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संघ की पहल – तस्वीर बदल सकती है

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 07 May

सार

सरसंघचालक डा. मोहन भागवत  वाराणसी में पिता बनकर 125 लड़कियों का कन्यादान किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि विवाह समाज निर्माण का आधार है, इस भव्य समारोह में सवर्ण, दलित और पिछड़े समाज के 125 जोड़ों का सामूहिक विवाह वैदिक रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ। इससे पहले भावगत और संघ परिवार कई बार हिंदुओं की एकता की दुहाई दे चुके हैं..!! 

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विस्तार

निहितार्थ कुछ भी सही, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने अगड़े, पिछड़े और अंतरजातीय विवाह की शुरुआत करा कर देश में जातिवाद के दुष्चक्र को तोडऩे की दिशा में एक सकारात्मक पहल की है। देश की तरक्की और एकता-अखंडता को अक्षुण्ण रखने में समाज का जाति और उपजातियों में बंटा होना प्रमुख बाधा है। सदियों से चली आ रही जातिवाद की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसको समूल उखाड़ कर देश का नवनिर्माण करना किसी दुष्कर चुनौती से कम नहीं है। 

सरसंघचालक डा. मोहन भागवत  वाराणसी में पिता बनकर 125 लड़कियों का कन्यादान किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि विवाह समाज निर्माण का आधार है। इस भव्य समारोह में सवर्ण, दलित और पिछड़े समाज के 125 जोड़ों का सामूहिक विवाह वैदिक रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ। इससे पहले भावगत और संघ परिवार कई बार हिंदुओं की एकता की दुहाई दे चुके हैं। 

इस एकता में सबसे बड़ी बाधा जातिवाद है। आरएसएस की समझाइश के बावजूद जातिवाद का असर कम नहीं हुआ। इसके लिए सामूहिक विवाह की शुरुआत करा कर पहल की गई। जातिवाद तोडऩे की दिशा में यह महज एक कदम है, जबकि फासला सैकड़ों मील का है। यह संभव है कि आरएसएस आगे भी इसी तरह की पहल को जारी रखे। एक-एक कदम बढ़ा कर ही शायद एक दिन बगैर जाति के राष्ट्रवाद का सपना साकार हो सके। इसमें अभी भी बाधाओं की कमी नहीं है। ऐसा नहीं है कि आरएसएस और भाजपा का इसमें कोई छिपा हुआ राजनीतिक एजेंडा नहीं है।

राजनीतिक सिद्धि के बावजूद यह प्रयास सकारात्मक ही माना जाएगा। भाजपा ने केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बना कर यह साबित किया भी किया है वोट बैंक की मौजूदा जातिवाद की राजनीति के बावजूद विकास की बुनियाद पर सत्ता प्राप्त की जा सकती है। इसका बड़ा उदाहरण राज्यों में मुख्यमंत्रियों के चयन में भी देखने को मिला। इससे पहले भाजपा भी अन्य राजनीतिक दलों की तरह राज्यों में बड़े नेताओं की बंधक बनी हुई थी। इन नेताओं की उपेक्षा करके चुनाव जीतना और किसी और को मुख्यमंत्री बनाना संभव नहीं था, किंतु भाजपा ने यह भ्रम तोड़ दिया। इसके साथ जाति आधारित नेताओं के पार्टी को ब्लैकमेल किए जाने की परंपरा को भी पछाड़ दिया। 

दूसरे राजनीतिक दलों में ऐसा करने का साहस अभी तक नहीं है, विपक्षी दलों में इसकी छटपटाहट जरूर नजर आती है। अंतरजातीय विवाह करने पर अक्सर जातिवाद का कहर न सिर्फ नवविवाहितों को, बल्कि उनके पूरे परिवार तक को झेलना पड़ता है। भारत के उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में ऑनर किलिंग आम हैं। भारत में ऑनर किलिंग तब होती है जब कोई जोड़ा अपनी जाति या धर्म के बाहर शादी करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और आठ राज्यों को नोटिस जारी कर ऑनर किलिंग को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी मांगी। कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि अगर सही तरीके से लागू किया जाए तो मौजूदा कानून ऑनर किलिंग को रोकने के लिए पर्याप्त हैं, जबकि अन्य का मानना है कि ऑनर किलिंग की समस्या से निपटने के लिए अधिक सख्त और विशिष्ट प्रावधानों की आवश्यकता है।

जाति आधारित ऐसी सामाजिक बुराइयों से दोतरफा तरीकों से निपटना होगा। कानून में सुरक्षा की गारंटी के साथ अंतरजातीय विवाह संबंधों को प्रोत्साहित करने से देश की तस्वीर बदल सकती है।