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एक यक्ष प्रश्न– देश के विकास में अड़ंगे

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 27 Jul

सार

हम अक्सर देखते हैं, भारत के विशाल नियम-पालन तंत्र को लेकर व्यवसायी निराश दिखते हैं..!

janmat

विस्तार

हम अक्सर देखते हैं, भारत के विशाल नियम-पालन तंत्र को लेकर व्यवसायी निराश दिखते हैं। यह तंत्र भारत के विकास की कहानी में अड़ंगे पैदा करता है। धारणा यही है कि कई बेईमानों, ठगों और प्रत्यक्ष धोखेबाजों के चलते खूब रुकावटें पैदा होती हैं, जो  भारत में कारोबार को किसी दु:स्वप्न सरीखा बना देता है।

इस पर ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) द्वारा काम कर एक दस्तावेज जारी किया गया है। ‘जेल्ड फॉर डूइंग बिजनेस’ इस दस्तावेज में 69233 तरह की मंजूरियों और औपचारिकताओं का ज़िक्र हैं, जो विकास में अड़ंगा लगाती हैं । यह यह दस्तावेज कहता है कि 26134 मंजूरियों या औपचारिकताओं की पालना अगर न हो, तो बतौर दंड कारावास तक की सजा हो सकती है।

सबसे अधिक नियम-पालन पर जोर देने वाले राज्यों में से जिन पांच राज्यों में सर्वाधिक कारावास संबंधी प्रावधान हैं, उनमें- गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र ,कर्नाटक, और तमिलनाडु शामिल हैं। इनमे तमाम नियम मौजूद हैं व कठोर धाराएं भी लगाई जाती हैं, लेकिन असली अपराधी कानून के लंबे हाथों से बार-बार बचते दिखाई पड़ते हैं।

सवाल यह है क्यों? वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के विकास की इन बाधाओं से पूरी तरह परिचित हैं। 21 अप्रैल को आयोजित १५ वें सिविल सेवा दिवस के कार्यक्रम में यह संदेश भी घर-घर पहुंचा दिया कि हमारी नौकरशाही अपने जटिल प्रशासनिक व्यवस्था के कारण भारत के विकास में एक बड़ी चुनौती पेश कर रही है।

याद कीजिए प्रधानमंत्री ने कहा था कि “मैं हर दिन एक कानून खत्म करूंगा, कोई नया कानून मैं नहीं बनाऊंगा।“सरकार ने पहले पांच वर्षों में १५०० के आसपास कानून खत्म भी किए। फिर भी इस तरह के सैकड़ों कानून अपने देश में हैं, जिन्हें भारत के नागरिकों के लिए बोझ माना जाता है।  

प्रधानमंत्री मोदी का खुद मानना है कि ने भारतीय नागरिकों को इन नियमों के पालन से मुक्त होगा। दस्तावेज ‘जेल्ड फॉर डूइंग बिजनेस’ की सामग्री  पिछले सात वर्षों में टीम लीज और रेग टेक ने परिश्रम से जमा की है। इसके मोनोग्राफ में श्रम, वित्त व कराधान, पर्यावरण, स्वास्थ्य व सचिव के कार्य को लेकर सुरक्षा, वाणिज्यिक, उद्योग-केंद्रित और सामान्य क्षेत्र जैसे सात व्यापक श्रेणियों में रिपोर्ट के नतीजे दिखा रहे हैं।

आज नियामक न सिर्फ अतिरिक्त लाभ कमाने वाले, बल्कि गैर-लाभकारी संस्थानों की राह में भी बाधाएं उत्पन्न करता  है। इसी कारण भारत में कोई कारोबार करना या नया संस्थान शुरू करना कठिन है, बल्कि उसे बंद करना तो और कहीं ज्यादा दुरूह काम हो जाता है। भारत में नियोक्ता संबंधी अनुपालनों का अत्यधिक अपराधीकरण भ्रष्टाचार को जन्म देता है, औपचारिक रोजगार को कुंद करता है और न्याय में जहर घोलता है।

यह दस्तावेज तमाम तरह की सिफारिशों से भरा हुई है, जिनमें व्यावसायिक नियमों और विनियमों को युक्तिसंगत बनाना, आपराधिक दंड को नियंत्रित करना और व्यापक नीतिगत सुधार शामिल हैं। देश के अनुपालन तंत्र या आम लोगों को सेवा देने वाली व्यवस्थाओं के पुनर्गठन से न केवल भारत में सामान्य कारोबारी माहौल बेहतर बन सकेगा, बल्कि इससे विभिन्न तरीके से पैसे कमाने वाले, नवाचार में विश्वास रखने वाले, उद्यमी और बड़े-बड़े उद्योगपतियों की गरिमा भी सुरक्षित रहेगी। सबक़ साथ, सबका विकास और सबका  विश्वास का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी और उसकी आलोचना करने वाले प्रतिपक्ष की आँखे इस दस्तावेज से खुल जाना चाहिए। देश की नौकरशाही तो इनके इशारों पर नाचने वाला उपकरण है । सब मिलकर कुछ करेंगे तो देश का विकास सम्भव है।