दृष्टा तथा दृश्य में क्या अंतर है?


स्टोरी हाइलाइट्स

   दृष्टा तथा दृश्य में क्या अंतर है ? दृष्टा दृश्य को देखने वाला है,यह दृश्य दृष्टा के देखने के लिए ही....What is the difference between sight and sight

                                दृष्टा तथा दृश्य में क्या अंतर है ?...what is the difference between sight and vision बजरंग लाल शर्मा दृष्टा दृश्य को देखने वाला है, यह दृश्य दृष्टा के देखने के लिए ही बनाया गया है। यदि दृष्टा नहीं हो तो दृश्य को कौन देखेगा? इस दृश्य को बनाने वाला कौन है? इसे बनाने का प्रयोजन क्या है? पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत के परमधाम में इच्छा नहीं है क्योंकि इच्छा वहां होती है जहां कमी होती है। फिर भी परम्-धाम में एक कमी है कि वहां पर दुःख नहीं है। इसलिए पूर्ण ब्रह्म परमात्मा ने अपने सत अंग अक्षर ब्रह्म को जन्म-मृत्यु वाले दुःख के संसार की रचना करने का आदेश दिया क्योंकि वहां इच्छा नहीं होने के कारण वह स्वयं अकर्ता है। फिर उन्होंने अपनी रूहों (ब्रह्मात्माओं) को इस जन्म-मृत्यु वाले दुःख रूपी स्वप्न जगत के दृश्य को देखने हेतु इस संसार मे भेज दिया। यही इस सृष्टि रचना का प्रयोजन है। दृष्टा तथा दृश्य कभी आपस मे मिलते नहीं हैं, ये हमेशा अलग-अलग रहते हैं। दृष्टा नींद के बाहर होता है, सदा एक समान रहता है तथा काल के बाहर होता है। परन्तु स्वप्नरूपी दृश्य, नींद के अंदर बनता है, परिवर्तनशील है एवं काल के अंदर है। ALSO READ: धर्मसूत्र15: क्या ब्रह्म से पहले भ्रम आता है? भ्रम और ब्रह्म में क्या अंतर है? परम ब्रह्म क्या है? अतुल विनोद इस स्वप्न रूपी दृश्य की रचना अक्षर ब्रह्म ने अपनी नींद में की जिसमें स्वप्न के प्रथम पुरुष आदि नारायण प्रकट हुए। उन आदिनारायण से उनकी नींद में पुनः नारायण प्रकट हुए एवं नारायण से उनकी नींद में पुनः चौदह लोकों का ब्रह्मांड एवं समस्त जीव प्रकट हुए। इस प्रकार यह दृश्य जगत सपने के सपने का सपना है। ये समस्त ब्रह्मांड, जीव, नारायण, आदिनारायण काल के अंतर्गत बने हैं। अतः ये सभी स्वप्न की सृष्टि होने के कारण दृश्य कहे जाते हैं। जो दृश्य को दृश्य के अंदर रहकर देखता है, वह तो स्वयं दृश्य का एक पात्र है। वह दृष्टा किस प्रकार हो सकता है। वास्तविक दृष्टा तो वह है जो समस्त स्वप्न की सृष्टि को अपने अखंड धाम से देखता है। दृष्टा दो प्रकार के होते हैं एक दृष्टा तो स्वयं अक्षरब्रह्म है जो अपने चित्त में नींद के अंदर माया तथा काल के द्वारा स्वप्न जगत की रचना करता है और उसको स्वयं देखता है। दूसरे प्रकार के दृष्टा वे हैं, जो अक्षरब्रह्म द्वारा रचित स्वप्न जगत के अंदर प्रवेश करके स्वप्न के उत्तम जीवों के साथ जुड़कर इस जन्म-मृत्यु के दुख के खेल को देखते हैं। READ ALSO : धर्म सूत्र-2: क्या परमात्मा का कोई नाम है? जिसका नाम है क्या वो परमात्मा है? P अतुल विनोद दूसरे प्रकार की दृष्टा आत्मा भी दो तरह की हैं। पहली तो पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत के परमधाम की रूहें (ब्रह्मात्माएं) हैं। दूसरी- अक्षर ब्रह्म के अक्षरधाम की ईश्वरी सृष्टि (फरिश्तें) हैं। जो स्वप्न के उत्तम जीवों से अपने सूक्ष्म शरीर के साथ जुड़ कर इस नाटक रूपी खेल को देखती हैं। "पहले कही सब खेल की, और कहे देखन हार। रूहें फिरश्ते खेल देखहीं, पकड़ ख्वाब आकार।।" स्वप्न के पात्र नींद में बनते हैं तथा नींद के बाहर नही आ सकते हैं तथा स्वप्न की रचना करने वाले अपने स्वामी दृष्टा अक्षर ब्रह्म से नहीं मिल सकते हैं। अक्षर ब्रह्म भी अपने द्वारा रचित स्वप्न जगत में नहीं आ सकता है, यदि वह आना भी चाहे तो स्वप्न टूट जाएग। अक्षर ब्रह्म का अखण्ड दिव्य शरीर है, जो कभी नाश नही होता है। स्वप्न की रचना उनके चित्त में बनती और मिटती रहती है। जिस स्वप्न के पात्र मानव जीव ने इस सृष्टि की रचना का रहस्य जान लिया। अक्षर पुरुष तथा पूर्णब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत को जान लिया उसका दृश्य जगत से आवागमन मिट जाता है। अपने निज घर अक्षरधाम में पहुंच जाता है।