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अब मुद्दा “देश में जनतंत्र” है 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 27 Jul

सार

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस अब रूठों को मनाने में लगी है | राहुल गाँधी ने अपने विशेष दूत को जी-२३ को लोगों को वापिसी के लिए मनाने भेजा है |

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विस्तार

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस अब रूठों को मनाने में लगी है | राहुल गाँधी ने अपने विशेष दूत को जी-23 को लोगों को वापिसी के लिए मनाने भेजा है | यह कदम अगर पहले उठता तो दल के भीतर और बाहर कांग्रेस की जनतंत्र में रूचि को दर्शाता | वैसे भी यह समय हर पार्टी के लिए अपने भीतर झांकने का है। जो जीते हैं वे, और जो हारे हैं वे भी, चुनाव-परिणामों की समीक्षा कर रहे हैं। अपने-अपने ढंग से अपने अगले रास्तों, और अगली चालों के बारे में सब सोचेंगे। देश के मतदाता को भी आज एक मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना है, यह मुद्दा है – “देश में जनतंत्र” । 

मतदाता के पास अपना मत बनाने के लिए आने वाले आम चुनाव तक का समय है | सत्ता में काबिज भाजपा और कांग्रेस के सामने यह मुद्दा अभी से खड़ा है | दक्षिण भारत के कुछ राज्यों, और पश्चिम बंगाल, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि को छोड़कर भाजपा का शासन है| ऐसे यह पहली बार नहीं है, जब देश में ऐसी स्थितियां बनी हैं। कांग्रेस के शासन-काल में भी अधिकांश राज्यों में एक दल का वर्चस्व रहा है । तब भी यह बात अक्सर उठा करती थी कि इतना बड़ा जन-समर्थन किसी भी राजनीतिक दल को अजेय होने का भ्रम करा सकता है, और जनतंत्र की दृष्टि से शासक का यह भाव खतरनाक है और भाजपा में यह भाव दिखने भी लगा है |

सत्ता में आने, और बने रहने, की आकांक्षा किसी भी दल की हो सकती है, पर सत्ता पर एकाधिकार की स्थिति तानाशाही के रास्ते पर ले जाने वाली बन सकती है। जनतंत्र की सफलता के लिए एक मज़बूत प्रतिपक्ष का होना नितांत ज़रूरी है। सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष, दोनों का ताकतवर होना ही वह संतुलन है जो जनतंत्र को सफल और सार्थक बनाता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक बार अपने दल के निर्वाचित सांसदों से कहा था कि “संसद में विपक्ष बहुत कमज़ोर है, इसलिए कांग्रेस के सदस्यों को विपक्ष की भूमिका भी निभानी होगी” विपक्ष की भूमिका से उनका मतलब सत्ता पर नज़र रखने से था। 

आज संसद में भारतीय जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में है और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के पास बहुत कम सीटें हैं। यही स्थिति असंतुलित जनतंत्र की है, इसलिए यह खतरा हर समय बना रहेगा कि सत्तारूढ़ पक्ष मनमानी पर न उतर आये। भाजपा २०१४ में सत्ता में आयी थी तो चुनाव के दौरान उसने कांग्रेस-मुक्त भारत का नारा दिया था। आज देश में कुल दो राज्यों में कांग्रेस सरकार बची है। कांग्रेस-मुक्त भारत जैसी स्थिति लगभग बन ही गयी है। विपक्ष में और भी कोई दल ऐसा नहीं दिख रहा जो भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में हो। आम आदमी पार्टी पंजाब में विजय के बाद देश में विजय के सपने अवश्य देखने लगी है, पर अपनी सीमाओं से वह परिचित होगी। ऐसे में भाजपा का उच्छृंखल हो जाना स्वभाविक है, भाजपा को इससे बचना चाहिए । दुर्भाग्य से ऐसा होता नहीं दिख रहा। चार राज्यों में विजय के बाद जो दिखा रहा है वह उचित नहीं कहा जा सकता। विजय प्रसन्न होने तथा संतुष्टि का भाव देने वाली होती है। पर यह भी ज़रूरी है कि हर विजय के बाद विजयी कृतज्ञता के भाव से भरा दिखाई दे। 

और विपक्ष - कांग्रेस कार्य-समिति की बैठक में भी आत्म-निरीक्षण जैसी प्रक्रिया का अभाव ही दिखा। कांग्रेस-अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने प्रारंभिक वक्तव्य में पद छोड़ने की बात तो कही, पर साथ ही ‘यदि आप चाहें तो’ जैसी शर्त भी लगा दी। कांग्रेस पार्टी देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में अलग-थलग पड़ रही है। उत्तर प्रदेश चुनाव में मात्र दो प्रतिशत वोट शेयर पाना कांग्रेस जैसे दल के लिए चिंतन ही नहीं, चिंता का विषय होना चाहिए। जी -२३ के लोगों से बातचीत से चिंता का संकेत मिलता है, पर चिंता का परिणाम भी सामने आना चाहिए। जल्दी आना चाहिए |