• India
  • Fri , Oct , 11 , 2024
  • Last Update 02:19:AM
  • 29℃ Bhopal, India

भारत : क्यों है, दुनिया भर के कचरे का डम्पिंग ग्राउंड ?      

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 11 Oct

सार

इस तथ्य की पुष्टि देश की राजधानी नई दिल्ली से महज 128 किलोमीटर दूर स्थित मुजफ्फरनगर में होती है, यह जगह अमेरिका से आने वाले प्लास्टिक कचरे के लिए एक बड़ा डंपिंग ग्राउंड कहलाने लगा है..!

janmat

विस्तार

प्रतिदिन विचार-राकेश  दुबे

31/12/2022

‘ब्लूमबर्ग’ की एक रिपोर्ट सामने हैं | जो साफ़ करती है कि भारत दुनिया भर के कचरे का डम्पिंग ग्राउंड बना गया है |  कारण भारत में कचरा प्रबंधन उद्योग की अनियमित प्रकृति है | यह बात हमारे पर्यावरण और जन स्वास्थ्य दोनों के लिए नुकसानदेह है। इसके लिए काफी हद तक निगरानी और नियंत्रण की कमजोरी, भ्रष्टाचार और सबसे बढ़कर गरीब भारतीय श्रमिकों की मौजूदगी जिम्मेदार है जो देश के अलग-अलग हिस्सों में अत्यधिक गरीबी में जीवन बिता रहे हैं। इस तथ्य की पुष्टि देश की राजधानी नई दिल्ली से महज 128 किलोमीटर दूर स्थित मुजफ्फरनगर में होती है | यह जगह अमेरिका से आने वाले प्लास्टिक कचरे के लिए एक बड़ा डंपिंग ग्राउंड कहलाने लगा है |

वैसे तो ऐसे ज्यादातर मामले रिसाइकल्ड अर्थात पुनर्चक्रित प्लास्टिक पेपर के आयात की आड़ में गायब हो जाते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र की नहीं, अधिकाँश  कागज मिलें इस कचरे को  लकड़ी की छाल की तुलना में सस्ते कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करती हैं। कानून के मुताबिक सरकार पुनर्चक्रित पेपर में दो प्रतिशत तक की मिलावट की इजाजत देती है। इस नियमन के कारण बड़े पैमाने पर प्लास्टिक कचरे मसलन शिपिंग में काम आने वाले लिफाफों, गंदे डाइपर, प्लास्टिक की बोतलों आदि के भारत में बिना किसी जांच पड़ताल के आसानी से आने का मार्ग प्रशस्त हो गया है ।

वैसे आयातित कचरे का यह पहाड़ भी हजारों कचरा बीनने वालों को रोजगार प्रदान करता है। ब्लूमबर्ग की इस रिपोर्ट के अनुसार मिलों में जो कचरा पृथक होता है उसमें से कुछ कीमती सामान मसलन पानी की बोतल आदि भी हैं जिनका पुनर्चक्रण संभव है। शेष कचरा बिना लाइसेंस वाले ठेकेदार ले जाते हैं और लगभग 250-300 रुपये रोजाना की दर से भुगतान कर उसे दोबारा छंटवाते हैं ताकि पुनर्चक्रित करने लायक कोई और सामग्री मिले तो आसानी से निकाली जा सके।इस शेष कचरे को पेपर और चीनी मिलों को ईंधन के रूप में इस्तेमाल के लिए बेच दिया जाता है। प्राप्त आंकड़े कहते हैं इनमें से किसी मिल के पास ऐसे बॉयलर और फर्नेस नहीं हैं जो इस कचरे को पूरी तरह समाप्त कर सकें, न ही ऐसे फिल्टरेशन संयंत्र हैं जो जहरीले उत्सर्जन को नियंत्रित कर सकें। ऐसे में इस भीड़भाड़ वाले शहर मुजफ्फरनगर के सात लाख बाशिंदे नियमित रूप से माइक्रोप्लास्टिक वाली हवा में सांस लेने को विवश हैं।

यह रिपोर्ट भारत के कचरा प्रबंधन कारोबार का एक गंदा सच बाहर लाती है। एक और यह  जाना-पहचाना कारोबार है, ई-कचरा जिसमे  स्वीकार नहीं किया जाता है। ई-कचरे में न केवल भारत के पुराने लैपटॉपों, मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं से उत्पन्न कचरा आता है, वहीं इसमें पश्चिम से आयातित कचरा भी शामिल है। वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी थी कि दुनिया के इलेक्ट्रॉनिक कचरे में से 90 प्रतिशत भारत आता है। मुजफ्फरनगर की तरह यह जहरीला कचरा देशके अन्य बड़े नगरों  में रद्दीवालों के असंगठित क्षेत्र की आजीविका का एक बड़ा माध्यम बना हुआ है।

इस  असंगठित क्षेत्र में रद्दी चुनने के लिए बहुत मामूली भुगतान किया जाता है और इनके पास सुरक्षित ढंग से काम करने के लिए जरूरी उपकरण भी नहीं होते। बाकी कचरे को सीधे आग के हवाले कर दिया जाता है जिससे हवा में भयंकर प्रदूषण फैलता है। ध्यान देने वाली बात है कि सरकार द्वारा 2016 में अधिसूचित नियमों के तहत ई-कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद यह कारोबार फल-फूल रहा है। इस वर्ष के आरंभ में सरकार ने संसद को बताया था कि 2019 से अब तक अवैध ई-कचरा आयात के 29 मामले देश भर में पकड़े गए हैं।

भारत जैसे देशों में विकसित देशों के कचरा निपटान को रोकने के लिए कड़े कानून प्रवर्तन और निगरानी व्यवस्था की आवश्यकता है जिसमें बंदरगाहों से लेकर प्रदूषण नियंत्रण तक हर जगह सख्ती बरतनी होगी। इसके साथ ही आर्थिक वृद्धि को टिकाऊ ढंग से आगे बढाना होगा जिससे देश की बढ़ती श्रम शक्ति को सार्थक रोजगार ही मिले तो रिसाइकलिंग करने वाली कंपनियों से लेकर रद्दीवालों तक को ऐसे काम अपनाने या कुछ और करने  का प्रोत्साहन मिलता रहेगा।