बिहार और फिर उत्तर प्रदेश से फैली आग देश के कई और राज्यों तक जा पहुंची है. अग्निपथ योजना के खिलाफ प्रदर्शन के चलते 350 से अधिक ट्रेनों पर असर पड़ा है| कई स्थानों पर ट्रेनों को आग के हवाले कर जाने के समाचार हैं..!
'अग्निपथ' के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन तेज होता जा रहा है| कोई भारत बंद की बात कर रहा है, तो कोई इस योजन की वापिसी की मांग कर रहा है | सरकार जो कर सकती है, वो पुनर्विचार है | पुनर्विचार की कोशिश के बीच देश के कम से कम 9 राज्यों में प्रदर्शन देखे जा रहे हैं| बिहार और फिर उत्तर प्रदेश से फैली आग देश के कई और राज्यों तक जा पहुंची है| अग्निपथ योजना के खिलाफ प्रदर्शन के चलते 350 से अधिक ट्रेनों पर असर पड़ा है| कई स्थानों पर ट्रेनों को आग के हवाले कर जाने के समाचार हैं | दुर्भाग्य यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब सरकार बेरोजगारी के मुद्दे पर देर से ही सही, कुछ करने को आगे आई थी |
देश कोरोना संकट से उपजी बेरोजगारी और रूस-यूक्रेन युद्ध से बाधित विश्व आपूर्ति शृंखला से उपजी महंगाई की त्रासदी से जूझ रहा है, केंद्र सरकार द्वारा बेरोजगारों के लिये नौकरियों का पिटारा खोलने की घोषणा सुकून नहीं दे सकी है | पहली बार है कि एक साथ 10 लाख सरकारी नौकरियों की भर्ती करने की घोषणा हुई हो। इसमें ही सेना के तीनों अंगों में ‘अग्निपथ योजना’ के तहत 46 हजार ‘अग्निवीरों’ की भर्ती की घोषणा भी है | जिसे लेकर देश में बवाल मचा है | इस योजना के व्यावहारिक व दूरगामी पहलुओं को लेकर विमर्श जारी है।
सब जानते है कि कोरोना दुष्काल से बेरोजगारी में अप्रत्याशित उफान आया। देशव्यापी सख्त लॉकडाउन ने इस संकट में इजाफा किया। बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरी गई तो कई लोगों को कम वेतन पर काम करना पड़ा। यहां तक कि वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही में बेरोजगारी दर 23.5 तक जा पहुंची थी। वहीं इससे पहले वर्ष 2016 में नोटबंदी के चलते भी बेरोजगारी बढ़ी थी ।
दस लाख नौकरियों की घोषणा के राजनीतिक निहितार्थों से कोई इनकार नहीं कर सकता इस साल कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होने हैं। जब तक दस लाख भर्तियों की डेढ़ साल की प्रक्रिया पूरी होगी, तब तक 2024 के महासमर का बिगुल बज चुका होगा । यही इस सारे बवाल की जड़ है |
अभी तक दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था के दावे के बावजूद रोजगार के अवसरों का सृजन न हो पाना विकास के मॉडल पर सवालिया निशान लगा रहा था। ऐसे में इस कि दिसंबर 2023 तक भर्तियों का काम पूरा कर लिया जायेगा। आज जरूरत इस बात की है कि चयन की प्रक्रिया पारदर्शी हो और किसी तरह की अनियमितताओं की गुंजाइश न रहे। तभी सरकार कीइस घोषणा की सार्थकता सिद्ध होगी ।
पिछले दिनों संसद में बताया गया था कि केंद्र सरकार के अधीन चालीस लाख स्वीकृत पदों में से 8.72 लाख पद खाली हैं। यदि इसमें राज्यों के आंकड़ों को भी जोड़ लिया जाये तो संख्या बड़ी हो सकती है। निस्संदेह, आज भी देश के युवाओं की पहली प्राथमिकता सरकारी नौकरी ही है, उनके लिये तो यह सुनहरा अवसर जैसा ही था, जो दुर्भाग्य से आन्दोलन में बदलता दिख रहा है । देश में केंद्र सरकार के अधीन आने वाले पांच बड़े विभागों रक्षा, गृह, डाक, रेलवे व राजस्व डिपार्टमेंट में ही कुल 92 प्रतिशत नौकरियां उपलब्ध होती हैं। ऐसे वक्त में जब बढ़ती आबादी के साथ विश्व की प्रगति के साथ कदम से कदम मिलाना जरूरी है तो हमें निजी क्षेत्र में भी रोजगार के बड़े अवसर सृजित करने चाहिए ।
सरकारी नौकरियों की एक सीमा होती है। उसकी उत्पादकता के प्रश्न पर भी मंथन जरूरी है। सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ें। निस्संदेह, युवाओं के देश में बेरोजगारी संकट एक गंभीर चुनौती थी। तभी विभिन्न विभागों,मंत्रालयों में मानव संसाधनों की स्थिति की समीक्षा के बाद ही दस लाख नौकरियों की घोषणा की गई है। अब जरूरत इस बात की है कि भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी न हो,यह सरकार की साख के लिये भी जरूरी है। तमाम भर्ती परीक्षाओं में पेपर आउट होने के मामले उजागर हुए हैं, राज्यों में ऐसे अभियान बेरोजगारी संकट को दूर करने के लिये चलाये जाएं, जो पारदर्शी हों ।