विदेशों में भी हनुमानजी बहुत लोकप्रिय देवता हैं -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

विदेशों में भी हनुमानजी बहुत लोकप्रिय देवता हैं -दिनेश मालवीय ऐसा लोगों की कमी नहीं है, जो यह मानते हैं कि श्रीरामभक्त हनुमान सिर्फ भारत में पूजे जाते हैं. हनुमानजी ऐसे महान देवता हैं जिनकी पूजा-अर्चना अनेक देशों में की जाती है. वह वहाँ उनके भक्तों की संख्या भी बहुत है. यहाँ तक कि जिस लंका का उन्होंने दहन किया था, वहाँ भी उनकी पूजा करने वाले कम नहीं हैं. इसके अलावा, म्यामार, इण्डोनेशिया, बाली, थाईलैंड, कम्बोडिया, नेपाल, लाओस और चीन सहित कई देशों में वह एक लोकप्रिय देवता हैं. इन देशों में रामलीला का भी बहुत प्रचलन है. जहाँ रामलीला होगी वहाँ हनुमानजी तो होंगे ही. बहरहाल, विभिन्न देशों में हनुमानजी को लेकर कुछ बातों में थोड़ी बातें अलग हैं. मिसाल के तौर पर लाओस की रामायण “फलकफालाभ” में हनुमानजी को श्रीराम का पुत्र बताया गया है. भारत से उत्तर ने केवल नेपाल, बल्कि चीन तक में रामायण और हनुमानजी का प्रचार है. चीन में प्रचलित रामायण का नाम “दशरथजातक” है. नेपाल और मॉरिशस में हनुमानजी का स्वरूप भारत जैसा ही है. कुछ वर्ष पहले भोपाल में दसवें विश्व हिन्दी सम्मलेन में मुझे एक सत्र सुनने को मिला. इसमें भारत से जो लोग तत्कालीन ब्रिटिश शासित देशों में गुलाम और बंधुआ मजदूर बनाकर ले जाए गये थे, उनके बारे में विद्वानों ने बहुत उपयोगी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि भारत से जो लोग इन देशों में काम करने गये वे अपने साथ श्रीरामचरितमानस भी आवश्यक रूप से लेकर गये. इन देशों में फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद, सूरीनाम आदि प्रमुख हैं. इसी कारण इन देशों में भी हनुमानजी बहुत लोकप्रिय हैं. इन लोगों का शोषण बहुत होता था औरउन्हें अनेक कष्ट भी उठाने पड़े. गुलामी और उससे उपजी हताशा और निराशा की स्थिति में उन्हें श्रीरामचरितमानस और हनुमानचालीसा से बहुत संबल मिला. यह भक्ति के साथ ही उनके सामूहिक मनोरंजन के भी साधन रहे. वे सामूहिक रामायण पाठ करते थे और कीर्तन भी उनके सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा था. इससे उन्हें अपने दुःख-दर्द भूलने में बहुत मदद मिली. हनुमान भक्ति उन्हें बहुत संबल देती थी. ये लोग उस समय तो गुलाम और बंधुआ मजदूर दे रूप में इन देशों में गये थे और उन्होंने बहुत कष्टपूर्ण जीवन जिया, लेकिन आगे चलकर उनकी नयी पीढ़ियों ने वहाँ अच्छी स्थति प्राप्त कर ली. इसमें उन्हें उन्हें अपने पूर्वजों से मिले भारतीय संस्कारों से बहुत मदद मिली. अब ये स्वतंत्र देश हैं और वहाँ गए भारतीय भी वहाँ के स्वतंत्र नागरिक हैं. कुछ देशों में तो भारतीय मूल के लोग प्रधानमंत्री और अन्य बड़े पदों पर भी रहे हैं. लेकिन इस सब के बाबजूद वे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े हुए हैं. मॉरिशस के गाँव-गाँव में हर घर में लाल रंग की झंडियाँ फहराती हुयी मिलती हैं, जो हनुमानजी की ही पताकाएँ हैं. अनेक स्थानों पर हनुमानजी के विशाल मंदिर हैं. इंडोनेशिया में दसवीं शताब्दी में महाराजाधिराज बलितुंग ने प्राम्बानन गाँव में विराट शिवालय की स्थापना की. इसका शिखर 140 फीट ऊंचा है. इस शिवालय के प्रदक्षिणा पथ में सम्पूर्ण रामायण उत्कीर्ण है. इसने हनुमानजी का अनेक जगह चित्रण हुआ है. एक चित्र में हनुमानजी को सीताजी को श्रीराम की अंगूठी दिखाते हुआ दर्शाया गया है. इस देश में चर्मपुत्तिकाओं की छाया यवनिका पर डालकर दिखाए जाने वाले छाया-नाटकों की परंपरा बहुत लोकप्रिय है. इनमें शुभ्र-वेशधारी हनुमानजी हर आयुवर्ग के लोगों में बहुत लोकप्रिय हैं. उनकी लीलाएं देखकर सभी लोग आह्लादित होते हैं. इंडोनेशिया के काष्ठ्शिल्पों में भी हनुमानजी के दर्शन होते हैं. कम्बोडिया में भी रामायण का व्यापक प्रचार है. यहाँ श्रीराम की कथा “रामकीर्ति” नाम से प्रकाशित हुयी है. इस देश में हनुमानजी हिन्दुओं के घर-घर में विराजमान हैं. थाईलैंड में 13वीं शताब्दी में महाराजा ने थाई भाषा में काव्य लिखकर रामायण को थाई साहित्य का अभिन्न अंग बना दिया. इस देश के अनेक राजाओं ने श्रीरामकथा के थाई रूपांतर किये. वहाँ आज भी हनुमानजी से सम्बंधित प्रसंगों का अक्सर अभिनय किया जाता है. आजकल तो  अमेरिका और यूरोपीय देशों में बहुत बड़ी संख्या में भारतीय हिन्दू जाकर बस गये हैं. वहाँ उन्होंने श्रीराम और हनुमानजी के मंदिर भी बना लिए हैं. वहाँ विधिवत पुजारियों की नियुक्ति कर पूजा-अर्चना की जाती है और कई लोग रामायण तथा हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं. वे लोग वहाँ रहकर भी यदि अपनी सांस्कृतिक जड़ों से पूरी तरह कट नहीं पाए हैं, तो इसमें रामायण की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. इस प्रकार देखते हैं कि हमारे श्रीरामभक्त हनुमान भारत ही नहीं इसकी सीमाओं के पार अनेक देशों में लाखों लोगों की श्रद्धा के केंद्र और आष्टा के संबल बने हुए हैं.