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संधि के कसमे वादे, पीछे छिपे हैं असली इरादे

सार

लोक लाज और लोकतंत्र दोनों में सौगंध, कसम या शपथ का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है. चुनावी सफलता के बाद बनने वाली सरकार राजभवन में शपथ ग्रहण करती है लेकिन प्रदेश की सियासत में चुनावी सफलता के लिए ही कहीं कार्यकर्ताओं को तुलसी की सौगंध दिलाये जाने की खबरे हैं तो कहीं नेता अपने समर्थकों को पवित्र नदी में शपथ दिलाते नज़र रहे हैं.

janmat

विस्तार

चुनाव में जीत के बाद तो उन नेताओं की ही चलती है जिनके हाथ में पार्टी की चुटिया होती है. सरकारों के समय पार्टी की चुटिया हाथ में रखने वाले नेताओं का आचरण और व्यवहार लोकतांत्रिक और सामान्य रहता है तो पार्टी कार्यकर्ता विपक्ष की भूमिका में तन मन धन देकर समर्पण से काम करते हैं. जब कोई दल और उसके नियंत्रक नेता सरकारों के समय तानाशाही, स्वार्थ पूर्ति के प्रतीक के रूप में आचरण करते हुए देखे जाते हैं तब विपक्ष की भूमिका में लड़ाई के लिए विचारधारा और संगठन को समर्पित कार्यकर्ता या नेता तलाशना मुश्किल हो जाता है. हर क्षेत्र में कमोबेश ऐसे ही हालात बनते हैं जब संगठन की बजाय स्वार्थ की राजनीति सर्वोपरि हो जाती है.

एमपी कांग्रेस में चुनाव के पहले सौगंध ‘तुलसी तेरे आंगन की’ फिल्म रची जाने की खबरे हैं. वहीं भाजपा के एक विधायक भी समर्थकों को सरयू नदी में शपथ दिला दिला रहे हैं. संधि के कसमे वादे के साथ सियासत को साधने की कोशिश की जा रही है. हर संधि के पीछे समझौता सिद्धांतों का नहीं बल्कि स्वार्थों की पूर्ति का होता दिखाई पड़ रहा है. इसके पीछे असली इरादे सत्ता में लूट की हिस्सेदारी का परम और पुनीत लक्ष्य ही कहा जाएगा.

एमपी कांग्रेस को इस बार कार्यकर्ताओं को जोड़ने में ज्यादा कठिनाई महसूस हो रही है. 2018 के चुनाव में बीजेपी से मुकाबले के लिए लंबे समय से संघर्षरत कार्यकर्ताओं को जोड़ने में इतनी परेशानी नहीं आई थी जितनी इस बार आती हुई दिखाई पड़ रही है. इसका बड़ा कारण यह लगता है कि कांग्रेस की 15 महीनों की सरकार में पार्टी कार्यकर्ताओं ने यह महसूस ही नहीं किया कि सरकार उनकी पार्टी की चल रही है.

मुख्यमंत्री के रूप में कमलनाथ ने जिस तरह का एटीट्यूड और परफॉर्मेंस दिखाया था उससे तो कार्यकर्ताओं में घोर निराशा देखी गई थी. कार्यकर्ताओं को एक करने के लिए तुलसी के समक्ष सौगंध का जो दिखावा करने की जरूरत पड़ रही है वह अगर 15 महीने की सरकार में ईमानदारी से निभाया गया होता तो क्या कांग्रेस की सरकार का पतन होता? आम पब्लिक तो छोड़िये, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को कांग्रेस की सरकार के समय जिस तरह के हालातों से गुजरना पड़ा था, उसके दृश्य आज भी लोगों के मन मस्तिष्क में बने हुए हैं. मुख्यमंत्री से विधायकों की मुलाकात ही सामान्य रूप से संभव नहीं हो सकती थी.

कमलनाथ की सरकार के पतन के पीछे वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को सरकार में हिस्सेदारी नहीं देना प्रमुख रूप से माना जाता है. जिस दिन कमलनाथ की सरकार ने शपथ ग्रहण की थी उसी दिन से यह चर्चा शुरू हो गई थी कि पार्टी की चुटिया अपने हाथ में रखने वाले मध्यप्रदेश के नेताओं ने जिस ढंग से मंत्रिमंडल का गठन किया है उससे इस सरकार का बहुत लंबे समय तक चलना मुश्किल है.

विरोधियों से लड़ने के बजाय कांग्रेस की सरकार ने कांग्रेस के ही विरोधी गुटों को ठिकाने लगाने की रणनीति पर काम चालू कर दिया. ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक इस सीमा तक कैसे असंतुष्ट हो गए कि उन्हें अपने राजनीतिक वजूद को बदलने तक का फैसला करना पड़ा. केवल यह कह कर कि सांसद और मंत्री बनने के लिए सिंधिया के नेतृत्व में बगावत को अंजाम दिया गया था कांग्रेस के नेता खुद को और पार्टी को धोखे में ही रखेंगे. जब तक सच्चाई का सच्चाई के साथ आकलन नहीं किया जाएगा तब तक सारे कदम गलत दिशा में ही उठते रहेंगे. कांग्रेस से बगावत करने वाले नेता मंत्री पदों पर बने हुए थे फिर ऐसी परिस्थितियां क्यों बनी कि मंत्री भी बगावत करने पर उतर आए.

जब तक पार्टी की चुटिया अपने हाथ में रखने वाले नेता अपनी स्वार्थ पूर्ति और तानाशाही को जारी रखेंगे तब तक तुलसी की सौगंध भी आंगन में खुशियां लाने में कारगर नहीं हो सकेगी. कोई भी प्रार्थना-पूजा या अनुरोध अगर स्वार्थ की पूर्ति के लिए किया जाता है तो उसका परिणाम बहुत फलदायक नहीं देखा गया है.

सबसे पहले तो कार्यकर्ताओं को नहीं बल्कि पार्टी की चुटिया अपने हाथ में रखने वाले चुनिंदा नेताओं को सार्वजनिक रूप से शपथ और संधि का ऐलान करना चाहिए. इन नेताओं को इस बात के लिए भी प्रदेश के लोगों से क्षमा याचना करना चाहिए कि सरकार गठन के समय राजभवन में शुद्ध अंतःकरण से सबके साथ न्याय करने की जो शपथ ग्रहण की गई थी उसको क्यों पूरा नहीं किया गया? भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर सरकार में आने के बाद भ्रष्टाचार के मामलों की जांच क्यों नहीं कराई गई. इसके विपरीत मुख्यमंत्री सचिवालय में हर प्रमुख माफिया के लिए अलग-अलग ओएसडी क्यों बना दिए गए?

कार्यकर्ताओं में एकता और संधि से क्या होगा? जब अवसर आएगा तो फिर क्या वैसा ही अनुभव प्रदेश को नहीं मिलेगा जो 15 महीने में प्रदेश के लोगों ने देखा है. सबसे पहले इस बारे में उन नेताओं को जनता के सामने अपनी बात रखनी चाहिए कि 15 महीने में लोकतंत्र के साथ कांग्रेस की ओर से क्या गलतियां की गई थी और भविष्य में ऐसी गलतियां नहीं दोहराई जाएंगी. दिनोंदिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनेताओं के चाल चरित्र और चेहरे एक्सपोज होते जा रहे हैं. विकल्पहीनता का लाभ उठाकर कुछ हासिल करना बहुत उपलब्धि नहीं मानी जा सकती.

कोई भी वस्त्र कितनी बार सिलकर पहनने योग्य बनाया जा सकता है. जब पहनने वाला स्वयं कुर्ता फाड़ कर उसके इतने टुकड़े कर दे कि उसको फिर से सिलना ही मुश्किल हो जाए तो फिर नया कुर्ता ही बनाना पड़ेगा. कुछ भी नया बनाने के लिए बहुत मेहनत निष्ठा और ईमानदारी की जरूरत होती है. पुराने अनुभवों पर तो कांग्रेस के भविष्य की बुनियाद को बहुत मजबूत कहना जल्दबाजी होगी. कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका में संधि एकता के लिए सौगंध से ज्यादा सरकार में जनसेवा के लिए शुद्ध अंतःकरण से न्यायपूर्ण लोकतांत्रिक सरकार संचालन के लिए सौगंध लेने की जरूरत है. बूढी नजरों से सुई में धागा भी नहीं डाला जाता, एमपी कांग्रेस ऐसी नजरों से नया भविष्य लिखने की चुनौती प्रकृति को दे रही है.