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देश किधर चलेगा ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 17 May

सार

अब तक देश में कई बार चुनावी वादे जुमले भी साबित हुए हैं, एक बार वोट देने के बाद मतदाता के पास हाथ मलने के अतिरिक्त कुछ रहता भी नहीं है..!

janmat

विस्तार

और ४ जून भी अब ज़्यादा दूर नहीं है। उस दिन यह तय हो जाएगा कि देश अगले 5 साल किस दिशा में चलेगा। जाति सर्वेक्षण के वादे के बाद देश की संपत्ति, नौकरियों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं का आर्थिक रूप से पुनर्निर्धारण होगा अथवा सभी को उनका अधिकार उनकी आबादी के अनुसार नहीं आर्थिक आधार पर मिलेगा। इन दोनों धाराओं का परचम  शीर्ष राजनेता नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी थामे हुए हैं । अब तक देश में कई बार चुनावी वादे जुमले भी साबित हुए हैं, एक बार वोट देने के बाद मतदाता के पास हाथ मलने के अतिरिक्त कुछ रहता भी नहीं है।

जैसे संकेत मिल रहे हैं अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो पार्टी जाति सर्वेक्षण के वादे के बाद देश की संपत्ति, नौकरियों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं का आर्थिक रूप से पुनर्निर्धारण करेगी। कथित तौर पर कहा,  गया कि सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ‘एक जाति जनगणना करेगी  ताकि पिछड़े, एससी, एसटी, सामान्य जाति के गरीबों और अल्पसंख्यकों को पता चले कि देश में उनकी (संख्या के संदर्भ में) कितनी हिस्सेदारी है।

इसके बाद, यह पता लगाने के लिए एक वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण किया जाएगा कि देश की संपत्ति किसके पास है। हम आपको वह देंगे जो आपका अधिकार है।’ हालांकि पुनर्वितरण शब्द का उपयोग नहीं किया गया है, लेकिन निहितार्थ स्पष्ट है : ‘जिसकी जितनी ज्यादा जनसंख्या, उसको उतने ज्यादा अधिकार।’ पार्टी की मंशा कुछ बिंदुओं पर स्पष्ट हो जाती है । …

विभिन्न राजनीतिक दलों ने  अपने-अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की  हैं। भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र, जिसे वह संकल्प पत्र कहती है, में साफ कहा है कि वह समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए काम करेगी। पार्टी का मुख्य फोकस भारत के युवाओं, महिलाओं, गरीबों और किसानों पर है। जब कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दल जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा था कि देश को जाति के नाम पर बांटना ‘पाप’ है।

उन्होंने यह भी कहा कि उनके लिए चार सबसे बड़ी जातियां युवा, महिलाएं, गरीब और किसान हैं और उनकी पार्टी उनकी बेहतरी के लिए काम करेगी। पीएम के रूप में मोदी के पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान जाति और धर्म के आधार पर कभी कोई भेदभाव नहीं हुआ। इस बीच, सरकार ने गरीबों को घरों के लिए सब्सिडी, मुफ्त राशन, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के तहत मुफ्त गैस कनेक्शन, गरीबों के लिए शौचालय, बिजली, पानी की सुविधा या प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) प्रदान किया। सभी को सरकारी सहायता उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर प्रदान की जाती थी, न कि जाति या धर्म के आधार पर। 

कांग्रेस का कहना है कि सामूहिक प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं : कृषि, सिंचाई और जल संसाधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश, और सामान्य बुनियादी ढांचे की आवश्यक सार्वजनिक निवेश आवश्यकताओं के साथ-साथ एससी/एसटी, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यक और महिलाएं व बच्चों के उत्थान के लिए कार्यक्रम। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए घटक योजनाओं को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है । यह सुनिश्चित करने के लिए नई योजनाएं बनानी होंगी कि अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यकों को विकास के लाभों में समान रूप से साझा करने का अधिकार मिले।

संसाधनों पर पहला दावा उनका होना चाहिए।’ ने एससी और एसटी के उत्थान के लिए बनाई गई नीतियों के बारे में बात की गई , लेकिन मुसलमानों का अलग से जिक्र भी हुआ । विभिन्न जातियों और धर्मों के लोगों से लुभावने वादे करके वोट हासिल करने के बारे में है। संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि सरकार देश के हर वर्ग के साथ समान व्यवहार करेगी, लेकिन अल्पसंख्यकों का वोट हासिल करने की होड़ में राजनीतिक दल समाज और संविधान के प्रति अपना कर्तव्य भूल जाते हैं। सभी को उनका अधिकार देगी, जो उनकी आबादी के अनुसार होगा।

दूसरी और पीएम मोदी 2006 के मनमोहन सिंह का हवाला दे रहे थे और कांग्रेस के न्याय पत्र को समझा रहे थे। उनके अनुसार, कांग्रेस मुसलमानों, अधिक बच्चों वाले लोगों, घुसपैठियों को पैसे बांटेगी। भारतीय मुस्लिम आबादी 1951 में 9.9 प्रतिशत से बढक़र 2011 में 14.2 प्रतिशत हो गई। यह समझ से परे है कि राजनीतिक टिप्पणीकार, जो अपने बयान के लिए पीएम को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, सत्ता में आने पर कांग्रेस के ‘क्रांतिकारी’ वादे पर चुप हैं? जो भी हो चार जून का इंतजार करना होगा, जब सब साफ़ होगा कि देश किधर चलेगा।