उत्तर प्रदेश के चुनाव : क्या बीजेपी के हाथ से बाज़ी खिसक रही है? अतुल विनोद पाठक 


स्टोरी हाइलाइट्स

उत्तर प्रदेश चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं है| चुनाव आयोग ने यूपी में इलेक्शन की तैयारी शुरू कर दी है| उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड, पंजाब मणिपुर और गोवा में भी चुनाव होंगे लेकिन लोगों का ध्यान यूपी पर है|   यूपी हमेशा से सियासत का केंद्र रहा है| यूपी के चुनाव देश के चुनाव सरीखे लगते हैं| सवाल यह है कि कोविड-19 के दौर में योगी आदित्यनाथ की परफॉर्मेंस इस इलेक्शन में क्या असर डालेगी ? कहा यह जा रहा है कि कोविड-19 का योगी सरकार ने अच्छे ढंग से प्रबंधन नहीं किया|  ऐसा माना जा रहा है कि कृषि कानूनों पर किसानों की नाराजगी का खामियाजा उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को भुगतना पड़ेगा| बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर ब्राह्मणों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है ऐसा लगता है कि ब्राह्मणों का एक वर्ग व बसपा के साथ आ सकता है और इससे भारतीय जनता पार्टी पर असर होगा| उत्तर प्रदेश में हमेशा से मुकाबला बहुकोणीय रहा है BJP को उम्मीद रही है कि उसके विरोधी वोट डाइवर्ट हो जाएंगे और उसे इसका फायदा लगेगा| दरअसल उत्तर प्रदेश में समाजवादी, पार्टी बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और अन्य दल अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं| अलग-अलग चुनाव लड़ने की वजह से वोट बट जाते हैं और इसका सीधा फायदा बीजेपी उठा ले जाती है| लेकिन एक फार्मूला हमेशा काम करें यह जरूरी नहीं है| इतना जरूर है कि उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल यदि एक हो जाते हैं तो भारतीय जनता पार्टी को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है| इसकी संभावना कम है कि समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस मिलकर कोई गठबंधन बनाएंगे| यूपी में कांग्रेस भी सक्रिय है लेकिन कांग्रेस सपा बसपा से भी पीछे है|   भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में एक बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित हो चुकी है| जिसे 2014, 2019, 2017 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में 45% से ज्यादा वोट मिले| जबकि उसकी अपोजिट समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी को मिलाकर 20% और कांग्रेस को 10 परसेंट वोट मिले थे| उत्तर प्रदेश में वोटों का गणित बहुत जटिल है| यूपी में मुस्लिम मतदाताओं का अच्छा खासा दखल है तो ब्राह्मण वोटर कम नहीं है| यादव सहित ओबीसी मतदाताओं का भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में अच्छा स्थान रहा है|  उत्तर प्रदेश में फिलहाल anti-incumbency जैसी कोई स्थिति नहीं है| अभी ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है कि राज्य की जनता भारतीय जनता पार्टी से बेहद खफा है| कोविड-19 के दौर से लेकर पूरे कार्यकाल में जिन जिन क्षेत्रों में सरकार नाकाम साबित हुई है वहां वहां योगी आदित्यनाथ पेचवर्क करने में जुटे हुए हैं, ताकि जनाधार को खिसकने से बचाया जा सके| ब्राह्मण मतदाताओं को साधने के लिए भी कोशिशें जारी हैं| बसपा ब्राह्मण मतदाताओं में सेंध ना लगा सके इसके लिए भी आदित्यनाथ कोशिश कर रहे हैं| किसी भी राज्य में कोई पार्टी चुनाव तब हारती है जब वह अपने वोट प्रतिशत से  लगभग 10% गवा दे| लेकिन अभी उत्तर प्रदेश में इस तरह के हालात दिखाई नहीं देते| प्रदेश में वोटर्स की संख्या 14 करोड़ 56 लाख से बढ़कर 14 करोड़ 66 लाख हो गई है। 18 से 19 वर्ष की आयु के 3.92 लाख वोटर्स के नाम जोड़े गए हैं। युवा वोटर्स का मूड क्या है इसका कोई अनुमान नहीं लगाया गया है|  अब इस ऐज ग्रुप  के 7.42 लाख वोटर्स हो गए हैं। महिला वोटर्स की संख्या 5 लाख बढ़ी है। अब महिला वोटर्स की संख्या 6.74 करोड़ हो गई है। महिला वोटर्स का रुझान चुनाव के वक्त hi समझ आयेगा|  वहीं पुनरीक्षण अभियान में 7.85 लाख वोटर्स के नाम काटे गए हैं।   उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी नीतियां बनाने में जुटे.. उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के 19%, यादव समुदाय के 11%, और दलित समुदाय के 20 प्रतिशत वोट हैं|  मुस्लिम, यादव और दलितों को बीजेपी विरोधी बताया जाता रहा है| जब चुनाव होते हैं तो इन तीनों वर्गों के वोट पूरी तरह से बीजेपी विरोधी पार्टियों के खाते में नहीं जाते| कुछ वोट भारतीय जनता पार्टी को भी मिलते हैं| सबसे बड़ी बात यह है कि यह तीनों समुदाय किसी एक पार्टी के समर्थन में नहीं होते| इसलिए वोट बंटने का फायदा भी भारतीय जनता पार्टी को मिलता है| समाजवादी पार्टी मुस्लिम हिमायती होने का दावा करती है लेकिन उसे भी 100% मुस्लिमों का समर्थन हासिल नहीं है| मुस्लिमों के वोट में कांग्रेसी का भी अच्छा खासा स्थान है| बसपा भी मुस्लिम समुदाय से कुछ तक वोट बटोरने में कामयाब हो जाती है| यह पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में फिलहाल विपक्षी दलों को यदि चुनाव जीतना है तो रणनीति को और ज्यादा मजबूत करना होगा|  भारतीय जनता पार्टी की मौजूदा सरकार के खिलाफ ऐसे मुद्दे ढूंढने होंगे जो मतदाताओं के बीच सत्ता विरोधी माहौल तैयार कर सकें| किसी भी चुनाव में किसी भी मौजूदा सरकार को हराने के लिए कोई ऐसा मुद्दा जरूर होता है जो पूरी सरकार को हिला कर रख दे| हमने देखा है कि जब भी सरकारें बदलीं हैं तब ऐसे मुद्दे तेजी से सतह पर आए हैं जिन्होंने पूरे सरकार की इमेज को चकनाचूर कर दिया| 10 साल तक केंद्र में शासन करने वाली कांग्रेस की सरकार गिरी जब भ्रष्टाचार और घोटालों से जुड़े हुए मुद्दे जनता के दिमाग में घर कर गए| यह मुद्दे इस तेजी के साथ चुनावी वातावरण में छा गए| पूरी सरकार घुटनों पर आ गई|