जीवन मिला था, भाग्य से अच्छे परिवार में जन्म हुआ, पिता के रूप में एक आईपीएस अधिकारी का साया, समृद्ध परवरिश भी हुई और प्रारब्ध के कर्म फलों के कारण ईश्वर ने आईएएस अधिकारी बना कर मानव जाति की सेवा का एक बड़ा अवसर दिया| लेकिन इस अवसर को अरविंद जोशी नामक ये शख्सियत समझ नहीं नहीं पायी| तामसिक शक्तियों ने ऐसा घेरा कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य ही विस्मृत हो गया|
मध्य प्रदेश सरकार के बर्खास्त आईएएस अधिकारी अरविंद जोशी की आत्मा लंबी बीमारी के चलते इस देह को छोड़ने को मजबूर हो गयी| आखिर कब तक इस बदनाम शरीर को वो ढोती?
निश्चित ही अरविंद जोशी की आत्मा को इस शरीर को छोड़ने का कोई पछतावा नहीं होगा, क्योंकि ईश्वर के दिए हुए इस साधन का “मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार” ने सदुपयोग करने की बजाय इतना दुरुपयोग किया, कि जीवन के आखिरी 12 साल शारीरिक और मानसिक संताप में बीते|
जीवन मिला था, भाग्य से अच्छे परिवार में जन्म हुआ, पिता के रूप में एक आईपीएस अधिकारी का साया, समृद्ध परवरिश भी हुई और प्रारब्ध के कर्म फलों के कारण ईश्वर ने आईएएस अधिकारी बना कर मानव जाति की सेवा का एक बड़ा अवसर दिया| लेकिन इस अवसर को अरविंद जोशी नामक ये शख्सियत समझ नहीं नहीं पायी| तामसिक शक्तियों ने ऐसा घेरा कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य ही विस्मृत हो गया|
कहते हैं आत्मा जब जन्म लेती है जन्म से पहले कुछ संकल्प लेती है| जन्म से पहले ऐसे उद्देश्य तय किए जाते हैं जो आत्मा की आगे की यात्रा में सहायक सिद्ध हों| यह उद्देश्य अपने प्रारब्ध के ऋणों की मुक्ति से भी संबंधित होते हैं, साथ ही आध्यात्मिक उन्नति का मकसद भी इनमें निहित होता है|
लेकिन जन्म लेते ही मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार इतने गहरे हो जाते हैं कि व्यक्ति को जन्म से पहले लिए गए अपने प्रण याद नहीं रहते| उसे यह पता नहीं चलता कि उसे यह शरीर किस वजह से मिला| वो अंतरात्मा की सुनना बंद कर देता है| शरीर के साथ “रुतबा पैसा और पद” ईश्वर ने उसे क्यों दिया? वह उस पद का दुरुपयोग करने लगता है!
अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर पैसा कमाने में जुट जाता है| जबकि इस पद से जुड़ा हुआ ईमानदारी से मिलने वाला वेतन ही इतना पर्याप्त होता है कि जीवन बहुत अच्छी तरह से चल जाए| सरकारी सुख सुविधाएं मिलती हैं सो अलग, और यदि पत्नी भी उसी स्तर की अधिकारी हो तो पति-पत्नी दोनों की आमदनी मिलाकर इतना पैसा हो जाता है कि न सिर्फ खुद का जीवन, बल्कि आने वाली कई पीढ़ी भी उस इमानदारी से मिली आमदनी से अच्छे ढंग से गुजारा कर सकती है|
लेकिन अरविंद जोशी भौतिक साधन संसाधन जुटाने की लिप्सा में इस कदर लिप्त हुए कि वो अच्छे बुरे में अंतर करना भूल गए| आटे में नमक करते करते उन्होंने नमक को ही आटा बना डाला|
अरविंद जोशी के अंदर पैसा कमाने की इतनी हवस न जाने कैसे पैदा हो गई? अपने पद का दुरुपयोग कर कैश जुटाने के साथ-साथ अन्य तरह की चल अचल संपत्तियां गैरकानूनी ढंग से जुटाने का सिलसिला शुरू हो गया| शायद उनकी आत्मा को यह मंजूर नहीं था| आत्म शक्ति यदि मजबूत हो तो व्यक्ति को उसी जन्म में दंड दिला देती है|
लेकिन आत्म शक्ति कमजोर होने से व्यक्ति अंतिम समय तक गैरकानूनी कृत्या करता रहता है और उसे तब अपनी गलती का अहसास होता है जब ये शरीर छूट चुका होता है| धर्म शास्त्र और जीवात्मा जगत की रिसर्च कहती हैं जिसने अपनी गलती कि सजा इस शरीर में रहते ही नहीं भोगी उसे जीवात्मा लोंक में भयानक दंड भोगना पड़ता है,अगला जन्म भी सजा की तरह होता है|
अरविन्द जोशी की “आत्मशक्ति” ही थी जिसने सारे काले कारनामे उजागर करवा दिए| उनके साथ अच्छा ही हुआ जो काली कमाई पकड़ी गई| देश में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी आईएएस अधिकारी को भ्रष्टाचार के चलते “बर्खास्त” किया गया, उनकी पत्नी को भी बर्खास्त कर दिया गया| दोनों ही मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी थे|
अरविंद जोशी चाहते तो सुख की जिंदगी जी सकते थे| अपने पद से लोगों की जिंदगी में सुधार लाने के प्रयास कर सकते थे| लेकिन उनकी पैसे कमाने की अंधी लालसा ने खुद के साथ माता-पिता और रिश्तेदारों की इज्जत भी धूल में मिला दी| पूरे देश में अरविंद जोशी भ्रष्टाचार का पर्याय बन गए| यह सब सह पाना इतना आसान नहीं था|
अरविंद जोशी बीमार होते चले गए| उन्होंने सबसे मिलना जुलना बंद कर दिया| आखिरकार लंबी बीमारी के बाद इलाज कराते हुए नई दिल्ली में उनका निधन हो गया| उनके निधन की खबरें जिस रूप में छपी वो उन सभी लोगों को अलर्ट करने के लिए काफी है जो गलत ढंग से पैसा अर्जित करने में जुटे हुए हैं|
तमाम अखबारों और मीडिया माध्यमों ने अरविंद जोशी के निधन के साथ उनकी बर्खास्तगी और काली कमाई का जिक्र किया| व्यक्ति की मृत्यु के समय उसे जिस रूप में याद किया जाए वही उसकी कमाई होती है| लेकिन अरविंद जोशी नाम का यह शख्स मृत्यु के साथ भी, मृत्यु के बाद भी अपनी अच्छाइयों के लिए नहीं बल्कि काली कमाई के लिए याद किया गया| जब भी भ्रष्टाचार के मामलों का जिक्र होगा तो अरविंद जोशी तब तब याद किए जाएंगे|
आज जब अरविंद जोशी की आत्मा यह शरीर छोड़ चुकी है तो निश्चित ही उस आत्मा को शांति महसूस हुई होगी, क्योंकि इस शरीर के साथ का नाता अच्छा नहीं रहा| उसे दुख होगा कि इस जीवन की यात्रा निरर्थक हो गयी| पूरा जीवन ही बर्बाद हो गया| ना तो माया मिली ना राम| यहाँ बता दें कि आत्मा सिर्फ प्रेरणा दे सकती है| ईश्वर भी मनुष्य की निर्णय लेने की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करता|
जिस माया के चक्कर में सब कुछ किया वह माया साथ नहीं गयी| उस माया के चलते पद, मान मर्यादा, सेहत, सुकून सब गया| इस सब से हासिल हुआ “पाप” न जाने कितने जन्मों तक भुगतना पड़ेगा|
भारतीय धर्म दर्शन कहता है “पड़ा रहेगा माल खजाना छोड़ त्रियासुत जाना है| कर सत्संग अभी से प्यारे नहीं तो फिर पछताना है|”
निश्चित ही माल खजाना पड़ा रह जाता है| अरविंद जोशी एक सबक हैं| एक ऐसी सीख जो हम सबके समझ में आ जाए तो शायद आज ही इस जीवन “दशा और दिशा” बदल जाए|
अरविंद जोशी इस इस दुनिया से चले गए| हर जाने वाले के लिए सनातन धर्म में सद्गति,आत्मा की शांति की प्रार्थना और मांग की जाती है कि ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें|
ऐसे कितने लोग होंगे जिन्होंने अरविंद जोशी को इस तरह से श्रद्धांजलि दी हो, और उनकी सद्गति और ईश्वर के चरणों में स्थान मिलने की प्रार्थना की हो |
कबीर दास जी ने कहा है कि “साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय, मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए” इससे ज्यादा की जरूरत क्या है?
मेरा घर भी भर जाए मेरे आस-पास के लोग भी समृद्ध हो जाएं और मेरी सात पीढ़ियां भी धन-धान्य से समृद्ध हो जायें| लेकिन कहते हैं कि “पूत सपूत तो का धन संचय, पूत कपूत तो क्यों धन संचय?
धन कभी किसी के साथ नहीं जाता| धनसंपदा, संपत्ति सब यहीं रह जाती हैं| अंत समय में साथ जाता है तो “पुण्य”, अंतर आत्मा की शांति, अच्छी ऊर्जाएं, लोगों की शुभकामनाएं, प्रार्थनाएं, दुआएं।