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प्रतिपक्षी एकता पर अभी तक तो सवालिया निशान

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 19 Mar

सार

क्षेत्रीय दल राज्यों के हिसाब से सीटों की दावेदारी जता रहे हैं..!!

janmat

विस्तार

 

सम्मिलित प्रतिपक्ष इंडिया एलायंस की चार बैठकों के बावजूद सीटों के तालमेल और प्रधानमंत्री पद की दावेदारी का मुद्दा उलझने से लोकसभा चुनाव में भाजपा से मजबूती से संयुक्त रूप से मुकाबला करने पर संशय खड़ा हो गया है। इस गठबंधन के सभी दल अपनी सुविधा के हिसाब से चुनावी गणित लगा रहे हैं। क्षेत्रीय दल राज्यों के हिसाब से सीटों की दावेदारी जता रहे हैं। कोई भी दल यह नहीं चाहता कि उसके प्रभाव वाले राज्य में कांग्रेस या अन्य दलों से सीटों की शेयरिंग की जाए। यही कारण है कि विपक्षी एकता पर अभी तक सवालिया निशान लगे हुए हैं।

इंडिया गठबंधन की बैठक में शिवसेना ने 23 सीटों पर अपना दावा किया। उद्धव गुट ने कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव में उनके उम्मीदवारों ने काफी सीटें जीती थी, लेकिन अभी ज्यादातर उम्मीदवार एकनाथ शिंदे कैंप में जा चुके हैं। कांग्रेस ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए महाराष्ट्र में 23 सीटों की सहयोगी शिवसेना (यूबीटी) की मांग को खारिज कर दिया। महाराष्ट्र के कांग्रेस नेताओं का कहना था कि शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना में बगावत होने के बाद कांग्रेस ही राज्य में सबसे पुरानी पार्टी बची है।

पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण ने कहा कि पार्टियों के बीच समायोजन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हालांकि हर पार्टी सीटों की बड़ी हिस्सेदारी चाहती है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए शिवसेना की 23 सीटों की मांग काफी ज्यादा है। कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने उद्धव ठाकरे की यूबीटी की 23 संसदीय सीटों की मांग पर तंज कसते हुए कहा कि शिवसेना 23 सीटों की मांग कर सकती है, लेकिन वे उनका क्या करेंगे?वर्ष 2019 में अविभाजित शिवसेना बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का हिस्सा थी। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी अब एमवीए का हिस्सा है, जिसमें कांग्रेस और एनसीपी शामिल हैं। जून 2022 में एकनाथ शिंदे और 40 अन्य विधायकों ने शिवसेना नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर दिया, जिससे पार्टी में विभाजन हो गया और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई। इसके बाद शिंदे ने राज्य में सरकार बनाने के लिए बीजेपी से हाथ मिला लिया।

इंडिया गठबंधन में सीट शेयिरिंग का इंतजार किए बगैर ही समाजवादी पार्टी भी उत्तर प्रदेश में चुनाव की तैयारी कर रही है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इंडिया गठबंधन की जीत को लेकर बड़ा दावा कर दिया। अखिलेश यादव के मुताबिक अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर जीत दर्ज करेगा। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी हुई है। इंडिया गठबंधन उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटें जीतेगा। पूर्व सीएम ने यह भी कहा कि 80 सीटें जीतकर बीजेपी को सत्ता से बाहर करना है। सपा अध्यक्ष के बयान से जाहिर है कि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के लिए कोई स्थान नहीं बचा है, अर्थात कांग्रेस को अखिलेश यादव ने उत्तरप्रदेश से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। हालांकि कांग्रेस ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है। यह निश्चित है कि अखिलेश यादव आसानी से कांग्रेस से सीट शेयरिंग करने को तैयार नहीं होंगे। अभी तक तो सीट शेयरिंग का मुद्दा इंडिया गठबंधन के लिए सुलझाना आसान नहीं है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) अध्यक्ष ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन को लेकर कहा कि इंडिया गठबंधन देशभर में बीजेपी से मुकाबला करेगा। बंगाल में इस लड़ाई का नेतृत्व टीएमसी करेगी। इससे जाहिर है कि ममता ने कांग्रेस को साफ संदेश दे दिया है कि पश्चिम बंगाल में सीट शेयरिंग का मुगालता नहीं पाले। इस पर भी कांग्रेस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। कांग्रेस के बिहार में भी सीट शेयरिंग के दरवाजे आसानी से खुलने की संभावना नहीं है।

ममता और अखिलेश की तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस बात के समर्थक रहे हैं कि जिन राज्यों में जिन दलों का प्रभाव है, अर्थात पिछले लोकसभा चुनाव में जिस दल की सीटें जितनी हैं, उस हिसाब से सीट शेयरिंग की जाए। ऐसे में बिहार में कांग्रेस के लिए तालमेल बिठाना मुश्किल है। कमोबेश यही स्थिति अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप की है। केजरीवाल भी कांग्रेस को दिल्ली और पंजाब से बाहर रखना चाहते हैं।

इंडिया गठबंधन को पहले पर्याप्त संख्या में लोकसभा सीटें जीतने की जरूरत है। ममता और केजरीवाल ने खडग़े के नाम का दाव बड़ा सोच समझ कर चला। इससे राहुल गांधी के लिए परेशानी बढ़ सकती है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि 1977 का लोकसभा चुनाव विपक्ष ने मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए बिना लड़ा था। पवार ने यह भी भरोसा जताया कि अगले आम चुनाव के लिए इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) एक विकल्प के रूप में उभरेगा। अभी तक सीट बंटवारे पर कोई बातचीत नहीं हुई है। लेकिन सर्वसम्मति बनाने और मतभेदों को सुलझाने के लिए बातचीत शुरू हो गई है।