भारत का सबसे बड़ा व्यक्तिगत विवाद: इंदिरा गांधी और महारानी गायत्री देवी (Rajmata Gyatri Devi) के बीच जंग का रोचक इतिहास|


स्टोरी हाइलाइट्स

rajmata gayatri devi : ये कहानी काफी पुरानी है । तब से जब से दोनों शांतिनिकेतन में एक साथ अध्ययन करती थीं। Indra Ghandi....rajmata gayatri devi

rajmata gayatri devi सबसे बड़ा व्यक्तिगत विवाद: इंदिरा गांधी और महारानी गायत्री देवी   ये कहानी काफी पुरानी है । तब से जब से दोनों शांतिनिकेतन में एक साथ अध्ययन करती थीं। इन दोनों हस्तियों के विवाद पर हाल ही एक मूवी भी बनी है । बादशाहों ! 1975 की आपातकाल के दौरान देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने महारानी गायत्री देवी(rajmata gayatri devi) के राजमहल पर छापा डलवा दिया था| और रातों रात सेना भेज कर उनका पूरा राजमहल खुदवा दिया था । उन्होंने महारानी गायत्री देवी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने काफी दौलत राजमहल में छिपा रखी है जिसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। गायत्री देवी ने इस आरोप से इंकार किया था। जयपुर की तीसरी महारानी गायत्री देवी(rajmata gayatri devi) को आपातकाल के दौरान PM इंदिरा गांधी के निर्देश पर जुलाई 1975 में 6 महीने के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया गया था. उन्होंने अपने संस्मरण में कारावास के दिनो को याद करते हुए लिखा है, कि "तिहाड़ जेल मछली बाजार की तरह था, जो छोटे-मोटे चोर और चीखती-चिल्लाती वेश्याओं से भरा हुआ था.’’ प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी के साथ उनके रिश्तों पर भी चर्चा जरूरी है. आपातकाल के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जिन लोगों को जेल भिजवाया, उनमें विपक्ष के कई नेता, पत्रकार और अन्‍य लोग शामिल थे. कई लोगों को आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा एक्ट) के तहत कारावास में रखा गया था. इनमें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निशाने पर कूच बिहार की राजकुमारी और जयपुर की तीसरी महारानी गायत्री देवी भी थीं, जिन्हें राजमाता के नाम से भी जाना जाता था. महारानी गायत्री देवी(rajmata gayatri devi) को आपातकालीन घोषित करने के बाद तिहाड़ जेल भेज दिया गया था. कौन थीं गायत्री देवी- महारानी गायत्री देवी(rajmata gayatri devi) का जन्म पूर्व महाराजा जितेंद्र नारायण भूप बहादुर के घर 23 मई, 1919 को हुआ था. उनके बचपन का नाम आयशा था, लेकिन एक दिन उनकी मां की एक मुस्लिम सहेली ने जब उनको ये कहा कि आयशा तो इस्‍लाम वाला नाम है, तो उनकी मां ने आयशा से बदलकर उनका नाम गायत्री रख दिया. महारानी गायत्री देवी(rajmata gayatri devi) की पढ़ाई शांति निकेतन और स्विट्जरलैंड में हुई थी. बचपन से ही उन्हें खेल-कूद का काफी रुची था. महारानी गायत्री देवी(rajmata gayatri devi) और महाराजा मानसिंह की पहली मुलाकात लंदन में पोलो ग्राउंड पर हुई थी. उनकी मनोहरता पर महाराजा फिदा हो गए थे. पहले से 2 बार विवाह कर चुके महाराजा मानसिंह ने 9 मई, 1940 को गायत्री देवी से शादी कर ली. लंदन में पली-बढ़ी गायत्री देवी को जयपुर में राजस्थान के रीति-रिवाजों के आकलन से खुद को ढालना पड़ा, लेकिन उन्हें पर्दा प्रचलन से बेहद नफरत थी. जयपुर राजघराने के दकियानूसी रिवाजों की परवाह किए बगैर महारानी अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जिया करती थी. 1962 में महारानी गायत्री देवी(rajmata gayatri devi) ने जयपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था. उन्‍होंने 2,46,516 में से 1,92,909 वोट हासिल कर बड़ी जीत प्राप्त की थी. गायत्री देवी को स्वतंत्र पार्टी से टिकट दिया गया था, जो कि राजगोपालाचारी की पार्टी थी. ये पार्टी कांग्रेस की उम्मीदवार श्रद्धा देवी के लिए बहुत बडी चुनौती साबित हो रही थी. खुशवंत सिंह लिखते हैं कि महारानी गायत्री देवी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एक-दूसरे को काफी लम्बे समय से जानती थीं. दोनों ने एक साथ रवींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में पढ़ाई की थी. खुशवंत सिंह के मुताबिक: इंदिरा गांधी संसद में अपने से ज्यादा सुंदर स्त्री को बर्दाश्त नहीं कर पाती थीं. एक बार तो उन्होंने महारानी गायत्री देवी को भरी सभा में तिरस्कार भी किया था. संसद में गायत्री देवी का होना इंदिरा गांधी के लिए सबसे बड़ी घबराहट का काम करता था.जब इंदिरा गांधी और गायत्री देवी साथ-साथ थीं, तब से इंदिरा को गायत्री की सुन्दरता और सुकीर्ति से परेशानी थी. 1962 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद ये दायरा और भी बढ़ गया. 1965 में प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने गायत्री देवी को पार्टी में शामिल करने का न्‍योता दिया, जिसे उन्होंने इनकार कर दिया. वे स्वतंत्र पार्टी से चुनाव लड़ीं और 1967 में भारी वोटों से कामयाबी हासिल की. लेकिन बाद में मालपुरा विधानसभा सीट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इंदिरा गांधी की ओर से प्रीवी पर्स खत्म कर देने से देसी रजवाड़े नाराज हो गए थे. भारतीय संविधान में 26वें संशोधन के जरिए राजाओं को मिलने वाली रकम एक झटके में खत्म कर दी गई. प्रीवी पर्स इन राजाओं के भारतीय संघ में शामिल होने के बदले में दिया जाता था. 25 जून, 1975 में जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकालीन का ऐलान किया, तब महारानी गायत्री देवी मुंबई में अपना इलाज करा रही थीं. जैसे ही उन्हें इस बात का पता चला, वो तुरंत दिल्ली लौटीं. लोकसभा पहुंचने पर विरोधी दल की सारी सीटें उन्हें खाली मिलीं. औरंगजेब रोड पर उनके घर पर इनकम टैक्स का छापा मारा गया, जिसमें उन पर विदेशी मुद्रा कानून के तहत सम्पत्ति छुपाने का आरोप लगाया गया. कारावास में गायत्री देवी की जिन्दगी- गायत्री देवी को 1975 में तिहाड़ जेल भेज दिया गया. वो वहां पूरे 6 महीने रहीं. जेल में भी गायत्री देवी की निर्भयता कम नहीं हुई. वहां वह कैदियों के बच्चों को पढ़ाने लगीं. उनके लिए स्लेट और किताबों की व्यवस्था की. बच्चों के लिए बैडमिंटन परिसर भी बनवाया. लेकिन जेल में उनकी तबीयत खराब हो गई. तिहाड़ पहुंचने के कुछ हफ्तों के बाद उन्हें मुंह का अल्सर हो गया. कहा जाता है कि जेल अधिकारियों ने उन्हें डेंटिस्ट से इलाज कराने की अनुमति देने में तीन सप्ताह का वक्त लिया. जेल में बिताए वक्त का उनकी सेहत पर असर पड़ा और बाद में उन्हें गैलस्टोन हो गया. आखिरकार उन्हें परोल पर रिहा कर दिया गया.कहा जाता है कि इसके लिए इंदिरा गांधी ने कई शर्तें रखीं, जो 1977 के चुनाव तक लागू रहीं. जेल से रिहा होने के बाद वह राजनीति से रिटायर हो गईं. इसके बाद उन्होंने A Princess Remembers: The Memoirs of the Maharani of Jaipur नाम से एक अपनी आत्मकथा लिखी. आपातकालीन के बाद हुए चुनाव में इंदिरा हार गईं. 1999 में कूचबिहार तृणमूल कांग्रेस ने गायत्री देवी को लोकसभा का टिकट देने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने ये स्‍वीकार नहीं किया.29 जुलाई, 2009 को फेफड़े के संक्रमण और लकवे से संघर्ष करते हुए गायत्री देवी का स्वर्गवास हो गया. 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