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MP चुनाव: सतही सर्वे का क्या आधार सट्टा बाजार या सत्ता की सरकार

सार

ये सर्वे सट्टा बाजार व्दारा प्रायोजित हैं या राज्यों की सरकारों ने इन्हें प्रेरित किया है?

janmat

विस्तार

ओपिनियन पोल और चुनावी पूर्व सर्वे पर तो पहले से ही उंगली उठती रही है, लेकिन पहली बार एक्जिट पोल सर्वे के नतीजों में भारी अंतर को देखते हुए इन सर्वे के निष्कर्षो को लेकर सवाल उठ रहे हैं। ये सर्वे सट्टा बाजार व्दारा प्रायोजित हैं या राज्यों की सरकारों ने इन्हें प्रेरित किया है?

सर्वे को लेकर तेलंगाना में कांग्रेस गदगद है, क्योंकि वह उसकी सरकार बनाती दिखाई गई है। इसके विपरीत मप्र में दिग्विजय सिंह या कमलनाथ से लेकर कांग्रेस का कोई कार्यकर्ता सर्वे के नतीजों को सिरे से खारिज कर रहे हैं। राजस्थान में किसी ने कांग्रेस की सरकार को दोहराने के दावे किए हैं तो कोई भाजपा की सरकार बनवा रहा है। लेकिन वहां भी भाजपाई सर्वे में भाजपा को दिए गए आंकड़ों से सहमत नहीं है। राजस्थान में T कांग्रेसी सर्वे में गिरते पड़ते अपनी सरकार को बनते देख पुलकित हैं तो भाजपा के दावे सर्वे के अनुमानों से ज्यादा सीट जीतने के हैं। छत्तीसगढ़ में तो ज्यादातर सर्वे एजेंसियों ने प्रकारांतर से कांग्रेस और भाजपा की लगभग बराबरी के आंकड़े देकर दोनों को 3 दिसंबर तक खुश बने रहने और ख्याली पुलाव पकाने के लिए छोड़ दिया है। यानि तुम जीते न हम हारे वाले हालात छत्तीसढ़ ही नहीं राजस्थान में भी सर्वे के नतीजे बता रहे हैं। मिजोरम को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही त्रिशंकु सरकार बनने को देखते हुए अपनी सरकार बनाने के सपने संजो रहे हैं।

मध्यप्रदेश की बात करें तो आजतक की एजेंसी ने भाजपा को 142 से 162 सीटें दे डाली हैं तो एबीपी न्यूज के सी वोटर के सर्वे ने किसी तरह कांग्रेस की सरकार बनवा डाली है। एक के दावे मं अतिरंजना है तो दूसरे के सर्वे में ऐसी त्रुटियां है तो नंगी आंखों से देखी जा सकती है। मसलन एबीपी ने मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड और विंध्य की सीटों को मिलाकर बघेलखंड इलाका बनाकर 57 सीटों पर अपने सर्वे के आंकड़े पेश कर डाले हैं, जबकि दोनों ही क्षेत्रों की राजनीतिक और सामाजिक प्रकृति बिल्कुल अलग है। इसी तरह निमाड़ में उसने 28 सीटें तथा मालवा में 45 सीटें बताकर 66 सीटों वाले मालवा-निमाड़ को 73 सीटों वाला इलाका बना डाला है।

पुराने महाकौशल जो अब जबलपुर संभाग में सिमटा है, उसकी 38 सीटें हैं। लेकिन एबीपी ने उसे 45 सीटों वाला इलाका बना डाला है। यही हालात भोपाल - नर्मदापुरम यानि सेंट्रल रीजन की हैं। वहां भी उसने दोनों को अलग करके सीटों का नया आंकड़ा बिठाया है। मप्र मं प्रचंड जीत के दावे करने वाले आजतक ने तो अपने बचाव के लिए अपने वामपंथी विचारक पत्रकारों की छवि को बचाने के लिए एक आंतरिक वीडियो भी जारी करके अपनी खाल बचाने के साथ अपने ही सर्वे को संदेह के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है। कांग्रेस को ऐतराज न्यूज24 व्दारा चाणक्य से कराए गए सर्वे पर भी ऐतराज है जिसने मप्र में भाजपा को 151 सीटें मिलने का दावा किया है। याद रहे कि यह चैनल कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला का है। सर्वे ऐजेंसियों की आंकड़ेबाजी से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सहमत नहीं हैं। वे इसे सरकार का प्रायोजित खेल बता रहे हैं।

कुल मिलाकर देखें तो एक्जिट पोल सर्वे के नतीजे कितने ही सत्य के करीब क्यों न पर उनके दावों पर सवालिया निशान तो लग ही गए हैं। ये सर्वे सट्टा बाजार से प्रेरित हैं या सत्ता सरकार से यह तो तय है कि पूंजीवाद के प्रखर होते दौर में कुछ भी होना नामुमकिन नहीं है। ओपिनियन पोल और चुनाव पूर्व सर्वे पर आपत्ति करने वाले खबरिया चैनलों से लोगों का भरोसा तो पहले ही उड़ चुका था लेकिन अब एक्जिट पोल भी यकीन के काबिल नहीं रहे। आने वाले वक्त में लोगों के लिए ये तमाम सर्वे कुछ वक्त के मनोरंजन और बहस मुह्यबिसों का खेल बनकर रह जाएंगे। चुनाव बाद किसी न किसी का आंकड़ा तो सच का करीब होगा ही लेकिन सभी बढ़चढ़ कर दावे प्रतिदावे करने में कोई भी पीछे नहीं रहने वाला।