यज्ञ की रक्षा हेतु श्रीराम को मांगने गये विश्वामित्र के सामने जब रावण का नाम आया- तस्य तद् वचनं श्रुत्वा विश्वामित्रोऽभ्यभाषतः। पौलस्त्यवंशप्रभवो रावणो नाम राक्षस। दशरथ की घिघ्घी बंध गई। दशरथ महान योद्धा थे। किंतु रावण के आतंक का सीधा मतलब भी जानते थे। रावण ने उनके रक्त संबंधी अनरण्य का क्या हश्र किया था। दशरथ की सभा में रावण के आतंक की व्यापक चर्चा हुई। बडी़ गंभीरता से हुई। दशरथ कितनी मुश्किल से तैयार हुए। यह विचारणीय भी है और उल्लेखनीय भी। पिछली कथाओं में हम बता चुके हैं कि रावण ने विश्वामित्र के पिता राजा गाधि सहित, पुरूरवा,मरुत और दुष्यंत को युद्ध में बुरी तरह पराजित किया था। युद्ध की उसी कडी़ में अनरण्य का वध हुआ था।
रावण की त्रैलोक्य विजय- 88
हम चलते हैं दशरथ की सभा में। जहां इक्ष्वाकुओं के महान प्रतापी गुरू वशिष्ठ अपने अनेक तपस्वियों के साथ बैठे हैं। राजकीय अंदाज में विश्वामित्र को वांछित वस्तु देने का वचन हार चुके दशरथ को जब पता चला कि कि यह मामला तो रावण के गुर्गों का है। वे डर गये। विश्वामित्र ने साफ साफ बता दिया! महाराज रावण नाम से प्रसिद्ध एक राक्षस है जो महर्षि पुलस्त्य के कुल में उत्पन्न हुआ है। वह सीधा तो कुछ नहीं करता, (आज के संदर्भ में पाकिस्तान का उदाहरण दिया जा सकता है) किंतु अपने दो बडे़ वीर,बलशाली राक्षसों मारीच और सुबाहू (आतंकियों) को भेजकर यज्ञों में विघ्न डालता है।
सभा में इस चर्चा में जब तक रावण का नाम नहीं आया था। दशरथ स्वयं भी जाने को तैयार थे। अपनी चतुरंगिणी सेना तक भेजने को तैयार थे। किंतु बार बार पूछने पर कि ऋषि आप मेरे किशोर राम को ले कहां जाना चाहते हैं, रावण के पोषित राक्षसों का नाम आया ,यज्ञ विध्वंस की बात आई। दशरथ बोले.." इत्युक्तो मुनिना तेनं तेन राजोवाच मुनिं तदा। नहि शक्तोऽस्मि संग्रामे स्थातुं तस्य दुरात्मन।। "अर्थ यह कि रावण के नाम से ही दशरथ ने हाथ खडे़ कर दिये। दशरथ ने रावण की अपार शक्ति और क्रूरता के किस्से भी सुना डाले।
मित्रो इस कथा की रोचकता और वास्तविकता की दृष्टि से हम एक बार पुनः महान परशुराम जी के पितामह महान योद्धा ऋचीक को लाते हैं। तत्कालीन विश्व में ऋचीक (चायमान) जैसा योद्घा ऋषि कोई नहीं था। अत्याधुनिक हथियारों के ज्ञाता, निर्माता थे। सबसे बडी़ बात तो यह कि वे विश्वामित्र के सगे बहनोई थे। परशुराम के पिता जमदग्नि के मामा। विश्वामित्र का काफी समय अपने बहनोई ऋचीक के आश्रम में गुजरा। जहां ऋचीक ने उनको अत्याधुनिक शस्त्रों, देवास्त्रों और दिव्यास्त्रों का ज्ञान कराया। फिर विश्वामित्र भी राजा बने। वे भी बडे़ योद्धा थे| राजा के रूप में विश्वामित्र तो एक बार वशिष्ठ जी से भी भिड़ चुके थे। दोनों, राजा और ऋषि के मध्य घनघोर युद्ध हो चुका था ।
दशरथ की सभा में अनेक युद्ध कर्ता और युद्ध नीतियों के महान ज्ञाता उपस्थित थे। मसला गंभीर था। रहस्यों और रोमांचों से भरा। विश्वामित्र आर्यावर्त की प्रतिष्ठा के लिये समर्पित थे। वे अपने कई पत्ते खोलना नहीं चाहते थे। ऋषि अवश्य थे परन्तु राजा भी तो रह चुके थे। पूरी अयोध्या इस बात से वाकिफ हो चुकी थी कि विश्वामित्र किस हेतु पधारे हैं। प्रश्न यह भी है कि इतनी बडी़ घटना के मर्म और राजनैतिक धर्म के मूल को रानी कैकेयी न समझी हो। जबकि वह एक महान राजा की योद्धा पत्नी थी। युद्ध में पारंगत। तभी तो उसने दशरथ के प्राण बचाये थे।
श्रीराम को "श्रीराम "बनाने वालों में महान विश्वामित्र के पीछे और कौन कौन थे। विश्व से आतंक को समाप्त करने के लिये कौन कौन एकत्रित हुए। हमको विश्व को आज के परिदृश्य में ही देखना होगा। मित्रो अगली कथा में विश्वामित्र के गुरू और ससुर ऋषि अगस्त्य को भी जोड़ेंगे। तथा देखेंगे कि महान ऋषियों ने त्रैलोक्य विजयी, साम्राज्यवादी रावण को एक पांव पांव चलने वाले तपस्वी श्रीराम से कैसे नेहस्तनाबूद करवा दिया।
धन्यवाद।