दुनिया का वो पहला श्लोक जिसने रखी रामायण की बुनियाद , जाने संस्कृत के पहले छंद “श्लोक” की उत्पत्ति का रहस्य !


स्टोरी हाइलाइट्स

दुनिया का वो पहला श्लोक जिसने रखी रामायण की बुनियाद , जाने संस्कृत के पहले छंद “श्लोक” की उत्पत्ति का रहस्य........प्रेरणादायक श्लोक

दुनिया का वो पहला श्लोक जिसने रखी रामायण की बुनियाद , जाने संस्कृत के पहले छंद “श्लोक” की उत्पत्ति का रहस्य ! संस्कृत के पहले छंद “श्लोक” की उत्पत्ति कैसे हुयी........आइए जानते हैं| हम लोग श्लोक नाम से बहुत परिचित हैं और रोज़मर्रा के जीवन में श्लोकों का पाठ भी करते हैं. इसकी उत्पत्ति कैसे हुयी इसके बारे में लोग कम ही जानते हैं. मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।। यह संस्कृत का पहला श्लोक है. इसकी उत्पत्ति की कहानी बहुत रोचक है| एक बार महर्षि वाल्मीकि अपने शिष्य भारद्वाज के साथ ब्रह्म मुहूर्त में तमसा नदी के तट पर स्नान करने के लिए गये. स्नान से पहले वह आसपास के सघन वनों की सुषमा को देखते हुए विचारने लगे. उन्होंने पास ही एक वृक्ष पर क्रोंच पक्षी के एक जोड़े को प्रणय में मग्न देखा. इतने में ही एक बहेलिये ने वाण चलाकर नर क्रोंच को मार दिया. पक्षी घायल होकर वृक्ष से नीचे गिर पड़ा. अपने प्रेमी को मरता हुआ देख क्रोंची करना से चीत्कार कर उठी. उस पक्षी की दुर्दशा देखकर महर्षि वाल्मीकि का मन करुणा से भर उठा.  उन्होंने रोती हुयी क्रोंची को देखकर बहेलिये को श्राप दिया- मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।। (रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक १५) {निषाद, त्वम् शाश्वतीः समाः प्रतिष्ठां मा अगमः, यत् (त्वम्) क्रौंच-मिथुनात् एकम् काम-मोहितम् अवधीः ।} हे निषाद, तुम अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सको, क्योंकि तुमने क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला है| करुणामयी ऋषि ने बहेलिये को श्राप तो दे दिया, लेकिन उनके मन में इसके लिया पश्चाताप हुआ. उन्होंने अपने शिष्य भारद्वाज से कहा कि पीड़ित हुए मेरे मुख से जो वाक्य निकला है, वह चार चरणों में आबद्ध है. इसके हर एक चरण में आठ-आठ अक्षर हैं. इसे वीणा कि लय पर गाया भी जा सकता है. मैं इसे श्लोक का नाम देता हूँ| आश्रम लौटकर वाल्मीकि ध्यानमग्न हो गये. इसके बाद श्रृष्टि के निर्माता ब्रहमाजी उनसे भेंट करने आये. वाल्मीकि ने क्रोंच वाली घटना और अपने मुख से निकले वाक्य के विषय में उन्हें बताया. उनके मन का पश्चाताप उनकी बातों में झलक रहा था. ब्रह्माजी ने उनसे कहा कि  तुम्हारे मुख से निकला यह छंदोबद्ध वाक्य श्लोकरूप ही होगा. तुम इसमें श्रीराम के सम्पूर्ण चरित्र का काव्य वर्णन करो. इस काव्य में अंकित तुम्हारी कोई भी बात झूठी नहीं होगी. पृथ्वी पर जब तक नदियाँ और पर्वत रहेंगे, तब तक संसार में रामायण का प्रचार होता रहेगा| इस प्रकार संस्कृत के पहले छंद “श्लोक” की उत्पत्ति और प्रयोग हुआ| Latest Hindi News के लिए जुड़े रहिये News Puran से.