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उदयपुर डिक्लेरेशन, बनेगा कांग्रेस उदय का सोल्यूशन? बिना वैचारिक दृष्टि, कैसे बदलेगी पार्टी की सृष्टि? सरयूसुत मिश्र

सार

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चिंतन शिविर के अपने शुरुआती वक्तव्य में कहा था कि “एक असाधारण स्थिति के लिए असाधारण समाधान की आवश्यकता होती है” उनका यह विचार सुनकर ऐसा लग रहा था कि यह चिंतन शिविर देश और पार्टी की चुनौतियों से निपटने के लिए कोई असाधारण समाधान सुझाएगा| कोई वैचारिक दृष्टि देश के सामने रखी जाएगी, विजन डॉक्यूमेंट आएगा जो आम लोगों को सोचने पर मजबूर करेगा, कांग्रेस के समर्थन में चलने के लिए प्रेरित करेगा..!

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विस्तार

चिंतन शिविर के आखरी दिन उदयपुर डिक्लेरेशन के नाम से जो विचार सामने आए हैं उनमें कोई असाधारण समाधान की गुंजाइश नहीं है| दिल्ली दरबार के कब्जे से निकालकर जन नेताओं की सामूहिक नेतृत्व की इच्छा फलीभूत होती नहीं दिखाई पड़ रही है| दिल्ली दरबार जो गांधी परिवार को फीडबैक देता है उसमें केवल नेता ही नहीं हैं|

गांधी परिवार के वफादारों की करीबी मंडली में राजनेता, पत्रकार, सिविल सेवक, व्यापारी और नागरिक समाज के कार्यकर्ता शामिल हैं| यही करीबी मंडली गांधी परिवार के फैसलों को प्रभावित करती है| इस मंडली में कोई बड़ा बदलाव संभव नहीं है| कांग्रेस के संगठनात्मक ढांचे में बदलाव के बारे में जो भी घोषणाएं या प्रयास किए जाते हैं, उन में यथास्थिति बनाए रखने में इस मंडली की रुचि होती है और इसे ही अंततः सफलता मिलती है|

कांग्रेस के लिए सबसे जरूरी एक स्पष्ट वैचारिक दृष्टि है| कांग्रेस स्पष्ट रूप से यह कहने में असमर्थ है कि देश की चुनौतियों के मुद्दे पर उसका क्या स्पष्ट दृष्टिकोण है, यही उसकी सबसे बड़ी विफलता है| पंजाब के सीनियर कांग्रेस नेता सुनील जाखड़ ने उसी दिन पार्टी छोड़ दी जिस दिन उदयपुर में चिंतन शिविर हो रहा था| उन्होंने फेसबुक पर अपने वक्तव्य में कांग्रेस की वास्तविक स्थिति का आइना दिखाया है|

इनके पिता बलराम जाखड़ कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता नेता थे| वह 10 साल तक लोकसभा अध्यक्ष रहे| मध्य प्रदेश के राज्यपाल के साथ अन्य पदों पर भी उन्होंने जिम्मेदारी निभाई है| सुनील जाखड़ कांग्रेसी परिवार से आते थे| उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी| जो दर्द उन्होंने बयान किया है उसका कांग्रेस में ना समाधान पहले हुआ है ना आगे होने की कोई उम्मीद है|

देश के प्रतिष्ठित और एक बड़े अखबार ने चिंतन शिविर के चित्र प्रकाशित करते हुए चित्र में शामिल सभी नेताओं की उम्र का ब्यौरा दिया है| कैप्शन में लिखा है “देकर युवाओं पर जोर- हो रहे हैं भाव विभोर” यह कितना बड़ा संदेश है, जिन युवाओं को आगे बढ़ाने की बात हो रही है, उनकी आवाज रखने वाला तो कोई वहां है ही नहीं| अधिकांश नेता 65 साल से ऊपर के हैं|

युवाओं की सोच ही सामने नहीं आएगी तो बुजुर्ग, युवाओं को बढ़ाने का केवल दिखावा करेंगे| वैसा ही जैसा वो अभी तक करते आए हैं| कांग्रेस किसी भी मुद्दे पर स्पष्ट राय रखने से बचती है| चिंतन शिविर में हिंदुत्व की बात भी उठी है| कुछ नेता हार्ड हिंदुत्व तो कुछ सॉफ्ट हिंदुत्व की बात करते सुने गए| जो कांग्रेस पार्टी हिंदुत्व को ही हार्ड और सॉफ्ट में बांट कर देखने का महा पाप कर रही है| उसे देश के 80% हिंदुओं का समर्थन कैसे मिल पाएगा?

कांग्रेस  पार्टी का अध्यक्ष कौन होगा, इस पर चर्चाएं तो बहुत हुई, लेकिन कोई भी स्पष्ट संदेश चिंतन शिविर नहीं दे सका| वही “ढाक के तीन पात” सोनिया रहेंगी या राहुल गांधी अध्यक्ष बनेंगे! केवल इसी चर्चा में पूरा चिंतन शिविर सिमट गया|पार्टी अपनी रीति नीति में कोई भी सुधार करने का संदेश शिविर से नहीं दे सकी|

कांग्रेस अकेले अपने दम पर तो बीजेपी का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है| उसे गठबंधन की राजनीति को आगे बढ़ाना ही पड़ेगा| लेकिन चिंतन शिविर गठबंधन के लिए कोई मापदंड, मानदंड या दृष्टिकोण राजनीतिक दलों के सामने नहीं रख सकी|

आज देश में कानूनी लड़ाई के चलते काशी मथुरा के मुद्दे गरमाए हुए हैं| जो देश में चर्चा का विषय हैं उस पर कांग्रेस पार्टी अपना दृष्टिकोण नहीं बता सकी| पूरा देश कॉमन सिविल कोड की प्रतीक्षा कर रहा है| इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर कांग्रेस का दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं है|

देश में जो भी धार्मिक मुद्दे विद्यमान हैं  उन पर कांग्रेस कंफ्यूजन की स्थिति में है| इसी प्रकार जम्मू कश्मीर में धारा 370 और कश्मीर पंडितों के मामले में कांग्रेस ने कभी भी स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं रखा| जबकि बड़ी संख्या में कांग्रेस नेता दबी जुबान से इनका समर्थन करते नज़र आते हैं| 

कांग्रेस पार्टी ने जो आठ संकल्प व्यक्त किए हैं वह भी जुमले का मुकाबला करने के लिए जुमले जैसे हैं | कारपोरेट स्टाइल में संगठन को मशीनरी, कार्यकर्ता को मेनपावर और संगठन शक्ति को  मैनेजमेंट बताया है| जो कांग्रेस कभी सेवा की राजनीति करती थी, वह आज अपने चिंतन शिविर में मैनेजमेंट का संकल्प पारित कर रही है| इसी से कॉर्पोरेट कांग्रेस के भविष्य की कल्पना की जा सकती है|

आर्थिक सुधार के बारे में कांग्रेस ने अपने विचार रखे हैं| लेकिन आर्थिक सुधार के लिए देश में जो भी प्रयास किए गए उनको लेकर कांग्रेस ने हमेशा दोहरा रवैया अपनाया है| कृषि सुधार के लिए जो बिल लाए गए थे उनका कांग्रेस ने विरोध किया| श्रम सुधार, भू सुधार जैसे देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण सुधार कार्यक्रमों के बारे में कांग्रेस के सत्ता के विचार अलग हैं और विपक्ष में रहने पर विचार अलग हैं|

नीतियों पर इस तरह का दृष्टिकोण किसी भी पार्टी को पतन की ओर ही ले जाएगा| राहुल गाँधी ने तो UPA सरकार के समय भू सुधार बिल को लोकसभा में फाड़ फेंका था|  एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कहते हैं कि उनकी सरकार बनी तो चुनाव वेलेट पेपर पर कराये जायेंगे EVM पर नहीं| डिजिटल युग के जमाने में कांग्रेस देश को किस दिशा में ले जाना चाहती है| 
 
भारत में घुसपैठियों की समस्या हो, सीएए एनआरसी का मुद्दा हो, सभी मामलों में कांग्रेस तुष्टीकरण की दृष्टि से राजनीति को आगे बढ़ाने का प्रयास करती रही है| केवल विचारधारा और वैचारिक दृष्टि ही पार्टी समर्थकों और कार्यकर्ताओं को कड़ी मेहनत करने और मतदाताओं को प्रेरित करती है| जब तक वैचारिक प्रतिबद्धता की विश्वसनीयता नहीं होगी, तब तक पार्टी को जन विश्वास हासिल करना कठिन होगा|

चिंतन शिविर में एक परिवार एक टिकट, कार्यकाल की सीमा, पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में हाशिये के समूह को आरक्षण और युवाओं को शामिल करने का संकल्प तो हमेशा कांग्रेस लेती रहती है| उसका क्रियान्वयन अभी तक तो नहीं हो पाया| भविष्य में भी जमीन पर इसका उतरना टेढ़ी खीर होगा| 

राजनीतिक, आर्थिक, संगठनात्मक, सामाजिक न्याय, युवा और किसान के मुद्दे पर जो भी प्रस्ताव चिंतन शिविर में पारित किए गए, वह केंद्र सरकार के खिलाफ विचार के रूप में हो सकते हैं, लेकिन इससे कांग्रेस पार्टी के संगठन में सुधार को कैसे लाभ होगा?

उदयपुर चिंतन शिविर का उद्देश्य पार्टी के पुनरुद्धार के लिए था ना कि केंद्र सरकार की विफलता के मुद्दों को उठाने के लिए| ऐसा लगता है कांग्रेस पार्टी एक बार फिर चिंतन शिविर का लक्ष्य हासिल करने में पिछड़ गई| पहले भी चिंतन शिविर होते रहे हैं| इन शिविरों के जरिए मुद्दों पर लोगों को भटकने के लिए मजबूर कर दिया जाता है|

उनके निष्कर्षों का कभी भी कांग्रेस पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों पर गंभीर असर नहीं हुआ| कांग्रेस उदय के लिए उदयपुर डिक्लरेशन कोई समाधान बनेगा प्रारंभिक रूप से ऐसा नहीं लगता| ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी ने PK के उधार के विचार पर चिंतन करने की औपचारिकता मात्र की है इसीलिए इसमें स्पष्ट दृष्टि और निष्कर्ष का अभाव साफ़ दिखाई देता है| कांग्रेस नेता अपने ज़मीनी अनुभवों से कभी आत्म चिंतन करेंगे तभी शायद सही दिशा में कोई निष्कर्ष निकले और पार्टी के उदय का मार्ग प्रशस्त हो|