वैसे कोविड़ उत्पत्ति को लेकर एक बार फिर दुनिया के वैज्ञानिकों के बीच बहस छिड़ गई है, वैज्ञानिकों के एक दल ने कोविड की उत्पत्ति को चीन में वुहान की जानवरों की मंडी में बेचे जाने वाले रेकून कुत्तों से जोड़ा है..!
पिछले सप्ताह जब मैंने कोविड दुष्काल नए चक्र के बारे में लिखा था,कुछ मित्र सहमत नहीं थे, आज भोपाल में घटी घटना ने सतर्कता बरतने की ज़रूरत को रेखांकित कर दिया ।नौसेना प्रमुख एडमिरल हरि कुमार प्रधान मंत्री के साथ कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हो सके। कोविड होने की वजह से उन्हें कल देर शाम ही स्पेशल प्लेन से दिल्ली लौटना पड़ गया । प्रधानमंत्री मोदी के आने से पहले कॉन्फ्रेंस और सुरक्षा से जुड़े 1300 कर्मचारियों-अधिकारियों का कोविड टेस्ट हुआ था। इनमें डॉक्टर, सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं। नौसेना प्रमुख को मिलाकर 22 की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। सभी को ड्यूटी से हटा दिया गया था।
वैसे कोविड़ उत्पत्ति को लेकर एक बार फिर दुनिया के वैज्ञानिकों के बीच बहस छिड़ गई है। वैज्ञानिकों के एक दल ने कोविड की उत्पत्ति को चीन में वुहान की जानवरों की मंडी में बेचे जाने वाले रेकून कुत्तों से जोड़ा है। ऑनलाइन प्रकाशित एक शोधपत्र में उन्होंने कहा है कि वुहान की मंडी में 2019 के अंत में बेचे गए रेकून कुत्ते कोविड के वाहक थे। नमूने एकत्र किए जाने से ठीक पहले ये जानवर मौजूद थे। इस तरह वे मनुष्यों में वायरस को प्रसारित करने के लिए एक संभावित वाहक बन गए। कुछ लोगों ने रिपोर्ट की आलोचना भी की है क्योंकि यह सिर्फ रेकून कुत्ते के संक्रमित होने का सबूत देती है। नई रिपोर्ट तैयार करने वाले वैज्ञानिकों में कैलिफोर्निया के ला जोला स्थित स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टिट्यूट के डेनिश जीवविज्ञानी डॉ. क्रिस्टियन एंडरसन शामिल हैं। शोधकर्ताओं के निष्कर्ष कोविड की प्राकृतिक उत्पत्ति का समर्थन करने वाले साक्ष्यों को मजबूत करते हैं।
एक संभावना यह है कि वायरस किसी व्यक्ति से एक रेकून कुत्ते में पहुंचा होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की डॉक्टर मारिया वान केरखोव ने कहा कि रिपोर्ट में कोई पुख्ता सबूत नहीं है। अमेरिका की संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) और अमेरिकी ऊर्जा विभाग दोनों मानते हैं कि कोविड महामारी की उत्पत्ति मानव निर्मित है। कुछ विशेषज्ञों का यह भी दावा है कि कोविड का अनोखा स्पाइक प्रोटीन, जिसका इस्तेमाल वह लोगों को संक्रमित करने के लिए करता है, मानव इंजीनियरिंग की पहचान दिखाता है। कोरोना वायरस की प्राकृतिक या मानव निर्मित उत्पत्ति के लिए प्रत्यक्ष और निर्णायक साक्ष्य अभी तक सामने नहीं आए हैं।
यह सही है कि कोविड महामारी के दौरान विकसित की गई बेहतर तकनीक की बदौलत हम वायरसों के प्रकोप का बेहतर ढंग से पता लगाने में सक्षम हुए हैं, लेकिन वायरसों का खौफ ख़त्म नहीं हुआ है। दुनिया में करीब 17 लाख वायरसों की पहचान की जानी बाकी है जो इस समय स्तनधारियों और पक्षियों को संक्रमित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनमें से 8 लाख से ज्यादा वायरस मनुष्यों को संक्रमित करने की क्षमता रखते हैं। वायरस कैसे उत्पन्न होते हैं, यह समझने के लिए कि हमें पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत को देखना होगा। शुरू-शुरू में वायरस कैसे अस्तित्व में आए, इसके बारे में कई सिद्धांत हैं, लेकिन वे सभी इस बात से सहमत हैं कि वायरस अरबों वर्षों से जीवों के साथ-साथ विकसित हो रहे हैं। जब उनके स्थिर सह-विकास में बाधा आती है तब हम मुश्किल में पड़ सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मानव आबादी में वायरसों के उभरने का मुख्य कारण मनुष्य और उसकी गतिविधियां हैं।वायरस जानवरों के माध्यम से वे वहां मनुष्यों में छलांग लगाने लगे। इसे ज़ूनोसिस कहा जाता है। नए उभरने वाले लगभग 75 प्रतिशत संक्रामक रोग ज़ूनोसिस के कारण होते हैं।
विभिन्न प्रजातियां जो आमतौर पर संपर्क में नहीं थीं, एक ही वातावरण को साझा करने लगीं। इस समीकरण में मनुष्यों को जोड़ दिया जाए तो आपके पास एक नए वायरस के उभरने का नुस्खा तैयार हो जाता है। शहरीकरण हमेशा उच्च जनसंख्या घनत्व की ओर जाता है। इससे वायरस के प्रसार के लिए आदर्श परिस्थितियां बनती है। कस्बों और शहरों का तेजी से विकास अक्सर स्वच्छता और स्वास्थ्य देखभाल जैसे बुनियादी ढांचे को पीछे छोड़ देता है, जिससे वायरस के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है। जलवायु परिवर्तन भी वायरस के प्रसार में योगदान दे रहा है।
वैसे तो कोविड महामारी के दौरान विज्ञान अभूतपूर्व रफ्तार से आगे बढ़ा है, जिसके परिणामस्वरूप वायरस के प्रकोप और विकास की निगरानी के लिए नए और बेहतर तरीकों का विकास हुआ है। अब कोरोना वायरस पर नजर रखने वाले कई वैज्ञानिक अपना ध्यान अन्य वायरसों की निगरानी पर भी लगा रहे हैं। फिर भी सतर्कता ज़रूरी है, आपकी सतर्कता समाज को दिशा देती है।