सप्तपुरी उज्जैयनी नगरी में अगला सिंहस्थ कुंभ 2028 में होगा। जिन श्रद्धालुओं ने सिंहस्थ कुंभ 2016 की छटा अपनी आंखों से नहीं देखी होगी, उन्हें 'महाकाल लोक' के लोकार्पण में सिंहस्थ कुंभ की भव्यता और दिव्यता का आभास हो गया होगा। सोमनाथ का लाल, काशी का भाल, ‘हीरा का मोती’ नरेंद्र मोदी पहुंचा है महाकाल। श्री महाकालेश्वर के शरणागत होने का अवसर, जीवन को धन्य करने और पुण्य लाभ का मौका, महाकाल की कृपा से ही मिलता है। यह काल का ही प्रताप है कि कभी तोड़े गए मंदिर और परिसर की विरासत और गौरव की पुनर्स्थापना का ये काल आया है।
महाकाल सत है, मृत्युकाल असत है। सबको जगाने की भारतीय विरासत और गौरव का दिव्य अवसर बनेगा 'श्री महाकाल लोक'। महाकाल की नगरी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सांस्कृतिक इतिहास रचा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 'महाकाल लोक' के लोकार्पण के साथ ही महाकाल नगरी की दिव्यता और भव्यता की गूंज विदेशों तक में सुनाई दे रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाकाल मंदिर में जब प्रवेश कर रहे थे तब उनके साथ राज्यपाल मंगूभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी में शामिल हुए नए नवेले युवा चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया दिखाई पड़ रहे थे। सिंधिया की मौजूदगी चौंकाने वाली लग रही थी। वैसे महाकाल मंदिर और सिंधिया राजघराने का बहुत पुराना नाता है। 'महाकाल लोक' के लोकार्पण के अवसर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आक्रांताओं के आक्रमण के बाद अपने पूर्वज राणोजी राव सिंधिया द्वारा बनवाए महाकाल मंदिर का जिक्र कर इस नाते का स्मरण भी किया।
मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। प्रदेश में पिछला चुनाव सिंहस्थ कुंभ के बाद हुआ था। अब अगले चुनाव के बाद उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होगा। सिंहस्थ जैसा दिव्य और भव्य 'महाकाल लोक' का लोकार्पण अगले विधानसभा चुनाव पर अवश्य असर डालेगा। शायद इसीलिए कांग्रेस और भाजपा के बीच में महाकाल परिसर के सौंदर्यीकरण का श्रेय लेने की रस्साकशी चल रही है।
कांग्रेस जहां कह रही है कि उसकी 15 महीने की सरकार में इस प्रोजेक्ट को मंजूर किया गया था, वही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 2018 में कैबिनेट द्वारा इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए दी गई मंजूरी का ब्यौरा दे रहे हैं। दोनों दलों की ऐसी मान्यता लगती है कि 'महाकाल लोक' की कृपा से ही मध्यप्रदेश में सत्ता की अगली चाबी मिलेगी।
सिंहस्थ कुंभ के साथ तो यह मिथक जुड़ा हुआ है कि जो भी सरकार या मुख्यमंत्री सिंहस्थ कुंभ कराता है, वह सिंहस्थ कुंभ के बाद सत्ता के सिंहासन से उतर जाता है। साल 2016 के पहले 2 बार जब सिंहस्थ कुंभ हुआ था तब 1992 में सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री थे और 2004 में उमा भारती मुख्यमंत्री थीं। दोनों नेता सिंहस्थ कुंभ के बाद अपने पदों से हटना पड़ा था।
सिंहस्थ कुंभ 2016 के बाद 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में भी सिंहस्थ का मिथक सही साबित हुआ था। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चुनाव में उतरी बीजेपी सत्ता में नहीं आ पाई थी। जनादेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ गया था। अब 'महाकाल लोक' के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव सत्ता के साथ जुड़े मिथक को क्या तोड़ने में सफल होगा?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता मध्यप्रदेश में सर्वविदित है। प्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड शिवराज सिंह चौहान ने बनाया है। इस रिकॉर्ड के तो निकट भविष्य में टूटने की कोई संभावना भी नहीं दिख रही है। राजनीति हमेशा संभावनाओं का खेल होती है। राजनीति में मैसेज महत्वपूर्ण होता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रधानमंत्री की यात्रा में मिले महत्व के संदेश दूरगामी असर डाल सकते हैं।
मनुष्य को भले इस बात का आभास नहीं रहा हो कि 'श्री महाकाल लोक' का निर्माण होगा लेकिन महाकाल को तो हमेशा ज्ञात रहा होगा कि परिसर के विस्तार का काम कब शुरू होगा और कब पूरा होगा? 'महाकाल लोक' प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए कमलनाथ यदि अपनी पीठ थपथपाना चाहते हैं तो इस संयोग को भी ध्यान रखना जरूरी है कि कमलनाथ के सहयोगी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया महाकाल लोक के लोकार्पण समारोह के साक्षी बने हैं।
राजनीति अपनी जगह है लेकिन 'महाकाल लोक' के निर्माण और महाकाल परिसर की दिव्यता और भव्यता की अलौकिक छटा ने श्रद्धालुओं को अपनी विरासत पर गौरव करने का अवसर दिया है। जीवन में ऐसे भव्य और दिव्य तीर्थ स्थलों पर जाने का मौका जिसको भी मिलता है वह अब महाकाल के दर्शन के साथ ही पूरे शिवलोक का दर्शन 'महाकाल लोक' में कर सकेगा। हमारी धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत भारत की एकता और एकजुटता का आधार रही है। युवा पीढ़ी इस विरासत से सतत परिचित रहे उसे अपनी विरासत का गौरव आभास होता रहे, इसके लिए 'महाकाल लोक' जैसे दिव्य प्रयास बहुत जरूरी और सार्थक हैं।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का पूरी दुनिया में विशिष्ट महत्व और गरिमा है। 'महाकाल लोक' की दिव्यता और भव्यता श्रद्धालुओं को उज्जैयनी के लिए आकर्षित करेगी। मध्यप्रदेश और 'महाकाल लोक' भारत के सांस्कृतिक गौरव और आध्यात्मिक जगत में अपनी ध्वज पताका लहराता रहेगा। ऐसा विश्वास हर मध्यप्रदेश वासी के दिल में मजबूत हुआ है।