सनातन धर्म के पाँच महाव्रत -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

सनातन धर्म के पाँच महाव्रत -दिनेश मालवीय सनातन धर्म में महीने के तीसों दिन में शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब कोई न कोई व्रत या उपवास का विधान न हो. सप्ताह के सातों दिन में एक न एक दिन ज्यादातर लोग उपवास करते हैं. पुराने समय में व्रत और उपवास को लेकर बहुत कठोर नियम और विधि-विधान थे, लेकिन वर्तमान में इनमें बहुत अधिक शिथिलता दे दी गयी है. अब व्रत करना पहले जैसा कठिन नहीं रह गया है. सनातन धर्म के व्रत-उपवासों की विशेषता यह है कि इनका सम्बन्ध ऋतु परिवर्तन से भी है. इसी के अनुसार ऋतु के अनुरूप खानपान और जीवन-पद्धति में बदलाव किये जाते हैं. पुराणों के अनुसार सारे कष्टों को दूर करने का एकमात्र उपाय व्रत ही है. सनातन धर्म के पुराण पाँच महाव्रतों का उल्लेख करते हैं. ये हैं- संवत्सर, रामनवमी, जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि और दशावतार व्रत. संवत्सर- इस व्रत का बहुत महत्त्व है. यह विक्रम संवत के नाम से प्रसिद्ध है. यह संवत्सर चैत्र मस शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है. इस संवत का बहुत महत्त्व है. उल्लेख मिलता है कि इसी दिन ब्रहमाजी ने श्रृष्टि का सृजन किया था. संवत्सर पूजन में सबसे पहले ब्रह्माजी का पूजन किया जाता है. इस व्रत की समाप्ति पर नीम की कच्ची कोंपल में जीरा, हींग, सेंधा नमक, अजवायन और काली मिर्च मिलाकर खाने का विधान है. इससे वर्ष भर व्यक्ति निरोग रहता है और अनेक तरह के शारीरिक विकार दूर हो जाते हैं. इस दिन पूरनपोली बनाने का भी बहुत चलन है. विभिन्न प्रांतों में इसे कुछ अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है. रामनवमी- इस दिन भगवान् विष्णु के अवतार श्रीराम का जन्म हुआ था. यह तिथि चैत्र शुक्ल नवमी को आती है. यह वर “नित्य”, “नैमित्तिक” और “काम्य” तीनों तरह से किया जाता है. नित्य व्रत पुण्य संचय के लिए किया जाता है. इसमें व्रत करने वाला कोई मनोकामना नहीं रखता. उसका उद्देश्य सिर्फ पुण्य संचय करना होता है. “नैमित्तिक व्रत पापों का नाश करने के उद्देश्य से किया जाता है. “काम्य” व्रत सुख-सौभाग्य आदि के लिए किया जाता है. अधिकतर भक्त सिर्फ भक्तिभाव से भगवान के प्रीत्यर्थ यह व्रत करते हैं. पूरे जीवनकाल में इस व्रत को निष्काम भक्ति के साथ किया जाए तो इससे अनंत फल की प्राप्ति होती है.श्रीराम का जन्म दोपहर में अभिजित नक्षत्र में हुआ था. लिहाजा इसी समय उनकी आरती कर खुशियाँ मनायी जाती हैं. घरों में भगवान के विग्रहों को नवीन वस्त्र धारण करवाए जाते हैं. घर में विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं और व्रत के बाद उन्हें प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है. जन्माष्टमी- यह भगवान श्रीकृष्ण का जन्म-दिवस है. भाद्रपद कृष्ण अष्टमी पर अर्धरात्रि को उनका जन्म हुआ था. इस दिन अधिकतर घरों और मंदिरों में रात को बारह बजे आरती और पूजन किया जाता है.घरों और मंदिरों में भगवान् की सुंदर झांकी सजाई जाती है. झूले में भगवान के लड्डूगोपाल विग्रह को रखकर झुलाया जाता है. भगवान को नए वस्त्र पहनाये जाते हैं. उनके प्रिय भोजन माखन-मिश्री का भोग लगाया जाता है. साथ ही पंजीरी भी प्रसाद रूप में वितरित की जाती है. इस दिन उनकी माता देवकी, पिता वासुदेव, भाई बलदेव, नंद और यशोदा तथा लक्ष्मीजी का भी पूजन किया जाता है. चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. भक्त लोग रातभर जागकर हरिनाम का संकीर्तन करते हैं. महाशिवरात्रि- इस व्रत की भी बहुत महिमा है. यह फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को किया जाता है. माना जाता है कि इस दिन शिव-पार्वती की विवाह सम्पन्न हुआ था. इस दिन आधी रात को करोड़ों सूर्यों की प्रभा के समान शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था. यह शिवलिंग शिव की महाशक्ति का प्रतीक है. इस व्रत को भक्त बहुत श्रद्धा भाव से करते हैं. इस दिन व्रत में बहुत से भक्त केवल फलाहार करते हैं. शिवजी की कृपा प्राप्त करने के लिए इस व्रत का विधान किया गया है. दशावतार- यह व्रत भाद्रपद शुक्ल दशमी को किया जाता है. इसमें देव, ऋषि और पितरों का तर्पण किया जाता है. इसमें भगवान के मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, राम, कृष्ण, परशुराम, बुद्ध और कल्कि अवतारों की पूजा की जाती है. इस व्रत को करने से वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है.