एन.डी.ए ने जगदीप धनखड़ को अपना उम्मीदवार बनाकर जाट समुदाय के एक बड़े हिस्से को अपने पाले में लाने की कोशिश की है, जो किसान आंदोलन के समय से सरकार से नाराज है..!
सधे दांव खेलने में माहिर भाजपा का कौशल राष्ट्रपति चुनाव के बाद उपराष्ट्रपति चुनाव में भी देखने को मिलेगा| हालांकि भाजपा और उसके सहयोगी दलों का पलड़ा अब बहुत भारी है, पर यह विपक्ष के लिए भी एक और मौका है, जिसमें वो अपनी एक जुटता दिख सकता है| एन.डी.ए ने जगदीप धनखड़ को अपना उम्मीदवार बनाकर जाट समुदाय के एक बड़े हिस्से को अपने पाले में लाने की कोशिश की है, जो किसान आंदोलन के समय से सरकार से नाराज है|
राष्ट्रपति पद के मतदान के दौरान अनेक राज्यों में कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी दलों के विधायकों ने एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट डाला है| पहले से विभाजित विपक्ष के लिए यह एक बड़ा झटका है| कुछ दशक पहले राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार का चयन बहुत पहले हो जाता था| संभावित नामों पर हर पहलू से विचार होता था और चयनित व्यक्ति को बता भी दिया जाता था कि उन्हें इसे अभी सार्वजनिक नहीं करना है, पर उन्हें तैयार रहना चाहिए| इस बार ऐसा नहीं हुआ|
किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि द्रौपदी मुर्मू एन.डी.ए की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होंगी| विपक्ष की यह एक विफलता है, आज सरकार में शामिल लोगों को पता है कि विपक्ष के भीतर क्या विचार-विमर्श चल रहा है, लेकिन विपक्ष को कोई भनक नहीं लग सकी| राजनीति में सामने खड़ी शक्ति के बारे में जानकारी रखना जरूरी होता है, तभी तो ठोस रणनीति बनती है|
देश के सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला का आसीन होना एक बहुत बड़ा संकेत है| पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत के साथ हिंदी पट्टी और पश्चिमी भारत में यह तबका राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है| इनमें कई इलाकों में भाजपा का वर्चस्व है| दस साल की सत्ता के बाद कुछ एंटी-इनकंबेंसीभी दिखती है| उसकी भरपाई के लिए जनाधार में नये तबकों को जोड़ा जा रहा है |वैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बहुत लंबे समय से आदिवासी समुदायों के बीच सक्रिय था और है |
भाजपा अब रणनीति के इस हिस्से पर ज्यादा तेजी से लग गई है “पूर्वी भारत में गैर-भाजपा सरकारों को कमजोर करना”, भाजपा की नजरें दक्षिण भारत के साथ पूर्वी भारत पर भी हैं| पूर्वी भारत के तीन राज्यों- पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड- में आदिवासी समुदाय में संथाल जनजाति की बड़ी संख्या है|
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू इसी जनजाति से आती हैं और ओडिशा से भी हैं| लोकतंत्र में यह बड़ी बात है, जब मुर्मू का नाम सामने आया, तब ममता बनर्जी ने कहा कि अगर भाजपा इनके नाम पर सर्वसम्मति बनाने का प्रयास करती, तो विपक्ष मान जाता| ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने शुरू से भाजपा उम्मीदवार का समर्थन किया| झारखंड में भी सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा को तो महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे को दबावके कारण यह समर्थन करना पड़ा|
अब तो यह बात साफ हो गयी कि विपक्ष में एकजुटता नहीं है| यह भी साफ हो गया कि यशवंत सिन्हा को समर्थन दे रही पार्टियों के आदिवासी विधायको ने मुर्मू के पक्ष में मतदान किया| राष्ट्रपति चुनाव में राजनीतिक दल व्हिप जारी नहीं कर सकते और सांसदों तथा विधायकों को अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालना होता है| आदिवासी विधायकों के अलावा भी विपक्ष के कुछ वोट मुर्मू को मिले हैं|
इस मतदान में कुछ विधायकों ने अपनी पार्टी के प्रति नाराजगी जाहिर की हैं| उपराष्ट्रप्ति चुनाव में विपक्ष २०२४ के आम चुनाव के मद्देनजर अपनी एकता को विस्तार दे सकता है|आज विपक्ष पूरी तरह से तितर-बितर दिख रहा है| उपराष्ट्रपति चुनाव विपक्ष के लिए एक मौका है वो अपनी एकता दिखाए| भाजपा ने जगदीप धनखड़ को अपना उम्मीदवार बनाकर जाट समुदाय के एक बड़े हिस्से को अपने पाले में लाने की कोशिश की है, जो किसान आंदोलन के समय से नाराज है|
उत्तर प्रदेश चुनाव में इस समुदाय का कुछ हिस्सा भाजपा के पास वापस लौटा है, पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में भाजपा की बढ़त के लिए यह जरूरी है कि जाट उसके पीछे लामबंद हों| राजस्थान पर भाजपा की नजरें टिकी हुई हैं, धनखड़ भी तो इसी राज्य से आते हैं| उपराष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्ष ने सोच-विचार के साथ उम्मीदवार नहीं उतारा है| मार्गरेट अल्वा अनुभवी राजनेता हैं, पर वे लंबे समय से सक्रिय नहीं हैं| ऐसे में उनकी उम्मीदवारी से विपक्ष क्या संकेत देना चाहता है, यह समझ से परे है?