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भाजपा: संघ की क्या मजबूरी है?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 26 Oct

सार

संघ ने नरेंद्र मोदी से टकराव लेना मुनासिब नहीं समझा, क्योंकि मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पार्टी को फंड उपलब्ध कराए..!

janmat

विस्तार

प्रतिदिन-राकेश दुबे 

03/09/2022                                                                              

बहुत सारी खूबियों के बाद नितिन गडकरी के साथ जो हुआ सबको पता है, संघ को भी | संघ कोई युक्ति नहीं खोज पा रहा है कि वो इस स्थिति से कैसे निबटे ? यूँ तो उसने मजबूरी नितिन गडकरी को धैर्य रखने की सलाह दी है,परन्तु भीतरखाने चल रही सुगबुगाहट कुछ नये समीकरण के संकेत दे रही है | यह संकेत भी तब आ रहे हैं, जब कांग्रेस अपने नये कलेवर को तलाश कर रही है | 

“भारत जोड़ो यात्रा” में जन सहभागिता के आगे- पीछे भारतीय जनता पार्टी से कुछ नया करने के संकेत मिल रहे हैं , वैसे अब संघ का दबदबा उसके इस अनुषांगिक में कमजोर दिख रहा है | सूत्र इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि सर संघचालक मोहन भागवत ने गडकरी को धैर्य रखने की सलाह दी है, क्योंकि वे मानते है कि “गडकरी  नरेंद्र मोदी से उम्र में काफी छोटे हैं और उनके पास काफी समय है|”

इसके विपरीत भाजपा के सूत्र दावा करते है कि “संघ ने नरेंद्र मोदी से टकराव लेना मुनासिब नहीं समझा, क्योंकि मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर पार्टी को फंड उपलब्ध कराए। मोदी ने कार्पोरेट से उनके कारोबारी हितों की कीमत पर पार्टी के लिए मोटा चंदा हासिल किया। इसके बाद भाजपा के पास मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए नामित करने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा था|”

यह तथ्य सर्व ज्ञात है कि अब तक  गडकरी अकेले ऐसे नेता हैं जिन्हें भाजपा अध्यक्ष बनाए रखने के लिए पार्टी के संविधान में बदलाव के लिए संघ ने पार्टी आलाकमान को मजबूर किया था। इसके बाद गडकरी को अतिरिक्त दो साल तक भाजपा का अध्यक्ष पद दिया गया था। यह सब 2013 में तब हुआ जब भाजपा  पैसे की कमी से जूझ रही थी और संघ को विश्वास था कि गडकरी विपक्ष के नेता के तौर पर लाल कृष्ण आडवाणी की जगह ले सकते हैं। संघ की योजना तो 2019 के लिए गडकरी को प्रधानमंत्री पद के लिए तैयार करने की थी।

एक बात और  गडकरी के पक्ष में  जाती है कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी पसंदीदा बने हुए हैं। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में सबसे मुखर मंत्री होने के बावजूद गडकरी टकराव का रास्ता नहीं अपनाते हैं और हर मामले में संघ से सुलह-मशविरे से काम निकालते रहे हैं| आज  भारतीय जनता पार्टी में कुछ ही ऐसे नेता बचे हैं जो राजनीति के पुराने तौर तरीकों पर चलते हैं| भाजपा में आज “दल और देश से पहले मैं” की संस्कृति उभर रही है और अपने को सांस्कृतिक संगठन कहने वाला सन्गठन इस नई संस्कृति का कूई तोड़ नहीं खोज पा रहा है |

संघ भूमि नागपुर के सूत्र कहते हैं “हमें पहले से पता था कि नरेंद्र मोदी पार्टी को केद्र में भी बिल्कुल उसी तरह अपने मुताबिक ही चलाएंगे जैसाकि वे गुजरात में अपने समकक्षों को रास्ते से हटाते हुए चलाते रहे। हम उन्हें अपना उम्मीदवार नहीं बनाना चाहते थे। लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं था|”

वैसे संघ में हमेशा देशस्थ ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा है और मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत भी देशस्थ ब्राह्मण हैं। गडकरी के विकल्प के रूप में फडनवीस  के चयन का भी यही आधार है | वैसे दोनों के परिवारों की जड़ें संघ में हैं और दोनों ही लगभग एक जैसी ही भाषा बोलते हैं। इस सबके बावजूद गडकरी संघ प्रमुख मोहन भागवत के प्रिय हैं। वैसे उनका फडणवीस से कोई बैर नहीं है, लेकिन हमेशा से भागवत का रुख रहा है कि गडकरी बेहतर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन सकते हैं। रुख होना और साकार होने में फर्क है, जो संघ को अब समझ आ जाना चाहिए |

 संघ के निकट एक अन्य राजनीतिक विचारक का विचार भी कुछ ऐसा ही  है| उनके अनुसार  “एक शब्द में कहें तो ईर्ष्या ही सही शब्द है। मोदी को दरअसल गडकरी की भाजपा के अंदर और बाहर की लोकप्रियता से गहरी ईर्ष्या है क्योंकि लोग गडकरी के काम को पहचानते हैं। उनकी संघ से नजदीकियां भी जगजाहिर हैं, इसीलिए उनका कद कम करने की यह कवायद की गई है।”

संघ पर नजर रखने वासे एक जानकार का मानना है कि गडकरी के उस बयान के मोदी ने कुछ और ही अर्थ निकाल लिए हैं और शायद मोदी को लगा कि गडकरी का इशारा उनकी तरफ है | गडकरी का यह बयान भी काफी चर्चित रहा कि राजनीति अब सिर्फ सत्ता और निजी फायदे के लिए की जा रही है और नेता सिर्फ10 प्रतिशत लोगों के समर्थन से सिर्फ 10 प्रतिशत काम ही करते हैं और समाजसेवा को भूल गए हैं।

इसके अलावा एक बात और है कि मंत्रिमंडल का बैठकों में अकेले गडकरी ही मोदी से बहस करते दिखे हैं कि क्या देश और लोगों के हित में है और क्या नहीं, बाकी मंत्री तो सिर्फ “यस मैन” वाली मुद्रा में रहते हैं। ऐसा नहीं है कि  यह सब संघ को पता नहीं है ,सब पता है | फिर भी संघ अपने इस अनुषांगिक में कुछ कर क्यों नहीं पा रहा, ऐसी क्या मजबूरी है ?