पैसे की कद्र -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

पैसे की कद्र -दिनेश मालवीय दुनिया में पैसा कमाना बहुत कठिन लेकिन ज़रूरी काम है. लेकिन उस पैसे को कब कहाँ और कैसे खर्च करना है, यह जानना उससे भी ज़रूरी है. हमारी ही हिन्दी फिल्मों के सुपर स्टार शाहरुख़ खान ने कई बार कहा है कि जो पैसे की कद्र नहीं करता, पैसा भी उसकी कद्र नहीं करता. बेशक पैसा खर्च करने के लिए होता है, लेकिन कब, कहाँ और कैसे यह जानना चाहिए, इसकी सही समझ बहुत ज़रूरी है. महान अभिनेता पृथ्वीराज कपूर अपने बच्चों को पैसे की कद्र करना सिखाते थे. वह व्याहारिक तरीके से बच्चों को समझाते थे कि दुनिया किसी भी चीज को प्राप्त करना कितना कठिन होता है. पृथ्वीराज बहुत सम्पन्न व्यक्ति थे. लेकिन बच्चों द्वारा कुछ भी मांगने पर वह तत्काल उसे वह चीज नहीं दिलाते थे. उनकी किसी जिद को तत्काल पूरा नहीं करते थे. इसके पीछे उनकी सोच यही थी कि बच्चों को यह अहसास होना चाहिए कि वो जो चीज मांग रहे हैं उसके महत्त्व का उन्हें अहसास होना चाहिए. तभी वे उसकी कद्र कर पाएँगे. वे वह चीज उन्हें दिलवा तो देते थे, लेकिन इसके लिए वह उनसे इंतज़ार करवाते थे. हमारी पुरानी पीढ़ी के अधिकतर लोग इसी प्रकार बच्चों को संस्कारित करते थे. विश्व के सबसे धनवान परिवारों में शामिल अम्बानी परिवार के अनिल अम्बानी का भी एक बहुत रोचक प्रसंग है. एक बार वह उज्जैन में भगवान महाकाल के दर्शन करने गये. दर्शन करके जब वह बाहर आये तो एक छोटी-सी चाय की गुमठी पर उन्होंने चाय पी, जिसकी कीमत पाँच रूपये थी. उन्होंने दुकानदार को दस रूपये का नोट दिया. चाय वाला सोच रहा था वह इतने बड़े आदमी हैं, बकाया पाँच रूपये थोड़े ही मांगेंगे. लेकिन अनिलजी ने बाकी पैसे मांग लिए. यह उनकी कंजूसी नहीं, उसूल की बात थी. इस सम्बन्ध में पुराने समय का एक प्रसंग भी उल्लेखनीय है. महामना पंडित मदनमोहन मालवीय वाराणसी में हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए देशभर में घूमकर लोगों से पैसा एकत्रित कर रहे थे. एक बार वह राजस्थान के सेठ के घर चंदा मांगने गये. तब देश में बिजली नहीं थी. कोई कितना भी धनवान हो, उसे लालटेन की रोशनी से ही काम चलाना पड़ता था. मालवीयजी शाम के समय सेठ के घर पहुँचे. तब उसके नौकर ने लालटेन जलाने के लिए माचिस की तीन तीलियाँ जला दीं. सेठ ने उसको बहुत बुरी तरह फटकारा, कि इस तरह तीलियाँ बर्बाद क्यों कीं. यह देखकर मालवीयजी को लगा कि यह सेठ बहुत कंजूस है. यह क्या दान देगा. लिहाजा वह लौट गये. फिर भी दूसरे दिन सुबह उन्होंने सोचा कि चलो उससे मिलता तो चलूँ. सेठ से मिलने पर सेठ ने उन्हें 50 हज़ार रूपये दान में दिए. उस समय यह बहुत बड़ी रकम होती थी. महामना ने सेठ से पूछा कि काल शाम आप तीन तीलियाँ बर्बाद करने पर नौकर को डांट रहे थे. यह सुनकर मुझे लगा कि आप एक छदम्मी भी दान में नहीं देंगे. सेठ ने कहा कि मैं व्यर्थ के नुकसान को सहन नहीं करता. लेकिन अच्छे काम के लिए तो मैं अपनी सारी सम्पत्ति दान कर सकता हूँ. आखिर यह किस दिन के लिए अर्जित की है. तो दोस्तों, याद रखिये पैसा कमाना कठिन है, लेकिन उसका सदुपयोग करना बहुत ज़रूरी है. पैसा यूँ ही बर्बाद नहीं करते रहना चाहिए. उसका सही जगह और सही तरीके से इस्तमाल करना सीखना और बच्चों को सिखाना चाहिए.