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सामूहिक नेतृत्व का शाह अंदाज, कांग्रेस की सीटों पर जीत का आगाज

सार

एमपी विधानसभा चुनाव के लिए घोषित 39 प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट ने बीजेपी में समीकरण उलट दिए हैं. यही नहीं कांग्रेस के कथित जोश को भी होश में ला दिया है. इस लिस्ट से जितना बीजेपी के नेता चौंके हैं उससे ज्यादा कांग्रेस के कान खड़े हो गए हैं. 

janmat

विस्तार

हारी हुई सीटों पर छह महीने पहले प्रत्याशियों की घोषणा का दावा करने वाले कमलनाथ कांग्रेस की एक भी सूची घोषित करने में अब तक सफल नहीं हुए और दूसरी तरफ बीजेपी ने केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारकर अब चुनावी चर्चा को इस पर केंद्रित कर दिया है कि बीजेपी में अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा? दूसरी लिस्ट के बाद त्वरित टिप्पणियों और प्रतिक्रियाओं में यही आभास हो रहा है कि जैसे मोदी और शाह की जोड़ी ने जन आशीर्वाद यात्रा के समापन के दिन सोची समझी योजना के तहत हर हालत में एमपी में सरकार बनाने के अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं.

एमपी की चुनावी कमान अपने हाथ में लेने के बाद अमित शाह जब भोपाल आकर सामूहिक नेतृत्व की रणनीति को फाइनल कर रहे थे तब लोग समझ नहीं रहे थे कि उनकी इसके पीछे वास्तविक योजना क्या है? बीजेपी के प्रत्याशियों की दूसरी सूची का सबसे बड़ा संदेश यही है कि मोदी और शाह मध्यप्रदेश में अगली सरकार बीजेपी की बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.

राज्य में सत्ता विरोधी रुझान और भाजपा नेताओं के बीच मनमुटाव और खींचतान को एक ही झटके में चुनावी ताकत के लिए उपयोग कर लिया गया है. अभी चुनाव नतीजे की संभावना तक ही प्रत्याशियों की घोषणा का आकलन उचित होगा. राज्य में मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसके बारे में तो इन दोनों नेताओं की रणनीति चुनाव परिणाम के बाद विधायक दल की बैठक के कुछ मिनट पहले ही पता चल सकेगी.

मोदी-शाह ने मध्यप्रदेश जीतने के लिए सभी वरिष्ठ नेताओं को विधानसभा चुनाव लड़ाने का जो दांव खेला है उससे बहुत सारे नेताओं के सपने पालने में ही झूलते रह जाएंगे. एमपी की राजनीति में अचानक आए बदलाव के कारण चुनावी नेरेटिव अचानक बदल गया है.

इस लिस्ट के माध्यम से बीजेपी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के मन में पल रहे मुख्यमंत्री बनने के सपने को भी हवा दी है. ग्वालियर चंबल रीजन नरेंद्र सिंह तोमर में बीजेपी की सरकार के नेतृत्व की संभावना को पालने पोसने में कोई कमी नहीं रखेगा. पूरे अंचल में बीजेपी को जिताने के लिए अब सारा दारोमदार नरेंद्र सिंह तोमर के ही कंधों पर आ गया है. अब तोमर और सिंधिया के समर्थकों में एकजुटता दोनों नेताओं के अस्तित्व के लिए भी जरूरी हो गई है. जो लोग चुनाव लड़ाने का काम कर रहे थे अब उनको खुद चुनाव लड़ना है और क्षेत्र में जीत सुनिश्चित कर अपने राजनीतिक भविष्य को पंख देना है. 

मालवा निमाड़ रीजन में कैलाश विजयवर्गीय को बीजेपी का सबसे जुझारू और कार्यकर्ताओं का नेता माना जाता है. उनके चुनाव मैदान में उतरने से पूरे अंचल में कार्यकर्ताओं में बिना किसी प्रयास के ऐसी हवा बनना स्वाभाविक है कि अगर मालवा निमाड़ ने बीजेपी को ताकत के साथ जिताया तो इस अंचल के नेता के पास सरकार के नेतृत्व का मौका आ सकता है.

आदिवासी नेता केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को भी चुनाव मैदान में उतारा गया है. आदिवासी नेतृत्व के विचार पर फग्गन सिंह कुलस्ते की दावेदारी आदिवासियों का झुकाव भाजपा की तरफ मोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. ओबीसी लीडर केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल महाकौशल के कद्दावर नेता हैं. उनके चुनाव मैदान में उतरने से महाकौशल अंचल के लोगों को राज्य की सरकार का नेतृत्व उनके क्षेत्र में आने की आकांक्षा बलवती होगी.

अघोषित तौर पर हर रीजन में इस बात का ही अंडर करंट रहेगा कि अंचल में बीजेपी की भारी विजय उस अंचल के नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने के लिए जरूरी है. यही फीलिंग और अंडरकरंट बीजेपी के विनिंग स्ट्राइक रेट को बढ़ाने के लिए काफी मददगार होगा. 2018 के चुनाव में ग्वालियर चंबल अंचल में यही अंडर करंट था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. इसीलिए इस अंचल में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला था. सिंधिया को नेतृत्व का मौका नहीं मिलने के कारण बगावत और कमलनाथ सरकार के पतन का फिर इतिहास बना.

जहां तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सवाल है, उन्होंने तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जो इतिहास बना दिया है उसको कोई भी ना मिटा सकता है और ना ऐसा इतिहास दोबारा बना सकता है. शिवराज सिंह चौहान को 15 साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रखने में मोदी और शाह की जोड़ी ने ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. चुनाव में पराजय के बाद भी बीजेपी की सरकार बनने का मौका जब आया तब मोदी और शाह ने शिवराज सिंह चौहान को ही यह जवाबदारी सौंपी थी. 

शिवराज सिंह का भविष्य क्या होगा, इस पर तो पूर्व अनुभव को देखते हुए कोई भी चर्चा बेमानी होगी. सामूहिक नेतृत्व की रणनीति का राज कुछ भी हो लेकिन अगर बीजेपी को इससे सफलता मिलती है तो चुनाव परिणाम के दिन तो शिवराज ही जीतेंगे. एमपी में बीजेपी के विजय का सेहरा शिवराज सिंह के सिर पर ही बंधेगा. मुख्यमंत्री के पद पर कौन बैठेगा, यह परिणाम के बाद की परिस्थितियों पर ही तय होगा. इस चौंकाने वाले फैसले में अभी से शिवराज सिंह को अलग रखकर देखना राजनीतिक समझदारी नहीं होगी.

बीजेपी में चुनावी रणनीतियों और कार्यकर्ताओं में असंतोष का नेरेटिव प्रत्याशियों की दूसरी सूची ने समाप्त कर दिया है. कार्यकर्ताओं में नई सरकार और नए नेतृत्व के प्रति सुनिश्चितता के कारण व्याप्त नाराजगी अब इस संदेश के साथ उत्साह में बदल गई है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने वाले व्यक्ति के बारे में अभी कुछ भी तय नहीं है. हर कार्यकर्ता अपने-अपने नेता को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरी ऊर्जा और समर्पण के साथ चुनाव में जुटता हुआ दिखाई पड़ रहा है. बीजेपी की संगठन क्षमता और कार्यकर्ताओं की प्रतिबद्धता में राष्ट्रीय सेवक संघ का नैतिक और जमीनी समर्थन भी बहुत मायने रखता है.

दूसरी लिस्ट के बाद अब तीसरी बड़ी लिस्ट को लेकर तो लोग फिंगर क्रॉस कर प्रतीक्षा करने के अलावा चर्चा करने तक से कतराने लगे हैं. अभी तो यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और दूसरे केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक भी विधानसभा चुनाव में उतारे जा सकते हैं. उनके लिए विधानसभा क्षेत्रों का निर्धारण किया जाना शेष है.

प्रत्याशियों की इस सूची का एक और स्पष्ट संदेश है कि जीतने के लिए ही पार्टी टिकट देगी. सिटिंग विधायकों के टिकट बड़ी संख्या में काटे जा सकते हैं. पार्टी के बड़े नेताओं की विधानसभा सीटों में फेरबदल भी किया जा सकता है. नए चेहरों को ज्यादा प्राथमिकता मिलने की संभावना है. नए चेहरों में महिलाओं को भी स्वाभाविक रूप से ज्यादा मौके मिलेंगे क्योंकि महिला आरक्षण और मध्यप्रदेश में महिला कल्याण की योजनाओं के चलते महिलाओं का झुकाव बीजेपी की तरफ बढ़ता दिखा रहा है.

अभी तक बीजेपी के प्रत्याशी कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटों पर घोषित हुए हैं. नरसिंहपुर, मैहर और सीधी में सिटिंग एमएलए की टिकट काटकर सांसदों को मैदान में उतारा गया है. मोदी और शाह की जोड़ी मध्यप्रदेश में जीत के लिए कितनी गंभीर है यह अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हारी हुई सीटों पर ही जीत का सबसे बड़ा दांव लगाया गया है. भाजपा द्वारा घोषित दूसरी लिस्ट पर कांग्रेस की ओर से दी गई प्रतिक्रियाएं ही यह साबित कर रही हैं कि पार्टी अब घिरती हुई महसूस कर रही है.
 
कांग्रेस जहां कॉर्पोरेट पॉलिटिक्स करती है वहीं बीजेपी 365 दिन 24*7 राजनीति करती है. कांग्रेस केंद्र की राजनीति में गठबंधन को राज्यों के स्तर पर सफल नहीं कर पा रही है. इंडी अलायंस का भोपाल से शुरू होने वाला साझा अभियान निरस्त कर दिया गया है. आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी एमपी में विधानसभा के अपने प्रत्याशी मैदान में उतारती जा रही हैं. गुजरात जैसे तीसरे दल की प्रभावी कोशिश कांग्रेस की संभावनाओं को और धूमिल करती जाएगी. बीजेपी ने तो अभी अपने घर में जमावट और कसावट से कांग्रेस को झटका दिया है. चुनावी प्रतिवार तो हाथ में पतवार की पकड़ भी ढीली कर देगी.