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स्पष्ट बहुमत की मजबूत सरकार ने बदले सब के सुरताल

सार

पीएम नरेंद्र मोदी की हर बात से असहमत विपक्षी राजनीतिक दलों की नारी वंदन विधेयक पर सर्वानुमति संसदीय लोकतंत्र के लिए बहुत सुखद है. अब तक विधेयक के विरोध की पृष्ठभूमि में सर्वानुमति के बदले हालात से देश की बदलती राजनीति की ज्योतिषीय गणना की जा सकती है.

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विस्तार

आजादी के अमृतकाल में नारी शक्ति को संसदीय लोकतंत्र में समानता का अधिकार देने का कानून बनाया जाना युग परिवर्तन जैसा ही क्रांतिकारी कहा जाएगा. आजादी के बाद 40 सालों तक तो महिलाओं को समानता का अधिकार देने का  विचार ही सामने नहीं आया. पहली बार जब 1996 में इस विचार का विधेयक लोकसभा में लाया गया था तब गठबंधन की कमजोर सरकार को आंख दिखाकर महिलाओं के हक़ का विधेयक रोक दिया गया था. 

तब विरोध करने वाले आज परिस्थितियों के कारण उत्पन्न सर्वानुमति के पीछे अपने चेहरे भले ही छिपा लें लेकिन यह ऐतिहासिक घटना स्पष्ट बहुमत और मजबूत सरकार के मजबूत इरादों के कारण ही संभव हो सकी है.

लालूप्रसाद यादव जो नारी शक्ति को अधिकार देने का विरोध कर रहे थे आज उनकी चुप्पी स्वेच्छा से नहीं है बल्कि यह उनकी राजनीतिक मजबूरी है. समाजवादी पार्टी का रुख मुलायम हुआ है तो वह जनाधार टूटने के खतरे से पैदा हुआ है. कांग्रेस का हाल भी राजनीतिक लाचारी और मजबूरी ही दिखा रहा है. नारी शक्ति वंदन को भी जाति में बांट कर देश को जो वेदना दी जा रही है उस पर केवल राजनीतिक संवेदना ही व्यक्त की जा सकती है.

हर राजनीतिक दल इस भय से ग्रसित है कि मोदी सरकार का ‘नारी शक्ति वंदन’ चुनाव में बीजेपी के अभिनंदन को मजबूती और विस्तार देगा. विपक्ष अब एक ओर यह कहने लगा है कि नारी वंदन अधिनियम तुरंत लागू किया जाए. भारत का संविधान भी आजादी के दो साल बाद लागू हो सका था. किसी भी नई क्रांतिकारी व्यवस्था को आकार लेने में संवैधानिक अपेक्षाओं को पूरा करने की तैयारी वक्त लेती है.

संसद से पास होने के बाद नारी वंदन विधेयक के कानून बनने में कोई विवाद होने की गुंजाइश ही नहीं बचती. संसद और विधानसभाओं में नारी शक्ति वंदन आरक्षण अब देश की सच्चाई बन चुका है. यह सच्चाई बदलने की ताकत अब किसी के बस में नहीं है. संसद से कानून पारित करने को मुमकिन बनाने की नरेंद्र मोदी की रणनीति देश को कुछ ऐसे संदेश देने में सफल हुई है जो भविष्य की राजनीति को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.

सबसे पहले तो यह संदेश गया है कि मोदी के हर काम से नफरत विपक्ष शायद अब नहीं कर सकेगा. दूसरा संदेश यह कि स्पष्ट बहुमत के साथ मजबूत सरकार ही फैसले लेने में सक्षम होती है. आने वाले चुनाव में भी स्पष्ट और मजबूत जनादेश की सरकार बनाने की पहल देश करेगा. भारत की लोकतांत्रिक यात्रा में ‘वीमेन लेड डेवलपमेंट’ का ढांचा आकार लेगा तो नारी शक्ति को अपना टैलेंट दिखाने का पूरा अवसर मिलेगा. 

नारी शब्द ही धैर्यवान, प्रेम से भरा, खुद को सशक्त करने के साथ नए जीवन को निर्मित करने और विचारों को बदलने की शक्ति का प्रतीक माना जाता है. दुनिया नारी शक्ति के कारण ही खूबसूरत है. नारी शक्ति वंदन विधेयक के प्रभावशील होने से भारत की राजनीतिक दुनिया भी ज्यादा खूबसूरत हो सकेगी.

जल्दबाजी हर मामले में कारगर नहीं होती. जनगणना और परिसीमन की संवैधानिक अनिवार्यता को पूरा किए बिना नारी शक्ति वंदन अधिनियम लागू करने के विचार संविधान की मर्यादा को खंडित कर सकते हैं. जो विपक्षी संविधान ख़तरे में होने का रोना रोते रहते हैं वे ही संवैधानिक प्रावधानों के विरूद्ध राजनीतिक माँग कर रहे हैं.

नरेंद्र मोदी की सरकार ने आरक्षण विधेयक का नाम ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ इस प्रकार से रखा है कि ना चाहते हुए भी नारी की वंदना का उच्चारण इसके समर्थक और विरोधियों दोनों को ही करना पड़ेगा. पुनरावृति से स्वभाव बनता है. अब हर राजनीतिक दल और नेता को मजबूरीवश नारी शक्ति वंदन का ही अपने भाषणों में उपयोग करना पड़ेगा. इसके कारण नेता के मन में और समाज के स्वभाव में नारी वंदन के भाव को मजबूती मिलेगी.

संसद का विशेष सत्र भारत के संसदीय लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण सत्र के रूप में याद किया जाएगा. राज्यसभा में यह विधेयक रात 12:00 बजे पारित हुआ था. भारत जब आजाद हुआ था तब भी आधी रात को ही सत्ता का हस्तांतरण किया गया था. नारी शक्ति को सत्ता में समान अवसर हस्तांतरण के लिए कानून का निर्माण भी आधी रात को होना प्रतीकात्मक रूप से नारी शक्ति की नई आजादी के रूप में हमेशा याद किया जाएगा.

विशेष सत्र शुरू होने के पहले एक पखवाड़े तक विपक्ष इस बात पर ही हैरान था कि यह सत्र क्यों बुलाया गया है? अब इस बात पर हैरान है कि नारी शक्ति वंदन विधेयक पास होने पर देश होली और दिवाली मना रहा है.

राहुल गांधी कह रहे है कि नारी शक्ति वंदन क़ानून तुरंत लागू किया जाए. यह कानून तो जनगणना और परिसीमन के बाद ही लागू होना संभव है लेकिन चुनावी प्रक्रिया में महिलाओं को 33% आरक्षण देने से राहुल गांधी और कांग्रेस को किसी ने नहीं रोका है. कांग्रेस अगर महिलाओं के सशक्तिकरण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के प्रति इतना समर्पित है तो फिर निकट भविष्य में होने वाले राज्यों के चुनाव में कांग्रेस को न्यूनतम एक तिहाई महिला प्रत्याशी चुनाव में उतार कर देश के सामने अपनी प्रतिबद्धता साबित कर सकती है.

कांग्रेस महिला आरक्षण जल्दी लागू करने और पिछड़े वर्गों की महिलाओं को भी आरक्षण में शामिल करने की मांग को पार्टी स्तर पर तुरंत पूरा कर सकती है. अगर कांग्रेस ऐसा करने का साहस दिखाती है तो निश्चित रूप से बाकी दलों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा और जब तक नारी शक्ति वंदन कानून प्रभावशील होगा उसके पहले ही महिलाओं को उनका हक और अधिकार मिल जाएगा.

राजनीति में बहुत अधिक सुधार की जरूरत है. महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ने से इन सुधारों को आकार लेने में सहूलियत हो सकती है .मातृशक्ति की गोद और बाहों के झूले में ही जीवन विकसित होता है. जो जीवन के विकास को सही दिशा देती है. वह राजनीति को भी सही दिशा देने में सक्षम और कारगर हो सकती है.

राजनीति में बचकानापन कम करने में भी महिलाएं मार्गदर्शक साबित हो सकती हैं. महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से राजनीतिक संस्कार भी सुसंस्कृत होने की दिशा में आगे बढ़ेंगे. नारी शक्ति वंदन कानून से भारत की राजनीति का हाल-चाल-ढाल, चरित्र और चेहरा बदलना सुनिश्चित है. बेटियों में अच्छी और बुरी नज़र को समझने की नैसर्गिक शक्ति होती है. नारी शक्ति वंदन कानून के लिए श्रेय की राजनीतिक होड़ का कोई औचित्य इसलिए भी नहीं होगा क्योंकि नारी शक्ति को सच पहचान में देर नहीं लगेगी.