रोकने को लगाये गये सख्त प्रतिबंधों के चलते दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था कहे जाने वाले चीन की स्थिति अच्छी नहीं है। चीनी अर्थव्यवस्था उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। ऐसे में आर्थिक पुनरुद्धार व सैन्य महत्वाकांक्षाओं के बीच संतुलन कायम करना शी जिनपिंग के लिये बड़ी चुनौती होगी।
विचार का मुद्दा, मौजूदा भू-राजनीतिक समीकरणों के मध्य चीन में शी की निरंकुश सत्ता के चलते भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। एलएसी पर जिस तरह बड़े संरचनात्मक निर्माण चीन करता रहा है इससे उसकी नीयत को समझना कठिन नहीं है। हालांकि, भारत ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम संरचनात्मक विकास के लिये उठाये हैं। वहीं हाल ही में अमेरिकी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अमेरिकी प्रभाव को कम करने तथा दुनिया में महाशक्ति के रूप में उभरने के लिये अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को विस्तार देता रहेगा।
पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि शी की मंशा है कि जब वर्ष 2049 में चीन अपनी स्थापना की शताब्दी मनायेगा तो वह एक महाशक्ति के रूप में उभरने की पूरी कोशिश करेगा । यह वही हकीकत है कि भारत की सीमाओं में उत्पन्न गतिरोध को खत्म करने के लिये चीन की तरफ से कोई ऐसी ईमानदार पहल नहीं हुई है, जिससे तनाव दूर करके विश्वास का माहौल दोनो देशों में बन सके।
यह भी विचार का गंभीर मुद्दा है कि ऐसे वक्त में जब शी जिनपिंग चीन में और मजबूत हुए हैं, वे अमेरिका के साथ भारत के गहरे होते रिश्तों के आलोक में प्रतिशोध हेतु कोई उत्तेजक कदम उठा सकते हैं। यह समय की माँग है भारत को अपने सारे विकल्पों को खुला रखना चाहिए और साथ ही सैन्य व कूटनीतिक रूप से अपनी पूरी तैयारी करनी चाहिए। यूँ तो चीन की बढ़ती सैन्य ताकत से उसके अन्य पड़ोसी देश जापान, ताइवान, वियतनाम आदि भी चिंतित हैं। चीन के थल सेना के बाद नौ सेना को शक्तिशाली बनाने के प्रयासों के बीच जापान ने भी अपने रक्षा बजट में 26 फीसदी वृद्धि की है। यह शांति की दिशा में चल रहे प्रयासों में अड़ंगा साफ़ दिखाई दे रहे हैं।