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इन्हें प्रसिद्धि के बाद भी पीछे क्यों मानते हैं ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 27 Jul

सार

बड़ी कक्षाओं तक आते-आते विज्ञान तो विज्ञान, लड़कियां शिक्षा में ही पिछड़ जाती हैं, इसका कारण आज तक खोजा जा नहीं सका है..!

janmat

विस्तार

प्रतिदिन विचार-राकेश दुबे 

09 /03 /2023

विश्व में मात्र अठाईस से तीस प्रतिशत ही वैज्ञानिक शोधों में महिलाओं की भागीदारी  दिखाई देती हैं। भारत में तो आंकड़ा मात्र 12-13 प्रतिशत है और मध्यप्रदेश में नगण्य । इसके विपरीत जब दसवीं-बारहवीं के परीक्षा परिणाम आते हैं तो विज्ञान हो या कला, हर बार छात्राएं, छात्रों से बाज़ी मार लेती हैं। बड़ी कक्षाओं तक आते-आते विज्ञान तो विज्ञान, लड़कियां शिक्षा में ही पिछड़ जाती हैं। इसका कारण आज तक खोजा जा नहीं सका है।

देश और विश्व में यूं भी जब लैंगिक अनुपात ही ठीक-ठाक स्थिति में नहीं है , तो शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में समानता की बात बेमानी  है। असल में, समाज में महिला वैज्ञानिकों को रोल मॉडल के रूप में भी प्रस्तुत नहीं किया जाता। कारण,पितृसत्तात्मक समाज भी महिलाओं के मस्तिष्क में वैज्ञानिक सोच उभरने न देने का दोषी है। यदि किसी परिवार में दो में से एक बच्चे की शिक्षा का खर्च उठाने की क्षमता होती है तो वह पुत्र को ही शिक्षित करता है। पुत्री को विज्ञान शिक्षा न देकर प्राइवेट रूप से शिक्षा दिला देता है। यह भी समझ लिया जाता है कि लड़की के बस का विज्ञान नहीं।

वहीं महिला वैज्ञानिकों के साथ भी कम भेदभाव नहीं होता। 1930 में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारतीय वैज्ञानिक सीवी रमन को सब जानते हैं परंतु उन्हीं के साथ काम कर चुकी वैज्ञानिक अन्ना मणि को मुट्ठी भर लोग भी शायद ही जानते हों। दरअसल, वैज्ञानिक शोध अधिक समय और दायित्व की मांग करते हैं। कोई स्त्री वैज्ञानिक बनने की राह पर चल भी पड़ी हो तो भी, जब उस पर पारिवारिक दायित्व आता है तो घर वाले उसका सहयोग नहीं करते और उसे अपना शोध त्यागना पड़ता है।

कहने को सरकार द्वारा कई उपाय किए गये ताकि हमारे देश में महिला वैज्ञानिकों की संख्या में वृद्धि हो सके। जैसे उन संस्थाओं को अच्छी रैंकिंग देना जिनमें महिला वैज्ञानिक अधिक हों। सरकार की ओर से महिला वैज्ञानिकों को आर्थिक मदद और फ़ेलोशिप भी दी जा रही है। हर बरस ‘महिला विज्ञान कांग्रेस’ का आयोजन किया जाता है। विशिष्ट महिला वैज्ञानिकों के नाम पर सरकार पीठों की स्थापना कर रही है। इन पीठों के लिए विभिन्न क्षेत्रों से संस्थाओं को चुना गया है।फिर भी बराबरी की दरकार है।

1932 में जन्मी डॉ़ अर्चना शर्मा एक जानी - मानी साइटोजेनेटिक्स या कोशिकानुवांशिकी की शोधकर्ता थीं। उन्होंने क्रोमोज़ोम के अध्ययन की नई तकनीक का विकास किया था। वे पद्मभूषण से सम्मानित हुईं। जानकी अम्माल अग्रणी बॉटेनिस्ट थीं। गन्ने की नई मीठी प्रजाति के लिए उन्हें ही श्रेय जाता है। क्रास ब्रीडिंग के शोध के लिए उन्हें संसार भर में मान्यता मिली। साल 1861 में जन्मी डॉ़ कादम्बिनी गांगुली चिकित्सक बनने वाली देश की पहली दो महिलाओं में से एक थीं। ऐसे ही 1941 में जन्मी दर्शन रंगनाथन ऑर्गेनिक कैमिस्ट थीं। उन्हें प्राकृतिक बायोकैमिकल प्रक्रियाओं को करने के लिए जाना जाता है।

वर्ष 1917 में जन्मी डॉ़ आसिमा चटर्जी ने ऑर्गेनिक कैमिस्ट्री और फाइटोमेडिसिन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने मिर्गी के लिए दवाई और मलेरिया की रोकथाम के लिए औषधियां बनाई। अन्ना मणि एक मौसम विज्ञानी थीं, उन्होंने सौर विकिरण, वायु ऊर्जा और ओज़ोन पर उल्लेखनीय कार्य किया। 1922 में जन्मी डॉ. राजेश्वरी चटर्जी पहली महिला इंजीनियर थीं। उन्हें माइक्रोवेव और एंटिना इंजीनियरिंग के लिए जाना जाता है।

समकालीन युग में भी अनेक महिला वैज्ञानिक हैं जिन्होंने भारतीय विज्ञान की दिशा और दशा दोनों को बदल कर रख दिया। इनमें बतौर राकेट वूमन जानी जाने वाली रितु करिघल, चन्द्रयान मिशन 2 की निदेशक मुथैया वनिता, मंगल मिशन में मुख्य भूमिका निभाने वाली,जी सैट 10 और 12 की निदेशक रहने वाली अनुराधा टीके, मंगलयान की सफलता गढ़ने वाली मीनल सम्पत, मिसाइल महिला और अग्निपुत्री के नाम से विख्यात टेसी थॉमस। साल 2022 में गगनयान लांच करने वाली लतांबिका एआर, एडवांस लांचर टेक्नोलोजी की विशेषज्ञ हैं।

किरण मजूमदार शॉ जिन्होंने जैवप्रौद्यौगिकी में विशिष्ट योगदान किया, कैंसर और मधुमेह पर कई शोध किए। इंदिरा हिंदुजा को कौन भुला सकता है, जिन्होंने भारत में पहली बार टेस्ट ट्यूब बेबी सम्भव करके न जाने कितने संतानहीनों को संतान सौंपी। अदिति पंत एक समुद्र विज्ञानी रहीं उनके शोध के कारण ही अंटार्कटिका पर दक्षिण गंगोत्री स्टेशन की स्थापना हो सकी। यही नहीं, कल्पना चावला, भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स आदि।हमारी कई भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने नासा तक पहुंच बनाई है।

महिलाओं के प्रति यह धारणा कि वे विज्ञान या गणित में पिछड़ी हुई होती हैं, जानबूझकर फैलाया हुआ भ्रम है। समान अवसर पाकर भारतीय महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। वे आज व्यापार, राजनीति,शिक्षा, साहित्य, खेल, चिकित्सा, विज्ञान आदि से लेकर देश की रक्षा पंक्तियों तक में उपस्थित हैं।