दहेज प्रताडऩा का मामला बनाया जाये जमानतीय अपराध
परिवार की टूटन को बचाने की जद्दोजहद
स्टेट लॉ कमीशन की 18 वीं रिपोर्ट सरकार को पेश
डॉ. नवीन जोशी
भोपाल।स्टेट लॉ कमिशन ने शिवराज सरकार को सौंपी अपनी 18 वीं रिपोर्ट में कहा है कि दहेज प्रताडऩा की धारा 498 ए को जमानती एवं जिला कोर्ट की परमीशन से राजीनामे वाला अपराध बनाया जाये, ताकि परिवार को दोबारा जुडऩे का मौका मिल सके और अनावश्यक रुप से परिजन परेशान न हों।
इसके पीछे कमिशन ने तर्क दिया है कि गैर जमानीय धारा होने के कारण ससुराल पक्ष के लागे खासकर महिलायें जेल भेजे जाने से परेशान होती हैं और बाद में राजीनामे होने की संभावनायें भी खत्म हो जाती हैं क्योंकि यह रंजिश का रुप ले लेता है। इसी प्रकार, पति-पत्नी में समझौता होने पर भी दहेज केस में जिला कोर्ट राजीनामे के आधार पर केस खत्म नहीं कर पाता है तथा लोगों को राजीनामे के आधार पर काफी धनराशि खर्च कर हाईकोर्ट से दहेज केस की धारा क्वेश कराना पड़ती है।
चेन स्नेचिंग रोकने सजा बढ़ायी जाये :
इसी प्रकार, कमिशन ने महिलाओं के गले से सोने जवाहरत की चेन खींचने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिये आईपीसी में नई धारा 379 ए एवं 379 बी जोड़ी जाये जिसमें सिर्फ चेन खींचने पर 5 से 10 वर्ष और चेन खींचने के साथ चोट पहुंचाने पर 7 से 10 वर्ष की सजा एवं 25 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया जाये। कमिशन ने पाया है कि वर्तमान में स्वर्ण आदि जेवरात के मूल्य कहीं अधिक बढ़ गये हैं तथा महिलाओं के गले से खींचने पर उनके मन पर लगा आघात बरसों तक बना रहता है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में चेन खींचने पर सिर्फ धारा 379 लगाई जाती है जिसमें मात्र 3 वर्ष के कारावास का ही प्रावधान है।
कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को स्पष्ट किया है कि राज्य विधानसभा को भारतीय दण्ड विधान और सीआरपीसी में संशोधन का अधिकार है तथा ऐसे संशोधन को करने के बाद वह राष्ट्रपति से मंजूरी लेकर इसको लागू कर सकती है।
ये भी की अनुशंसायें :
कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में कुछ अन्य मामलों में भी अनुशंसायें की हैं। एक, पीडि़त पक्ष को पुलिस द्वारा एफआईआर, चालान आदि की प्रति नि:शुल्क मुहैया कराने का प्रावधान कानून में किया जाये क्योंकि अभी सिर्फ प्रशासनिक आदेश से ऐसा किया जा रहा है जबकि कानून में आरोपी को यह सब देने का पहले से ही प्रावधान है परन्तु पीडि़त पक्ष के लिये नहीं है। दो, पुलिस द्वारा किसी अपराध में खात्मा डालने की सूचना कोर्ट को दी जाती है, तब इसे कोर्ट द्वारा स्वीकार करने के पूर्व कानूनी प्रावधान हो कि पीडि़त पक्ष को पहले सुना जाये।
तीन, जमानत मिलने के बाद आरोपी कोर्ट की पेशियों में जानबूझकर नहीं आते हैं जिससे मामले में आरोपी के न होने से कोर्ट में लम्बे समय तक केस की सुनवाई नहीं होती है। इसलिये कानूनी प्रावधान किया जाये कि आरोपी के न आने पर भी कोर्ट सुनवाई जारी रखे और निर्णय सुना दे। चार, भादवि सौ साल से अधिक पुराना है और इसमें अर्थदण्ड अभी भी पुराने ही चल रहे हैं, इसलिये वर्तमान मूल्यवृध्दि को ध्यान में रखते हुये 61 अपराधों में अर्थदण्ड दस गुना बढ़ाया जाये। मसलन, शराब पीकर सार्वजनिक स्थान पर हंगामा मचाने वाले पर आज भी अर्थदण्ड मात्र दस रुपये ही है। पांच, कोर्ट द्वारा हत्या आदिर गंभीर मामलों में न्यायिक हिरासत में भेजे गये व्यक्ति के मामले में पुलिस को विवेचना 90 दिन में पूर्ण करने का अधिकार दिया जाये जोकि अभी 60 दिन है।
उपभोक्ता आयोग के द्वितीय, तृतीय एवं
चतुर्थ श्रेणी पद अब अध्यक्ष के अधीन
भोपाल। राज्य उपभोक्ता आयोग के द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी पद अब आयोग के अध्यक्ष के अधीन रहेंगे। वे ही इन पदों पर नियुक्ति कर्ता प्राधिकारी होंगे। राज्य सरकार ने इसके लिये आयोग के नये सेवा भर्ती नियम जारी कर उन्हें लागू किया है।
नये भर्ती नियमों के अनुसार, आयोग में प्रशासनिक अधिकारी व निज सचिव के एक-एक पद द्वितीय श्रेणी के होंगे जबकि निज सहायक के 3, लेखापाल का एक, न्यायालय अधीक्षक के 21, असिस्टेंट के 2, लाईब्रेरियन का एक, शीघ्र लेखक के 26, सहायक ग्रेड-2 के 20, रीडर के 26, नाजिर सह रिकार्ड कीपर के 15, स्टेनोटायपिस्ट के 30, सहायक ग्रेड-3 के 45, आफिस मोहर्रिर कम डिस्पेचर के 15, फाईलिंग क्लर्क का एक तथा वाहन चालक के 24 पद तृतीय श्रेणी के होंगे एवं आदेश वाहक के 20, भृत्य के 92 एवं फर्राश के 25 पद चतुर्थ श्रेणी के होंगे।
इसी प्रकार, लाईब्रेरियन, स्टेनोटायपिस्ट, सहायक ग्रेड-3, वाहन चालक, आदेश वाहक, भृत्य व फर्राश के सभी पद सीधी भर्ती से भरे जायेंगे जबकि आफिस मोहर्रिर, रीडर, फाईलिंग क्लर्क के 75 प्रतिशत पद और शीघ्रलेखक के 50 प्रतिशत पद सीधी भर्ती से भरे जायेंगे। शेष पदों को पदोन्नति से भरा जायेगा। पदोन्नति के लिये गठित होने वाली डीपीसी भी आयोग के चेयरमेन की अध्यक्षता में होगी। सीधी भर्ती के पद व्यापम द्वारा भरे जायेंगे।
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शासकीय अस्पतालों के परिसरों में खुली दवा दुकानें बंद होंगी
अनुबंध शून्य घोषित किया गया, अतिक्रमण भी बर्दाश्त नहीं
डॉ. नवीन जोशी
भोपाल।शिवराज सरकार ने प्रदेशभर में स्थित शासकीय अस्पतालों के परिसरों में खुली दवा की दुकानों को बंद करने के निर्देश दिये हैं तथा दवा खोलने के लिये किये गये अनुबंध शून्य घोषित कर दिये हैं।
स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों के मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारियों और सिविल सर्जन सह अस्पताल अधीक्षकों को भेजे अपने ताजा निर्देश में कहा है कि प्रदेश के शासकीय अस्पतालों के परिसर में उपलब्ध समस्त भूमि स्वास्थ्य विभाग की शासकीय भूमि है। विभाग की इस भूमि पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण किये जाने पर अतिक्रमण कर्ता एवं इस अतिक्रमण को संज्ञान में न लेकर वांछित वैधानिक कार्यवाही न करने वाले अधिकारी/कर्मचारी के विरुध्द दण्डात्मक कार्यवाही की जायेगी।
स्वास्थ्य विभाग ने यह भी कहा है कि शासकीय अस्पतालों के परिसरों में औषधि भण्डार/दवाई की दुकान आदि हेतु निजी/अर्धशासकीय संस्था से किया गया अनुबंध शून्यवत होगा एवं अनुपालन न कर पाने की स्थिति में संबंधित के विरुध्द कार्यवाही की जायेगी। किसी भी संस्था या व्यक्ति द्वारा पूर्व में यदि इस प्रकार का अनुबंध किया गया हो तो संबंधित निजी/अर्धशासकीय संस्था/फर्म से तत्काल स्थान खाली कर बाजार मूल्य के अनुरुप आंकलन कर भवन/स्थान का किराया वसूलने की आवश्यक कार्यवाही कर वरिष्ठ कार्यालय को तत्काल अवगत कराया जाये।
प्रदर्शित करनी होंगी सेवायें व दवायें
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स्वास्थ्य विभाग ने यह भी कहा है कि सभी शासकीय अस्पतालों में उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं जिनमें ओपीडी सेवायें/विशेषज्ञाताओं की सूची, वार्डों की सूची, इमरजेंसी सेवाओं की सूची, आईसीयू, ओटी, परामर्श केंद्र, टीकाकरण, डायलिसिस आदि सेवाओं की सूची और उपलब्ध डाक्टरों के नाम, उनकी विशेषज्ञता एवं परामर्श का समय एवं अस्पताल में उपलब्ध दवाओं एवं जांचों की सूची एलईडी डिस्प्ले या अन्य माध्यम से प्रदर्शित की जायें।
मानसिक विकलांग एक अन्य सामाजिक सुरक्षा पेंशन का भी लाभ प्राप्त कर सकेंगे
भोपाल।राज्य के सामाजिक न्याय विभाग द्वारा मानसिक रुप से अविकसित दिव्यांग, बहुविकलांग, ऑटिज्म एवं सेरेब्रल पाल्सी पीडि़तों को तीन अन्य संचालित दिव्यांग पेंशन में से किसी एक को देने का भी प्रावधान किया है। विभाग के संचालक स्वतंत्र कुमार सिंह ने सभी जिला कलेक्टरों से कहा है कि वे इसकी जानकारी मानसिक विकलांगों को प्रदान करें जिससे उन्हें अधिक से अधिक सामाजिक सुरक्षा मिल सके।
वर्तमान में मानसिक विकलांगों को सामाजिक न्याय विभाग छह सौ रुपये प्रति माह आर्थिक सहायता प्रदान करती है। विभाग तीन अन्य योजनायें यथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय नि:शक्त पेंशन, सामाजिक सुरक्षा पेंशन अंतर्गत अन्य दिव्यांग पेंशन तथा दिव्यांग शिक्षा प्रोत्साहन योजना भी संचालित करता है, जिनमें हर योजना के अंतर्गत छह-छह सौ रुपये प्रति माह ऑनलाईन हितग्राही के बैंक अकाउण्ट में राशि दी जाती है।
सामाजिक न्याय विभाग के संचालक ने जिला कलेक्टरों से कहा है कि इन तीन योजनाओं में से मानसिक विकलांग एक योजना और ले सकते हैं जिससे उनकी प्रति माह पेंशन राशि 12 सौ रुपये हो जायेगी। साजिक न्याय विभाग के उपसंचालक मनोज बाथम ने बताया कि अन्य पेंशन योजना का भी लाभ लेने की कई मानसिक विकलांगों को जानकारी नहीं है, इसीलिये जिला कलेक्टरों और विभागीय अधिकारियों से कहा गया है कि वे इस महत्वपूर्ण लाभदायक जानकारी को पहुंचायें।
डॉ. नवीन जोशी
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