कांग्रेस मध्य प्रदेश में एक ही अनुशासनहीन चेहरा लक्ष्मण सिंह को पहचान सकी है. उन्हें पार्टी से छह वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया गया है. कसूर यह बताया गया है कि, उनके वक्तव्य पार्टी अनुशासन के खिलाफ पाए गए हैं..!!
लक्ष्मण सिंह शायद पहलगाम आतंकवादी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर जो राष्ट्रवादी विचार रख रहे थे, वह पार्टी के सुल्तान राहुल गांधी के विचारों से मेंल नहीं खाते हैं. लक्ष्मण सिंह पूर्व सांसद और विधायक हैं. मध्य प्रदेश में उन्हें साफगोई से अपने विचार व्यक्त करने के रूप में पहचाना जाता है. उन्हें राजनेता कहना सही नहीं होगा बल्कि स्वतंत्र विचारों वाले एक इंसान के रूप में उन्हें देखना ज्यादा उपयुक्त होगा.
कांग्रेस में बयानों पर अगर अनुशासनहीनता के एक्शन निष्पक्ष रूप से लेने शुरू कर दिए जाएंगे तो इसकी शुरुआत स्वयं राहुल गांधी से ही करनी होगी. उनके बयान जितना कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं, उतना तो लक्ष्मण सिंह जैसे हजारों कार्यकर्ताओं के बयानों को भी जोड़ लिया जाए, तब भी उतना नुकसान पार्टी को नहीं पहुंचेगा.
अपने निष्कासन की प्रतिक्रिया में लक्ष्मण सिंह ने सार्वजनिक रूप से कांग्रेस के निष्कासन संदेश को ना केवल टुकड़े-टुकड़े करना बल्कि यह भी कहना कि जैसे राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह के अध्यादेश को फाड़ा था, वैसे ही उन्होंने निष्कासन आदेश को फाड़ा है. अपनी प्रतिक्रिया में लक्ष्मण सिंह कह रहे हैं कि वह नई कांग्रेस बनाएंगे.
राहुल गांधी पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का आरोप लगाते हुए उनका कहना है कि, जिन नेताओं ने राहुल गांधी के पिता और उनकी दादी के साथ काम किया है, उनको बारात और लंगडा घोड़ा बताना अपमानजनक है. वह यह भी सवाल खड़े करते हैं कि, जिसकी बारात ही नहीं निकली है, उसको यह कैसे मालूम है कि बारात का घोड़ा कैसे चलता है?
जो नेता कॉमन मेन की तरह सोचता है वह प्रतिक्रिया भी वैसे ही व्यक्त करता है. जो राजनीति के नजरिए से काम करता है, वह सोचता कुछ है और विचार कुछ और व्यक्त करता है. लक्ष्मण सिंह की भूल यही हो सकती है कि, वह जो सोचते हैं वही बोलते हैं.
इसमें कोई दोराय नहीं है कि, लक्ष्मण सिंह की राजनीति दिग्विजय सिंह से शुरु हुई थी, लेकिन उन्होंने उनकी सरकार के समय भी मुख्यमंत्री के कई कामों और फैसलों के खिलाफ आवाज उठाई थी. उन्हें जो बात सही नहीं लगती थी, भले ही उनको राजनीति में लाने वाले उनके भाई की गलती हो उसके खिलाफ भी वह अपनी आवाज बुलंद करते. उनकी यही साफगोई और सत्य भाषा पब्लिक को पसंद आती है बाकी तो हर इंसान में बुराई होती है.
आजकल तो सफल राजनेता वही है जो सत्य से दूर हो लेकिन राजनीति से भरपूर. लक्ष्मण सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर से पर जो राष्ट्रवादी विचार व्यक्त किया है, लगभग वैसे विचार ही विदेश में गए डेलिगेशन में शामिल कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी व्यक्त किए हैं. भले ही कांग्रेस ने अभी तक इन सांसदों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया हो लेकिन राहुल गांधी के विचारों के विरुद्ध जाने के कारण वह सब कांग्रेस की काली सूची में शामिल हो गए हैं. वक्त के साथ उन पर एक्शन दिखाई पड़ेंगे.
कांग्रेस की कार्यप्रणाली और रीति नीति से बड़ी संख्या में वरिष्ठ नेता वैसे ही पार्टी छोड़ रहे हैं. पार्टी की कमान राहुल गांधी के हाथों में आने के बाद वरिष्ठ नेताओं का पार्टी छोड़ना बढ़ता ही गया है. मध्य प्रदेश में तो बगावत ने कांग्रेस को अधूरा कर दिया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुरेश पचौरी जैसे कद्दावर नेताओं के पार्टी छोड़ने से प्रदेश में कांग्रेस कमजोर हुई है.
लक्ष्मण सिंह केवल एक व्यक्ति का निष्कासन नहीं है. इसके साथ कई संदेश जुड़े हुए हैं. भोपाल यात्रा के समय राहुल गांधी ने लंगड़े घोड़ों को पार्टी से बाहर करने का संकल्प व्यक्त किया था. दरअसल एमपी में कांग्रेस न्यू और ओल्ड नेताओं के बीच संघर्ष में पिस रही है. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेता, जो मध्य प्रदेश में कांग्रेस को मजबूती देने में मुख्य भूमिका निभाते रहे हैं, उनको अब उम्र के कारण लंगड़े घोड़ों में गिनना कांग्रेस को दूरगामी नुकसान पहुंचाएगा.
लक्ष्मण सिंह के निष्कासन का संदेश मध्य प्रदेश की राजनीति में ओल्ड और न्यू नेताओं के संघर्ष की कहानी कह रहा है. आज मध्य प्रदेश में जो भी नेता कांग्रेस संगठन और विधायक दल की कमान संभाल रहे हैं, उनकी तो ताकत ही अनर्गल बयान बाजी मानी जाती है. कमलनाथ की सरकार के समय जिस नेता ने दिग्विजय सिंह के खिलाफ अनुशासनहीनता के लेवल पर जाकर बयान बाजी करते हुए आरोप लगाए थे, वह कांग्रेस को अनुशासनहीन नहीं लगे थे. ऐसे नेताओं पर कोई कार्रवाई करने के बदले उन्हें पदों से पुरस्कृत किया जाता है.
लक्ष्मण सिंह नई कांग्रेस बनाने की बात कर रहे हैं जो इतना आसान नहीं है. राहुल गांधी जब नई कांग्रेस नहीं बना सके तो फिर और किसके लिए यह संभव हो सकेगा. अगर उनका आशय नई पार्टी बनाने से है तो वह भी चुनौतीपूर्ण काम है.
मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय दलों के अलावा तीसरे दल की जरूरत तो है लेकिन अब तक जो भी नेता इस दिशा में आगे बढ़े हैं वह कालांतर में पीछे हट गए हैं. अगर कोई नेता ईमानदारी से नई क्षेत्रीय पार्टी बनाकर ईमानदार राजनीति करना चाहता है, तो उसके लिए मध्य प्रदेश में अच्छी संभावना है.
संगठन में अनुशासन अनिवार्य है. इसकी शुरुआत ऊपर से होती है. अनुशासन केवल कार्यकर्ता के लिए नहीं है जो पदों पर बैठे हैं उनको भी अनुशासन के दायरे में ही रहने की आवश्यकता है. संगठन समन्वय से चलाया जाता है. इसके लिए बाउंसर की जरूरत नहीं है. राहुल गांधी जिस तरीके की भाषा और बाडी लैंग्वेज प्रदर्शित करते हैं वह बाउंसर वाली राजनीति दिखाई पड़ती है. ओल्ड एज में एंग्री यंगमैन फिल्मों में चल सकता है, राजनीतिक दल में इसकी सफलता संदिग्ध है.
लक्ष्मण सिंह जिस तरीके से राहुल गांधी को सीधे चैलेंज कर रहे हैं, वह मध्य प्रदेश में कांग्रेस संगठन को डील करने में कठिनाई होगी. कांग्रेस की रीति नीति के लिए ईमानदारी से लड़ाई कोई भी लड़ेगा तो उसे पहले आलाकमान से ही टकराना होगा.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की भीतरी टकराहट की आवाजें तो दूर-दूर तक सुनाई पड़ रही है. मनमर्जी की लक्ष्मण रेखा बनाकर व्यक्तिवादी फैसलों के कारण अगले चुनाव तक तो यह आवाजें तो पत्थरबाजी में बदल सकती हैं.