जुलानिया की बेनूर विदाई, मध्य प्रदेश ब्यूरोक्रेसी की हुई जग हंसाई| ................. अतुल विनोद
Highlights : सेवानिवृत्ति पर जुलानिया की जिस ढंग से वेनूर विदाई हुई है, उससे मध्य प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी की भी जग हंसाई हुई है| मध्यप्रदेश में प्रशासनिक अधिकारियों को अपमानित करने का सिलसिला पिछले दिनों से तेजी से बढ़ा है|
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नौकरशाह राधेश्याम जुलानिया 30 सितंबर को सेवानिवृत्त हो गए हैं, वैसे तो वह 6 महीने पहले से ही सेवानिवृत्त जैसे ही थे| उन्हें केवल वेतन मिल रहा था काम करने के लिए उनके पास कोई पद नहीं था|
6 महीने से बिना पद के प्रशासनिक अपमान झेल रहे जुलानिया सेवानिवृत्ति के बाद राहत ही महसूस कर रहे होंगे|
कम से कम उस अपमान से तो बचे जो सेवा में रहते हुए कोई पद नहीं होने से हो रहा था|
सेवानिवृत्ति पर जुलानिया की जिस ढंग से वेनूर विदाई हुई है, उससे मध्य प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी की भी जग हंसाई हुई है| मध्यप्रदेश में प्रशासनिक अधिकारियों को अपमानित करने का सिलसिला पिछले दिनों से तेजी से बढ़ा है| इससे पहले अपर मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया गया था| वे 30 जून को रिटायर होने वाले थे और 20 दिन पहले ही उनसे पंचायत एवं ग्रामीण विकास का प्रभार वापस ले लिया गया था, एक तरह से 20 दिनों तक नाम मात्र के विभाग के एसीएस रहे|
ख़ास बात ये रही कि दोनों अधिकारी मध्यप्रदेश के मूल निवासी हैं| और दोनों सीधे आईएस बने थे|
देश में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और राजनेताओं के बीच ऐसे गठबंधन विकसित हो गए हैं जो इस सेवा के औचित्य पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं|
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने छत्तीसगढ़ के एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि देश के नौकरशाह और पुलिस अफसर जिस तरह का बर्ताव कर रहे हैं, उसे लेकर उन्हें आपत्ति है उन्होंने कहा कि देश में नया चलन चल रहा है| अफसर सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में हो जाते हैं| जब विपक्ष की सरकार बनती है तो नई सरकार उनके विरुद्ध कार्यवाही करती है|
मुख्य न्यायाधीश ने जिस बात की तरफ इशारा किया है वह तो बीमारी के रूप में प्रशासनिक सेवाओं में लग गई है| बड़े अफसर राजनीतिक पाप के भागीदार बन जाते हैं| उन्हें सर्विस रूल बुक से ज्यादा पॉलिटिकल रूलबुक की चिंता ज़्यादा होती है| जब इतने बड़े अफसर नहीं बच पाते तो छोटे लेवल पर काम कर रहे अधिकारी तो कुछ भी नहीं कर सकते|
लगभग हर राज्य में ब्यूरोक्रेसी में जाति, समाज और राज्य के नाम पर लामबंदी होती है| हर राज्य में दलित, ब्राम्हण, पंजाबी, उड़िया बिहारी और दक्षिण भारत की लाबियाँ हैं|
प्रशासन में जब भी जो खेमा ताकतवर होता है, वह अनुभाग स्तर तक अपने खेमे को मजबूत करने की कोशिश करता है|
लामबंदी का यह जो रोग है, इसी का दुष्परिणाम है कि समय-समय पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के साथ अपमानजनक परिस्थितियों का निर्माण होता है|
भारतीय प्रशासनिक सेवा में बैच महत्वपूर्ण होता है| बैच का मतलब है कि उस वर्ष में कितने अधिकारियों का उदय उस सेवा में हुआ है|
बैच के अफसरों के बीच एक बोन्डिंग होती है, लेकिन राज्यों में भारतीय प्रशासनिक सेवा का सबसे बड़ा पद मुख्य सचिव का होता है| जो भी बैच इस पद के लिए अहर्ता के करीब होता है, तो फिर उस बैच में उस पद के लिए कटुता शुरू हो जाती है| वर्षों पहले से सेवाकाल और मुख्य सचिव पद की संभावना को देखते हुए बैच में एक दूसरे की संभावनाओं को समाप्त करने का कुचक्र शुरू हो जाता है|
मुख्य सचिव का पद तो एक ही है किसी एक व्यक्ति को ही मिलेगा, तो समान कैडर के दूसरे अधिकारी से उसकी प्रतिद्वंदिता स्वाभाविक होती है |
राधेश्याम जुलानिया स्वयं एक तुनक मिजाज किस्म के अफसर हैं| उनकी योग्यता पर कभी कोई सवाल नहीं उठा, लेकिन सिंचाई विभाग में एसीएस रहते हुए उन पर कई तरह के आरोप भी लगे| तत्कालीन सरकार और मुख्यमंत्री ने उन्हें पूरा संरक्षण दिया और जल संसाधन विभाग उनकी मर्जी से ही चला|
विभाग में ईएनसी के रूप में एमजी चौबे को 5 साल से अधिक समय तक संविदा नियुक्ति जुलानिया के ही सुझाव पर मिलती रही| जो अधिकारी शासन में इतना महत्वपूर्ण हो कि उसके कार्यकाल में हासिल उपलब्धियों को सरकार चुनाव में भुनाए|
चुनावी घोषणा पत्रों में राज्य में सिंचाई क्षमता बढ़ाने की उपलब्धि बताई जाए| वही अफसर सेवानिवृत्ति के 6 महीने पहले ऐसा क्या कर देता है कि सरकार उसे बिना पद के वेतन देती है और उन्हें बिना पद के ही अपमानजनक परिस्थितियों में सेवानिवृत्त होना पड़ता है|
जुलानिया ने अगर कोई प्रशासनिक पाप किया है तो उसके लिए 6 महीने तक कोई पद नहीं देना दंड नहीं है| वह पाप सामने आना चाहिए और उसके लिए उनके खिलाफ कार्रवाई होना चाहिए|
लेकिन इस स्तर के अधिकारी के साथ जब इस तरह का अपमानजनक व्यवहार हो सकता है तो फिर बाकी अफसर के साथ तो कुछ भी हो सकता है| मनोज श्रीवास्तव 20 दिन बाद रिटायर हो रहे थे उन्होंने ऐसा कौन सा पाप विभाग में कर दिया था जिसके कारण उन्हें 20 दिन तक विभाग में नहीं रखा जा सकता था|
सरकार ने उन्हें अपमानजनक परिस्थितियों में हटाया है तो निश्चित ही कोई गंभीर बात होगी| लेकिन यह गंभीर बात सामने लाई जाना चाहिए और इसके लिए उन्हें आवश्यक दंड भी मिलना चाहिए|
सरकार में हर चीज सर्विस रूल के मुताबिक होती है| किसी भी अफसर ने अगर उसका उल्लंघन किया है तो उसे दंडित होना चाहिए, लेकिन अपमानजनक ढंग से व्यवहार किसी के साथ भी स्वीकार नहीं हो सकता|
आजकल एक ट्रेंड बन गया है कि बैठकों में किसी भी बात पर कलेक्टर, पुलिस अधीक्षकों को अपमानित कर पद से हटा दिया जाता है| पद से हटाने पर कोई एतराज नहीं है लेकिन जिस तरह से अपमानित किया जाता है वह आपत्तिजनक है और बाद में वही अधिकारी फिर से महत्वपूर्ण स्थान पर पदस्थ हो जाता है|
मध्य प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी अच्छी मानी जाती है ब्यूरोक्रेसी का सत्ता के साथ तालमेल सर्विस रूल के अनुरूप होना चाहिए| ब्यूरोक्रेसी और जनता के रिश्तो और व्यवहार पर तो हमेशा सवाल उठते रहते हैं लेकिन ब्यूरोक्रेसी के अंतर्गत अंदरूनी दांवपेच भारतीय प्रशासनिक सेवाओं पर ही सवालिया निशान खड़े कर देते हैं| क्या इस सेवा के बारे में और उसके स्ट्रक्चर को बदलने पर नहीं सोचा जाना चाहिए?