स्टोरी हाइलाइट्स
संगीत- भारत में शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख विधाएं - हिंदुस्तानी और कर्नाटक - गुरू-शिष्य परंपरा का निर्वाह करती चली आ रही हैं। इसी परंपरा ने घरानों और संप्रदायों की स्थापना की प्रेरणा दी जो बराबर आगे बढ़ रही है।
संगीत- भारत में शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख विधाएं - हिंदुस्तानी और कर्नाटक - गुरू-शिष्य परंपरा का निर्वाह करती चली आ रही हैं। इसी परंपरा ने घरानों और संप्रदायों की स्थापना की प्रेरणा दी जो बराबर आगे बढ़ रही है।
नृत्य- भारत में नृत्य परंपरा 2000 वर्षों से भी ज्यादा वर्षों से निरंतर चली आ रही है। नृत्य की विषयवस्तु धर्मग्रंथों, लोककथाओं और प्राचीन साहित्य पर आधारित रहती है। इसकी दो प्रमुख शैलियां हैं - शास्त्रीय नृत्य और लोकनृत्य। शास्त्रीय नृत्य वास्तव में प्राचीन नृत्य परंपराओं पर आधारित है और इनकी प्रस्तुति के नियम कठोर हैं। इनमें प्रमुख हैं - 'भरतनाट्यम', 'कथकली', 'कत्थक', 'मणिपुरी', 'कुचिपुड़ी' और 'ओडिसी'। 'भरतनाट्यम' मुख्यत: तमिलनाडु का नृत्य है और अब यह अखिल भारतीय स्वरूप ले चुका है। 'कथकली' केरल की नृत्यशैली है। 'कत्थक' भारतीय संस्कृति पर मुगल प्रभाव से विकसित नृत्य का एक अहम शास्त्रीय रूप है। 'मणिपुरी' नृत्यशैली में कोमलता और गीतात्मकता है जबकि 'कुचिपुड़ी' की जड़ें आंध्र प्रदेश में हैं। ओडिशा का 'ओडिसी' प्राचीनकाल में मंदिरों में नृत्य रूप में प्रचलित था जो अब समूचे भारत में प्रचलित है। लोकनृत्य और आदिवासी नृत्य की भी विभिन्न शैलियां प्रचलित हैं।
शास्त्रीय और लोकनृत्य दोनों को लोकप्रिया बनाने का श्रेय संगीत नाटक अकादमी, तथा अन्य प्रशिक्षण संस्थानों और सांस्कृतिक संगठनों को जाता है। अकादमी सांस्कृतिक संस्थानों को आर्थिक सहायता देती है और नृत्य तथा संगीत की विभिन्न शैलियों में विशेषत: जो दुर्लभ हैं, को बढ़ावा देने तथा उच्चशिक्षा और प्रशिक्षण के लिए अध्ययेताओं, कलाकारों और अध्यापकों को फेलोशिप प्रदान करती है।
रंगमंच- भारत में रंगमंच उतना ही पुराना है जितना संगीत और नृत्य। शास्त्रीय रंगमंच तो अब कहीं-कहीं जीवित है। लोक रंगमंच को अनेक क्षेत्रीय रूपों में विभिन्न स्थानों पर देखा जा सकता है। इनके अलावा शहरों में पेशेवर रंगमंच भी हैं। भारत में कठपुतली रंगमंच की समृद्ध परंपरा रही है जिनमें सजीव कठपुतलियां, छड़ियों पर चलने वाली कठपुतलियां, दस्ताने वाली कठपुतलियां और चमड़े वाली कठपुतलियां (समानांतर रंगमंच) प्रचलित हैं। अनेक अर्द्ध-व्यावसायिक और शौकियां रंगमंच समूह भी हैं जो भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में नाटकों का मंचन करते हैं।