वन विभाग ने 3.50 करोड़ रुपए का वर्मी कंपोस्ट एसएचजी खरीदने का दिया प्रस्ताव, अफसरों ने किया विरोध. गणेश पाण्डेय


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भोपाल:  वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान एवं विस्तार ने 3.50 करोड़ रुपए के वर्मी कंपोस्ट खरीदी का नया मॉडल तैयार किया है...

वन विभाग ने 3.50 करोड़ रुपए का वर्मी कंपोस्ट एसएचजी खरीदने का दिया प्रस्ताव, अफसरों ने किया विरोध. गणेश पाण्डेय गणेश पाण्डेय भोपाल:  वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान एवं विस्तार ने 3.50 करोड़ रुपए के वर्मी कंपोस्ट खरीदी का नया मॉडल तैयार किया है. इसके तहत सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) का गठन किया जा रहा है. सेल्फ हेल्प ग्रुप वर्मी कंपोस्ट तैयार करेगा और उसे अनुसंधान एवं विस्तार शाखा खरीदकर डीएफओ सामान्य को सप्लाई करेगी. प्रधान मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान विस्तार के खरीदी के नए मॉडल से दो अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक सहमत नहीं है. इन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों ने अपनी आपत्ति भी लिखित में दर्ज कराई है. खरीदी के नए मॉडल पर आपत्ति दर्ज कराने वाले एपीसीसीएफ का कहना है कि जब सेल्फ हेल्प ग्रुप के वर्मी कंपोस्ट की खरीदी अनुसंधान एवं विस्तार शाखा क्यों करेगा ? एसएसजी संस्था वर्मी कंपोस्ट सीधे वन मंडलों को सप्लाई करें. इसमें अनुसंधान एवं विस्तार शाखा सहभागी नहीं बनेगा. एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर टिप्पणी की कि या तो भ्रष्टाचार की एक नया शाखा तैयार करने का मॉडल है. अधिकारियों की आपत्ति के बाद भी प्रधान मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान एवं विस्तार आनंद कुमार अपने मॉडल को लागू करवाने में पड़े हुए हैं. उनके इस प्रस्ताव पर डीजी फॉरेस्ट डॉ राजेश कुमार श्रीवास्तव की मौन स्वीकृति भी है. दिलचस्प पहलू यह है कि दोनों ही अक्सर अगले महीने सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं. *एचएसजी बनाने के लिए प्रशिक्षण का दौर जारी एसएसजी के गठन के लिए डॉ निकिता पाठक नर्सरी प्रभारियों को प्रशिक्षण दे रही हैं. डॉ पाठक को 11 सर्किलों प्रशिक्षण देने का काम दिया गया है. इसके लिए न तो कोई निविदा बुलाई गई और न ही अशासकीय संगठनों (एनजीओ) से प्रस्ताव आमंत्रित किए गए. पीसीसीएफ कुमार ने सीधे प्रशिक्षण का काम दे दिया है. डॉक्टर पाठक बताती हैं कि उन्हें प्रति ट्रेनिंग का ₹700 दिया जा रहा है. यह काम उन्हें सागर के रामसेवक कुशवाहा के जरिए हासिल हुआ है. डॉ पाठक बताती हैं कि वह सर्किलों में प्रशिक्षण दे चुकी हैं. इंदौर झाबुआ और रतलाम मेको बिटिया का रण प्रशिक्षण का कार्यक्रम स्थगित कर दिया है. *वर्मी कंपोस्ट ₹15 से 20 में खरीदने की तैयारी वन विभाग की अनुसंधान एवं विस्तार शाखा 70 से 80 हजार क्विंटल वर्मी कंपोस्ट तैयार करती है. शाखा यही वर्मी कंपोस्ट वन मंडलों को ₹5 किलो की दर से प्रदाय करती है. पूर्व पीसीसीएफ पीसी दुबे वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की विधि नर्सरियों मैं तैनात अधिकारी एवं कर्मचारियों को अवगत करा चुके है. पीसीसीएफ आनंद कुमार द्वारा प्रस्तावित मॉडल के तहत वर्मी कंपोस्ट एसएचजी संगठन से 15 से ₹20 प्रति किलो की दर से खरीदने का प्रस्ताव है. विभाग के अधिकारियों का मानना है कि महिला बाल विकास में बहुचर्चित पोषण आहार घोटाले की तरह ही खरीदी का यह मॉडल तैयार किया गया है. इसमें वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के लिए एसएचजी के खाते में राशि आवंटित करने का प्रावधान किया गया है. *पीडी अकाउंट में राशि जमा करने दिए थे मौखिक निर्देश वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए एसएचजी को आर्थिक मदद करने की मंशा से पीसीसीएफ अनुसंधान एवं विस्तार ने 21 मार्च रविवार को सभी मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान विस्तार को कैंपा फंड की शेष बची राशि को पीडी अकाउंट में जमा करने के मौखिक निर्देश दिए थे. कैंपा फंड अथवा विभागीय वर्ष में शेष बची राशि को किसी भी स्थिति में पीडी अकाउंट में जमा नहीं किया जा सकता. वित्त विभाग के इस नियम से सभी अवगत थे, इसीलिए इसकी सूचना से मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान एवं विस्तार ने अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक संजय शुक्ला को अवगत कराया. एपीसीसीएफ अनुसंधान एवं विस्तार ने सभी मुख्य वन संरक्षक सामाजिक वानिकी वन वृत्त को एक पत्र लिखकर वित्तीय वर्ष में शेष बची राशि को किसी भी स्थिति में पेड़ पीडी अकाउंट में जमा नहीं करने के निर्देश दिए. अपने पत्र में पीसीसीएफ ने उल्लेख किया है कि यदि अपरिहार्य कारण वश पूर्ण राशि का उपयोग नहीं हो पा रहा है तो समय रहते तत्काल शेष राशि समर्पित करें. *भारतीय वन प्रबंधन संस्थान भोपाल करेगा शोध केंचुए से खाद का शोध कई बार किया जा चुका है. अनुसंधान एवं विस्तार शाखा के पीसीसीएएफ भारतीय वन प्रबंधन संस्थान से केंचुए खाद पर शोध कराने जा रहे हैं. यह निर्णय इसलिए लिया गया है कि संस्थान में पीसीसीएफ के बैचमेट पंकज श्रीवास्तव प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ है. हालांकि अनुसंधान एवं विस्तार शाखा में शोध के लिए ₹7लाख प्रावधान है. यह राशि टीएफआरआई (उष्ण कटिबंधीय वन अनुसंधान) संस्थान जबलपुर और एसएफआरआई ( स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट जबलपुर ) को दिया जाता रहा है.