सवाल पूछे जा रहे हैं कि भारत-पाक द्वारा अधिकृत घोषणा करने से पहले राष्ट्रपति ट्रम्प ने युद्धविराम की घोषणा कैसे कर दी?
एक सवाल - क्या अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प भारत-पाकिस्तान के मसलों के ठेकेदार हैं? क्या अमरीका की रणनीतिक दोस्ती के मायने और निहितार्थ यही हैं? क्या अमरीका से दोस्ती खतरनाक और दुश्मनी घातक है? आखिर ट्रम्प की मध्यस्थता की मंशा क्या है? दरअसल ये तमाम सवाल स्वाभाविक हैं। युद्धविराम पर विपक्श यही सवाल कर रहा है। बेशक प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधनों में ‘युद्धविराम’ या ‘सीजफायर’ शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया है, लेकिन गोलीबारी न करने अथवा सैन्य कार्रवाई न करने का समझौता दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच हुआ है।
जाहिर है कि संबद्ध प्रधानमंत्री ने ऐसे निर्देश दिए होंगे! फिलहाल हमलों की गर्जनाएं दोनों तरफ शांत हैं। यही तो युद्धविराम है। सवाल पूछे जा रहे हैं कि भारत-पाक द्वारा अधिकृत घोषणा करने से पहले राष्ट्रपति ट्रम्प ने युद्धविराम की घोषणा कैसे कर दी? और प्रधानमंत्री मोदी इस पर बयान देकर संदेहों और सवालों को खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं? हमें 1971 का दौर भी याद आ रहा है, जब 16 दिसंबर को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अचानक युद्धविराम की घोषणा कर दी थी।
भारत-पाकिस्तान युद्ध जारी था और हमारी सेनाओं ने पाकिस्तान की फौज का कचूमर निकाल दिया था। करीब 93,000 पाक सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा था। तब भी भारतीय सेना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आगे बढ़ सकती थी। भारत अपने कब्जाए कश्मीर को वापस अपने अधिकार-क्षेत्र में ले सकता था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री ने युद्ध को रोक दिया। यही नहीं, 1972 में शिमला समझौता वार्ता में भी कश्मीर का कोई ठोस समाधान नहीं निकाला गया। मौजूदा दौर में भी ऐसे ही सवाल हैं कि भारत पाक अधिकृत कश्मीर तक पहुंच कर अपना हिस्सा वापस ले सकता था, पाक फौज को और भी कुचला और तबाह किया जा सकता था, ऐसे में अमरीका की ओर से क्या दबाव दिया गया कि युद्धविराम घोषित करना पड़ा?
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने भी लीपापोती वाला स्पष्टीकरण दिया है। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट किया है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से अमरीकी उपराष्ट्रपति वेंस और विदेश मंत्री मार्को रुबियो आदि ने फोन पर बातचीत की, लेकिन व्यापार संबंधी कोई बात नहीं हुई।
राष्ट्रपति ट्रम्प व्यापार की धमकी दे रहे हैं कि उसी आधार पर उन्होंने युद्धविराम के लिए भारत-पाक को सहमत कर लिया। व्यापार का संदर्भ है, तो भारत-अमरीका के बीच करीब 10 लाख करोड़ रुपए का ही कारोबार होता है। भारत करीब 6.50 लाख करोड़ रुपए का निर्यात करता है, जबकि करीब 3.50 लाख करोड़ रुपए का आयात किया जाता है। अमरीका और पाकिस्तान के दरमियान करीब 61,989 करोड़ रुपए का व्यापार किया जाता है। अमरीका से करीब 43,307 करोड़ रुपए का आयात पाकिस्तान करता है। छोटा हिस्सा पाकिस्तान निर्यात करता है। क्या सिर्फ इसी आधार पर कोई देश युद्धविराम सरीखा अमरीकी निर्देश मान सकता है?
भारत-अमरीका के बीच व्यापार-सौदे की बातचीत जारी है। दोनों देश अपना कारोबार 500 अरब डॉलर तक ले जाना चाहते हैं। चीन के साथ व्यापारिक खुन्नस के मद्देनजर दक्षिण एशिया में भारत ही एकमात्र विकल्प है अमरीका के लिए। इतने विराट बाजार को अमरीका नाराज नहीं कर सकता। ट्रम्प ने अपनी चुनाव रैलियों के दौरान अमरीकी जनता को आश्वस्त किया था कि राष्ट्रपति बनने के 24 घंटों में ही वह रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवा देंगे। राष्ट्रपति बने चार माह हो चुके हैं। अमरीका ईरान को भी दबाव में नहीं ले सका। यूरोपीय देश भी अमरीका से खिन्न हैं और अपनी ताकत को लामबंद करने में जुटे हैं। यही नहीं, राष्ट्रपति ने ट्रम्प कहा है कि कश्मीर समाधान के लिए मिल कर काम करेंगे। यह ठेकेदारी किसने सौंपी?
भारत की विदेश नीति रही है कि वह द्विपक्षीय मामलों में किसी तीसरे का दखल नहीं चाहता। शिमला समझौते का भी यह प्रावधान है कि कश्मीर पर किसी तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जाएगी। जो भी मसले हैं, दोनों देश आपस में सुलटा लेंगे। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, हमारी पहचान है, हमारे देश की अखंडता और संप्रभुता का प्रतीक है, राष्ट्रपति ट्रम्प को मध्यस्थता की ठेकेदारी किसने दी है? अमरीकी राष्ट्रपति के बयान हमारी संप्रभुता और निर्वाचित प्रधानमंत्री को अपमानित कर रहे हैं। यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है? बेशक संयुक्त राष्ट्र में अमरीका ने ‘आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई’ में भारत का लगातार समर्थन किया है, लेकिन उसे बेलगाम नहीं छोड़ा जा सकता।