खेती किसानी- मूंग की अंतर फसल के फाएदे


स्टोरी हाइलाइट्स

खेती किसानी- मूंग की अंतर फसल के फाएदे       भारत में मूंग एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दालों में से एक है। मूंग गर्मी और खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है | जैसा की हमारा पर्यावरण दिनो दिन खराब होता जा रहा है। गम्राति धरति बदलते मौसम की समस्या आज कल एक प्रमुख समस्या के रुप मे हमारे सामने है जिसका सीधा सम्बन्ध हमारी खेती किसानी से है जो हमारा मुख्य आधार है। एक ओर गहरी जुताई और घातक कृषि रासायनो के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है वहीं इस घाटे वाली खेती के कारण अनेक किसान आत्म हत्या कर रहे हैं [caption id="attachment_29573" align="aligncenter" width="700"] मूंग दाल की फसल[/caption] हमारे पर्यावरण को बचाने के लिये हमें बिना जुताई की खेती के महत्व को समझना होगा  । आज यही एक मात्र ऐसा उपाय है जिस पर अमेरिका जैसे सम्पन्न देश  ने सबसे अधिक घ्यान दिया है और जिसके उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त हुए हैं । वे इसे नो - कन्जरवेटिव फार्मिंग कहते हैं। मूंग की फसल दलहनी फसल होने के कारण भूमि की उर्वरक क्षमता  की भी वृद्धि करती है। क्योंकि इसकी जड़ों में ग्रन्थियां पाई जाती हैं और ये ग्रन्थियों वातावरण से नाइट्रोजन को मृदा में संस्थापन करने वाला सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते  है। इस नाइट्रोजन का प्रयोग मूंग के बाद बोई जाने वाली अन्य फसल  द्वारा उपयोग मैं  किया जाता है। मूंग की जड़ें  जिनमे ryzobium रहते है जो कुदरती यूरिया बनाते हैं। वे इसमे असानी से अंतरुफसल (इन्टरक्राप) के रुप मे मूंग की फसल ले सकते है। इसमे गर्मी की मूंग के बीजों को खड़ी गेंहूं फसल में छिड़क दे और  जब वह उग आये तो आराम से उगती मूगं के उपर से हंसिये से गेहूं कटाई कर लेंवे। इससे उगती मूंग के नन्हे पौधों पर पांव पड़ने से कोई नुकसान नहीं होता है। इससे अनेक फायदे हैं। प्रथम मूंग सबसे अधिक आर्थिक लाभ देती है। गेहूं की नरवाई जलने से बच जाती है वह सड़कर अगली फसल के जैविक खाद का इन्तजाम कर देती है। मूंग दलहन हाने के कारण खेतों को कुदरति यूरिया प्रदान करती है। जुताई, खाद और विषैली दवाओ का उपयोग नही करने से एक ओर जहां कार्बन का उत्सर्जन  रुकता है वहीं कुदरति मूंग की फसल मिलती है जिसकी बाजार मे रासायनिक मूंग की तुलना मे आठ गुना कीमत है। इसे कहते हैं “हर्रा लगे न फिटकरी और रंगचोखा होय!"