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डिजिटल जमाने के संग ये भी

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Wed , 06 May

सार

भौतिक दुनिया में जहां नेटवर्क प्रभाव सीमित होता है, वहीं डिजिटल उत्पाद और सेवाएं अक्सर मजबूत नेटवर्क प्रभाव प्रदर्शित करते हैं..!!

janmat

विस्तार

भारत में बरसों से यह जुमला सुनने में आ रहा है, ज़माना बदल रहा है यानि डिजिटल हो रहा है। इसके साथ नई डिजिटल दुनिया में प्रतिस्पर्धा का प्रबंधन जटिल है क्योंकि क्षेत्रों में पारंपरिक आर्थिक सिद्धांत भी काम नहीं करते। डिजिटल क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को हल करना सरकारों और नियामकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। भौतिक दुनिया में जहां नेटवर्क प्रभाव सीमित होता है, वहीं डिजिटल उत्पाद और सेवाएं अक्सर मजबूत नेटवर्क प्रभाव प्रदर्शित करते हैं।साधारण शब्दों में कहें तो नेटवर्क प्रभाव तब उत्पन्न होता है जब हर नया उपयोगकर्ता अन्य सभी लोगों के लिए पेशकश का मूल्यवर्द्धन करता है। दूरसंचार इसका शानदार उदाहरण है।

नेटवर्क प्रतिस्पर्धा और किफायत के पारंपरिक अर्थशास्त्र को धता बताते हैं। इसके बजाय वे ऐसा परिदृश्य रचते हैं जहां सब कुछ विजेता का होता है। इससे एकाधिकार की परिस्थिति पैदा होती है। नेटवर्क उद्योग के इस गुण को पहचानते हुए ही करीब 100 वर्ष पहले एटीऐंडटी ने टेलीफोनी को एक स्वाभाविक एकाधिकार के रूप में परिभाषित किया था।गूगल सर्च, माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस, ऐंड्रॉइड ओएस, गूगल और ऐपल प्ले स्टोर, व्हाट्सऐप और फेसबुक आदि नेटवर्क अर्थव्यवस्था के उत्पादों का उदाहरण हैं जो लगभग एकाधिकार जैसी स्थिति रचते हैं।

पारंपरिक आर्थिक सिद्धांत कहते हैं कि प्रतिस्पर्धा से कीमतों में कमी आती है और गुणवत्ता में सुधार होता है इसलिए उपभोक्ताओं के लिए यही बेहतर है। एक नेटवर्क अर्थव्यवस्था में जब नेटवर्क से बहुत अधिक उपयोगकर्ता जुड़ जाते हैं तो हर उपयोगकर्ता के मूल्य में वृद्धि होती है और समग्र रूप से सामाजिक कल्याण में सुधार होता है।बहरहाल ताकत चुनिंदा मुनाफा कमाने वाली संस्थाओं के पास केंद्रित रहती है जिससे जोखिम उत्पन्न होता है। इसमें राजनीतिक और सामाजिक ढांचे को अस्थिर करने की संभावना भी होती है।

ऐतिहासिक रूप से देखें तो नेटवर्क प्रभाव को टेलीफोन, टेलीग्राफ, रेलवे और डाक सेवाओं जैसी तकनीकों में चिह्नित किया गया लेकिन ये मिलकर अर्थव्यवस्था का बहुत छोटा हिस्सा तैयार करते थे। डिजिटलीकरण ने सकल घरेलू उत्पाद में नेटवर्क अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी में इजाफा किया है। यह रुझान लगातार बढ़ रहा है।

नेटवर्क का विस्तार होने तथा भारी उपयोगकर्ता आधार हासिल करने के बाद उनकी पेशकश सार्वजनिक प्रकृति की हो जाती है, भले ही उन पर निजी नियंत्रण होता है। इसके अहम नीतिगत प्रभाव होते हैं। इसके परिणामस्वरूप नेटवर्क प्रभाव की आर्थिक हकीकत को समझना अनिवार्य हो गया है।

भारत का अनुभव जानकारीपरक है। शुरुआत में हमारे यहां दूरसंचार क्षेत्र में सरकार का एकाधिकार था। 1994 में इस क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोला गया लेकिन समय के साथ इसमें दो कंपनियों का दबदबा कायम हो गया। अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात और सिंगापुर में भी यही हाल है।

निगरानी करते हुए सरकारें सीधे हल सुझाने से बच सकती हैं। हालांकि राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता या जनहित के मामलों को देखते हुए वे कुछ अधिकार अपने पास रख सकती हैं। ऐसा रुख न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन के विचार के अनुरूप भी होगा और डिजिटल नेटवर्क अर्थव्यवस्था में आमूलचूल बदलाव का अवसर देगा।