प्रख्यात फोटोग्राफर प्रवीण कुमार पाटौद के कैमरे से ...................................
एक अनीह अरूप अनामा।अज सच्चिदानन्द पर धामा।
ब्यापक विश्वरूप भगवाना।तेहिं धरि देह चरित कृत नाना।
अर्थात प्रभु एक हैं, उनका कोई रूप या नाम नहीं,उन्हें कोई इच्छा नहीं, वे अजन्मा और परमानंद परमधाम हैं, सर्वव्यापी विश्वरूप हैं. उन्होंने अनेक रूप और शरीर धारण कर कई लीलाएं की हैं.
प्रभु राम के प्रति तुलसीदास की भक्ति कहती है कि ईश्वर को किसी एक रूप या नाम से बांधा नहीं जा सकता. वो सर्वत्र व्याप्त हैं.
राम के सर्वत्र व्याप्त होने की आस्था को सिर्फ एक देश तक ही सीमित नहीं किया जा सकता. दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में भी लोगों के जेहन में राम जीवित हैं,
रामकथा गूंजती हैं और राम की भक्ति से जुड़े तमाम मंदिर और निशानियों के हजारों साल पुराने सिलसिले मिलते हैं.
मैंने अपनी कई देशो की यात्रा मे श्रीराम को देखा ,और सुना ,खासकर दक्षिणपूर्व के आशियान देशो मे ,कहीं हजारो वर्ष पुराने मन्दिरो मे श्रीराम चरित्र अंकित है तो कही आधुनिक चौराहो पर मूर्ति लगी है , कही गायन , कही उनका जीवन दर्शन , कही श्रीराम चरित्र पर स्थानिय संस्कृति की रामलीला का मंचन तो रामचरित्र पुस्तको का लेखन या अनुवाद| कही रामभक्ति से परिपूर्ण रोजगार या व्यवसाय ,,,,ये सब मैने प्रत्यक्ष देखा सुना इन द्रश्यों को मैंने अपने कैमरे में कैद भी किया|
मध्य अमेरिका में दुर्लभ हनुमान जी की प्रतिमा प्राप्त हुई उसके संरक्षण के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। इसके साथ ही ईरान व इराक में भी दुर्लभ चित्र मिले हैं|
विदेशों के राम कथा
भारतीय भाषाओं में राम कथा पर चर्चा करने से पूर्व विदेशों में राम कथा का संकेत देना समीचीन होगा क्योंकि चक्रवर्ती सम्राटों की कथा देशकाल की सीमोल्लंघन करती आई है। राम कथा भी इसका अपवाद नहीं है। रामायण की कथा को विदेशों तक पहुँचाने का श्रेय व्यापारियों, घूमंतुओं तथा धर्म प्रचारकों को जाता है भारतीय धर्म-प्रचारक भारतीय दर्शन का प्रचार प्रेमभाव से विदेशों में करते आए हैं| भारत ने कभी भी राजनीतिक उपनिवेशों की स्थापना नहीं की हमने धर्मांतरण में विश्वास न रख कर मानवीय मूल्यों के अनुसार धर्माचरण की शिक्षा पर बल दिया है हमने कई देशों की तरह धार्मिक प्रचार का राजनीतिक लाभ नहीं उठाया।परिणाम स्वरूप यहाँ की राम कथा विदेशों में पहुँचकर उनकी बन गई उन्होंने अपनी स्थानीय मान्यताओं के अनुसार कथा और पात्रों के नामों में परिवर्तन किया।
इधर से इस परिवर्तन का कोई विरोध नहीं हुआ। वहाँ सैकड़ों वर्षों के अंतराल और प्रचार के माध्यमों में परिवर्तन के कारण कथा भेद अब भी हो रहा है जो श्रुत परंपरा का स्वाभाविक गुण है। विदेशों में राम कथा की चतुर्दिश धाराएँ हैं इन में तिब्बत और चीन में राम कथा प्रचलित है दक्षिण के देश जावा, हिन्द चीन, श्याम, ब्रह्मा (म्याँमार) तो अभेद भाव से इसे अपनाए हुए हैं भले ही उनका कोई भी धर्म हो। इधर पश्चिम में यवन प्रदेश तथा अन्य यूरोपीय देशों में राम कथा किसी न किसी अंश में प्रचलित है। यहाँ संक्षेप में इसी ओर संकेत दिया जा रहा है।
-१. चीन
बौद्ध भिक्षुओं द्वारा चीन में राम कथा का प्रचार किया गया अनामक जातकम् (तीसरी शती ई०) तथा दशरथ कथानम् (दूसरी शती) में राम कथा उपलब्ध है इन दोनों जातकों का चीनी अनुवाद हुआ और इन ग्रंथों के आधार पर चीन देशीय रामायण का परिचय मिलता है वहाँ राम कथा की अपनी विशिष्टताएँ है।
-२. तिब्बत
तिब्बती राम कथा आठवी-नवमी शताब्दी के आस-पास की उपलब्ध होती है। इस कथा पर गुणभद्र के उत्तर पुराण कथा कथा सरित्सागर का प्रभाव अधिक है। मारीच का नाम मरुत्से हो गया है।
३. जावा
जावा की दसवीं शताब्दी की राम कथा रामायण का दिन मानी गई है। इसके अतिरिक्त चरित-रामायण सुमन सांता काकविन हरिश्रय केविन तथा अर्जुन विजय राम कथा से सम्पृक्त हैं।
४. मलय
मलय की रामकथा का प्रतिनिधि ग्रंथ हिकायत सेरीराम है। उधर राम केलिंग तथा सेरत कांड रचनाएँ नी बहुत लोकप्रिय है।
५. हिन्द चीन
रामकीर्ति यहाँ की प्रसिद्ध राम कथा रचना है। यह क्या बाली की रामायण से अधिक प्रभावित है।
६. श्याम
स्थान देश (थाईलैंड) में रामकथा रामकियेन (राजनीति) से प्रबल है।
७ ब्रह्म देश (म्यांमार)
ब्रह्मदेश की रामायण रामायण नाम से प्रसिद्ध है। बरनी रामायण श्यामी रामायण रामकियेन से प्रमाणित है।
८. खेलानी ( पूर्वी तुर्किस्तान) खेतानी रामायण कथा आदमी की मानी जाती है। इसके अनेक स्थानों पर स्थानीय परंपराओं के अनुसार कथा] को नो है।
९. यूरोप
भारत का यूरोप से १५वी सदी से हो गया था। व्यापारी मिशनरियों का आवागमन बढ़ने के साथ कथा को अपने साथ वहां ले गए इंग्लैंड फ्रांस पुर्तगाल आदि देशों में राम क्या अज्ञात नहीं है। साधनों के बढने तथा आधुनिक इलेक्ट्रानिकी के कारण रामकथा जिज्ञासुओं के उपलब्ध हो रही है। रूसी भाषा में भी रामायण का अनुवाद हो चुका है।
भारत को इस बात पर विशेष गर्व है कि राम का जन्म इस पावन भूमि पर हुआ अन्यथा राम कथा तो सार्वभौमिक और सार्वकालिक है। इनका आचरण सभी के लिए अनुकरणीय है। रामायण की कथा देखने के बाद जब एक रूसी लड़की से उसकी प्रतिक्रिया पूछी गई तो उसने तुरंत कहा कि मैं सीता की तरह एक पतिव्रता बनना चाहूँगी। भारतीय साहित्य के बारे में इसकी कला और व्यवहार की उदात्तता के कारण सामान्यतः यह कहा जाता है कि भारतीय संस्कृति के संरक्षण का भार देशों पर भी है ताकि संचार का मूल बीज बचा रह सके।
प्रवीण कुमार के फेसबुक वाल से साभार