किसी को निर्वस्त्र नहीं देखना चाहिए और किन-किन चीजों को देखने की शास्त्रों में मनाही है? -दिनेश मालवीय
हमारे शास्रों में अनेक ऐसी चीजें हैं, जिन्हें देखने की मनाही की गयी है. पूछा जा सकता है कि समाज में रह रहे हैं और आँखें भी हैं, तो यह कैसे संभव है कि हम कुछ नहीं देखें. लेकिन यहाँ शास्त्रों का तात्पर्य जान बूझकर न देखने से है.
कूर्मपुराण और पद्मपुराण के अनुसार पराई स्त्री और पराये पुरुष को नग्नावस्था में नहीं देखना चाहिए. महाभारत तथा अन्य ग्रंथों में भी ऐसा ही कहा गया है. इसे बहुत बड़ा पाप तो माना ही गया है, साथ ही यह शिष्टता, लोकाचार, सभ्यता,शालीनता और नैतिकता के भी खिलाफ है. इसे व्यभिचार की श्रेणी में रखा गया है. इसके अलावा ऐसा करने से मनुष्य के मन में अनेक प्रक्रार के विकारों भी उत्पन्न होते हैं. मानसिकता विकृत हो जाती है. आगे चलकर ऐसा व्यक्ति रोग से पीड़ित हो जाता है. स्त्री को वस्त्रहीन देखने की कामना पुरुषों में बहुत अधिक होती है और वे इसके लिए सदा लालायित रहते हैं. लेकिन इस विषय में शास्त्रों के विधि-निषेध का पालन करना उचित है.
इसके अलावा हमारे ग्रंथों में किसी को मैथुन करते हुए नहीं देखना चाहिए. इसे भी बहुत घोर पाप माना गया है. ऐसा करने वाले का अपने सम्बन्धियों और परिजनों से वियोग होता है. आज तो पोर्नोग्राफी का क्रेज पूरी दुनिया में फैला हुआ है. समाज में बढ़ रहे अनेक यौन तथा अन्य अपराधों का यह एक बड़ा कारण है. मानव का मस्तिष्क यौन भावना से इस तरह मनोग्रस्त हो गया है कि उसका अधिकतर समय यौन चिन्तन में ही बीतता है. इस पर जितनी जल्दी रोक लगे उतना ही समाज के लिए अच्छा है.
यहाँ तक कहा गया है कि अपने स्वयं को भीदर्पण में मैथुनरत नहीं देखना चाहिए. इससे पत्नी में संकोच और गरिमा नष्ट होती है. पति और पत्नी के मन में एक-दूसरे के प्रति सम्मान में भी कमी आती है.
इसके अलावा, शव को स्पर्श किये हुए व्यक्ति, क्रोधित गुरु के चेहरे और तेलया जल में पड़नेवाली अपनी छाया को नहीं देखना चाहिए.पानी में पड़ने वाले सूर्य और चन्द्र के प्रतिबिम्ब को देखना भी निषेध किया गया है. ऐसा करने वाले को शोक प्राप्त होता है. चन्द्र और सूर्य की जलसे परावर्तित किरणें कुछ देर निरंतर देखने से मन, बुद्धि, नेत्रों में थकन और उदासी के भाव उत्पन्न होते हैं. तेल या जल में अपनी छवि को लगातार देखने से भी ऐसे ही भाव पैदा होते हैं. सिर्फ शनि के कष्टों के समय ही तेलपात्र में मुखछाया देखने का विधान है. इससे नकारात्मकता दूर होती है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि शनि शोक, निराशा, शिथिलता और नकारात्मकता को बढाता है
गुरुयदि क्रोधित अवस्था में हों तो उनको नहीं देखना चाहिए, क्योंकि ऐसे में इनसे दृष्टि मिलना स्वाभाविक है, जो धृष्टता मानी जाती है. गुरु के सामने सदा आँखें नीची रखनी चाहिए.
पागल, नशे में धुत्त और मतवाले व्यक्ति को देखने से वह बुरा मान सकता है. वहआपको अपशब्द कहकर आपसे कलह भी कर सकता है. इसी तरह, जिस व्यक्ति ने शव को स्पर्श किया हो उसे नहीं देखना चाहिए, क्योंकि वह व्यक्ति शव के नकारात्मक आभामंडल में होता है. इसके अलावा, मृत व्यक्ति की तेरहवीं हो जाने तक उसकी चिता को अग्नि देने वाले व्यक्ति को नहीं छूने को कहा गया है. उसका कारण भी यही है कि वह शव के नकारात्मक आभामंडल में रहता है.हम खुद महसूस कर सकते हैं कि शव को छूने वाले व्यक्ति के चेहरे पर एक अजीब सी नकारात्मकता और उदासी छाई रहती है.
शास्त्रों में मल-मूत्र को भी न देखने को कहा गया है. बहरहाल, किसी बीमारी के परीक्षण आदि जैसी विशेष परिस्थिति में ऐसा करने की छूट है. शौचालय में भी अधिक समय तक न रहने को कहा गया है. वहाँ मुख खोलकर बैठना या कुछ खाना-पीनापूरी तरह वर्जित है. कुछ लोग तो शौच के समय जब तक बीडी-सिगरेट न पियें या तम्बाकू नखाएं, तब तक उन्हें शौच ही नहीं होता. लेकिन यह एक मनो वैज्ञानिक भ्रम है, जिसे दूर कर ऐसा नहीं करना चाहिए. यह स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है. ज्योतिष की दृष्टि से पाखाना राहु का स्थान है. इसका घर में होना ही निषेध किया गया है, लेकिन आज कल स्थान की कमी और अन्य कारणों से घर में ही इसे बनाया जाने लगा है, वरना इसे घर के बाहर ही होना चाहिए.घर में इसके होने पर इसके दरवाजे को हमेशा बंद रखना चाहिए और वहां के लिए चप्पल भी अलग होनी चाहिए.
शास्त्रों के अनुसार,उदय होते होते हुए और अस्त होते हुए तथा दोपहर के समय सूर्य को बिना किसी कारण के नहीं देखना चाहिए. ऐसा करने से रोगों और व्याधियों में वृद्धि होती है. कृष्ण पक्ष के अपूर्ण चन्द्र को उदयकाल में देखने से रोग होते हैं. केवल पूर्णिमा का चाँद ही उदित होता देखना अच्छा माना गया है. सूर्य की ओर बिल्कुल नहीं देखना चाहिए. चिकित्सा शास्त्र के ग्रन्थ अष्टांग हृदय में इसे स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक माना गया है. अस्त होते हुए सूर्यया चंद्रमा और कृष्ण पक्ष के चन्द्र को लगातार देखने से आत्मबल और मनोबल की हानि होती है. ग्राहणकाल में नंगी आँखों से सूर्य को देखने के नुक्सान तो सभी को ज्ञात हैं.
शास्त्रों के अनुसार कुल मिलकर, चमकीली, सूक्षम, अस्थिर, अपवित्र और अप्रिय वस्तुओं को लगातार नहीं देखना चाहिए.चन्द्र, सूर्य, तारों आदि को जूठे मुंह नहीं देखना चाहिए. ब्राह्मण, गुरु, देवता, राजा, श्रेष्ठ सन्यासी, योगी, देवकार करने वाले और धर्मोपदेश करने वाले व्यक्ति के सामने भी जूठे मुंह या अशुद्ध स्थति में नहीं जाना चाहिए. इनके सामने पण-गुज्का खाते हुए या मुंह में कोई अन्य चीज चबाते हुए नहीं जाना चाहिए. यह उनका अनादर होता है.