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वैदिक शिक्षा : एक बेहतरीन पहल 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 24 Oct

सार

वैदिककालीन शिक्षा द्वारा मनुष्यों का शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक तथा आध्यात्मिक विकास किया जाता था..!

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विस्तार

इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आजादी के बाद देश में वैदिक ज्ञान को शिक्षा प्रणाली में समुचित स्थान नहीं मिल पाया है जिसका नतीजा समाज में नैतिक मूल्यों में आ रही गिरावट है। कहने को वेदों को शिक्षा प्रणाली से जोडऩे के लिए 100 करोड़ रुपए की परियोजनाएं बनाई गई हैं। यह धनराशि केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही है। गौरतलब है कि वैदिक शिक्षा पर आधारित बोर्ड से दसवीं और बारहवीं कक्षा पास करने वाले छात्र अब उच्च शिक्षा के लिए किसी भी कॉलेज में दाखिला लेने के पात्र होंगे। इसमें मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे उच्च शिक्षण संस्थान भी शामिल हैं। यह महत्वपूर्ण निर्णय सरकार द्वारा नामित निकाय, एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) द्वारा लिए गए निर्णय पर आधारित है।

वैदिक शिक्षा सांस्कृतिक दृष्टि पर बल देती थी।इसके मुताबिक शिक्षित व्यक्ति को साहित्य, कला, संगीत आदि की समझ होनी चाहिए, उसे जीवन के उच्च आदर्शों का ज्ञान भी होना चाहिए। पूर्वजों की परंपरा और संस्कृति की रक्षा शिक्षित व्यक्ति का कर्तव्य था। वैदिक शिक्षा से समस्त देश में कुछ ऐसे आधारभूत मूल्यों की स्थापना हुई जो आज भी सांस्कृतिक एकता के आधार हैं। कुछ लोगों के अनुसार आज की शिक्षा प्रणाली में यह एक आऊटडेटेड विचार समझा जा सकता है। वैदिक शिक्षा प्रणाली के अनेक गुण थे। इन गुणों का तत्व आज भी प्रासंगिक है। वैदिककालीन शिक्षा नि:शुल्क थी, गुरुकुल में शिष्यों से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था। उनके आवास, वस्त्र तथा भोजन की व्यवस्था भी नि:शुल्क होती थी। वैदिक काल की शिक्षा पर होने वाले व्यय की पूर्ति शासन, धनाढ्य लोगों तथा भिक्षाटन एवं गुरु दक्षिणा से की जाती थी। वैदिककालीन शिक्षा द्वारा मनुष्यों का शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक तथा आध्यात्मिक विकास किया जाता था। 

वैदिककालीन शिक्षा का पाठ्यक्रम व्यापक था। वैदिक काल में मनुष्य के प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तीनों पक्षों के विकास पर बल दिया जाता था और इसके लिए शिक्षा के पाठ्यक्रम में भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों प्रकार के विषयों को सम्मिलित किया जाता था। हमारी आज की शिक्षा में आध्यात्मिक तत्व न होने के कारण हमारे दिलो-दिमाग से सामाजिक संवेदना विलुप्त होती जा रही है। वैदिककालीन शिक्षा में उत्तम शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता था। अनुकरण, व्याख्यान, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तर, तर्क, विचार-विमर्श, चिंतन-मनन, सिद्धिध्यासन, प्रयोग, नाटक एवं कहानी इत्यादि वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक विधियों का विकास किया जा चुका था। इनको पुन: हमारे शिक्षण में शामिल करने की जरूरत है। वैदिक काल में गुरु तथा शिष्यों का जीवन अत्यंत संयमित और अनुशासित होता था। उनकी जीवनशैली सादा जीवन व उच्च विचार पर आधारित थी। वैदिककालीन शिक्षा में गुरु तथा शिष्यों के मध्य मधुर संबंध थे। 

दोनों के मध्य स्नेह तथा श्रद्धा का संबंध था।दोनों एक-दूसरे के प्रति त्याग की भावना रखते थे तथा शिक्षकों के बीच मानस पिता-पुत्र के संबंध थे। क्या आज ऐसे रिश्ते वांछित नहीं हैं? वैदिककालीन शिक्षा में गुरुकुलों का पर्यावरण अति उत्तम था। गुरुकुल प्रकृति के स्वच्छ वातावरण से युक्त स्थलों में होते थे, जहां जन कोलाहल नहीं था तथा जल और वायु शुद्ध प्राप्त होती थी। आज हम छात्रों को किन हालात में शिक्षित कर रहे हैं? वस्तुत: मशीनों के जरिए दी जा रही शिक्षा मनुष्य रूपी छात्रों को असंवेदनशील रोबोट के रूप में विकसित कर रही है। यहां पर सांस्कृतिक शिक्षा का महत्व और भी बढ़ जाता है। वैदिककालीन जीवन पद्धति संस्कार प्रधान थी। वैदिक शिक्षा प्रणाली पूर्णतया दोष रहित थी, ऐसा कहना कठिन है, वैदिककालीन शिक्षा में राज्य का नियंत्रण या उत्तरदायित्व नहीं था। तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था पूर्णत: व्यक्तिगत नियंत्रण में थी, जो पूर्णत: गुरुकुलों तक सीमित थी। अत: इससे जन शिक्षा की अवहेलना होती थी। वैदिककालीन शिक्षा में आय की सुनिश्चित एवं विधिवत व्यवस्था नहीं थी। यद्यपि वैदिककालीन शिक्षा का व्यय राजा, धनी लोग, भिक्षाटन तथा गुरु दक्षिणा से पूरा किया जाता था, किंतु इन सबका कोई निश्चित समय, मात्रा के न होने से असमंजस की स्थिति रहती थी। वैदिक जमाने की तरह आज भी अमरीका और अनेक देशों में उच्च शिक्षा संस्थाओं की रिसर्च फंडिंग अमीर लोग करते हैं, लेकिन हमारे यहां की स्थिति दयनीय है। 

यद्यपि उस समय उत्तम शिक्षा विधियों का विकास हो चुका था, किंतु लिखने की समुचित व्यवस्था का अभाव होने के कारण याद रखने पर विशेष बल दिया जाता था। वैदिककालीन शिक्षा की अनुशासन व्यवस्था अत्यंत कठोर थी। स्वामी दयानंद जी, महात्मा हंसराज जी व महात्मा आनंद स्वामी जी इत्यादि अनेक वैदिक कर्मयोगियों से प्रेरित पूरे देश में कार्यरत डीएवी व आर्य समाज से जुड़ी संस्थाएं वैदिक परचम को शिक्षा के जरिए गतिशील रखने के लिए इस समय डॉ. पूनम सूरी जी (पदमश्री अलंकृत) है, के नेतृत्व में निरंतर अच्छा काम कर रही है। नैतिक मूल्यों में गिरावट को देखते हुए आज वैदिक शिक्षा को औपचारिक रूप से शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग बनाए जाने की जरूरत है। यह शाश्वत सत्य है कि वैदिक शिक्षा के व्यावहारिक उद्देश्य रहे हैं, जिनकी आज बहुत जरूरत है। इनमें चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व का विकास, कार्यक्षमता और नागरिक जिम्मेदारी का विकास और विरासत व संस्कृति का संरक्षण शामिल हैं।