बिहार में जारी रहेगा मतदाता सूची पुनरीक्षण, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछे 3 सवाल, सुनवाई फिर से होगी शुरू


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स्टोरी हाइलाइट्स

बिहार में मतदाता सूची के विशेष रूप से गहन पुनरीक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, कोर्ट ने कहा कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण जारी रहेगा और संवैधानिक संस्था के कामकाज में कोई बाधा नहीं आएगी, कोर्ट ने फैसले के समय को लेकर चुनाव आयोग से सवाल किए, याचिकाकर्ताओं ने मतदाता सूची के पुनरीक्षण की प्रक्रिया में तेज़ी पर सवाल उठाए..!!

सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग को चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के अपने अभियान को जारी रखने की अनुमति दे दी है।बिहार में मतदाता सूची के विशेष रूप से गहन पुनरीक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया है। कोर्ट ने कहा कि बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण जारी रहेगा और हम संवैधानिक संस्था के कामकाज को नहीं रोक सकते।

हालाँकि, सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग से कई सवाल पूछे। कोर्ट ने इस फैसले के समय पर भी सवाल उठाए। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने याचिकाकर्ताओं से भी सवाल पूछे। पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन से कहा कि आप स्वयं बताएँ कि चुनाव आयोग जो कर रहा है उसमें क्या गलत है। इस पर अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि मतदाता सूची के पुनरीक्षण का प्रावधान कानून में मौजूद है और यह प्रक्रिया संक्षिप्त रूप में या पूरी सूची नए सिरे से तैयार करके की जा सकती है।

उन्होंने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा कि अब उन्होंने 'विशेष गहन पुनरीक्षण' नाम से एक नया शब्द गढ़ लिया है। आयोग कह रहा है कि 2003 में भी ऐसा किया गया था, लेकिन उस समय मतदाताओं की संख्या बहुत कम थी। अब बिहार में 7 करोड़ से ज़्यादा मतदाता हैं और पूरी प्रक्रिया बहुत तेज़ी से की जा रही है।

अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय कहते हैं, "...हमारी माँग है कि यह सत्यापन अभियान जारी रहना चाहिए। हमने कहा है कि मतदान मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव एक मौलिक अधिकार है। अगर मतदाता सूची में एक भी रोहिंग्या या एक भी घुसपैठिए का नाम है, तो उसे हटाना ज़रूरी है। जब तक भारत में घुसपैठिए मतदान करते रहेंगे, तब तक इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं माना जा सकता। 

सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। यह सुनवाई 28 जुलाई को होगी। दूसरी ओर, इसमें आधार, मतदाता सूची और राशन कार्ड को भी शामिल करने की माँग की गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर चुनाव आयोग चाहे तो इन तीनों दस्तावेज़ों को स्वीकार कर सकता है। यह चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र है। इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है... चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया है कि वह बिहार चुनाव से पहले यह प्रक्रिया पूरी कर लेगा।"

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल एसए ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह एक राष्ट्रीय प्रथा है और उन्होंने बिहार से इसकी शुरुआत करने का फैसला किया है।

न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि हमारी राय में, प्रथम दृष्टया तीन सवाल हैं-

चुनाव कराने की भारत निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ..

शक्तियों के प्रयोग की प्रक्रिया..

समय सीमा बहुत कम है और नवंबर में समाप्त होगी और अधिसूचना जल्द ही जारी हो जाएगी।

हालांकि, न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि मामले की सुनवाई ज़रूरी है। इसे 28 जुलाई को उपयुक्त अदालत में सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक सप्ताह के भीतर, 21 जुलाई तक या उससे पहले, प्रति-आवेदन दायर किया जाना चाहिए और 28 जुलाई से पहले जवाब दाखिल किया जाना चाहिए। इस पर, अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि कानून में मतदाता सूची के पुनरीक्षण का प्रावधान है और यह प्रक्रिया संक्षिप्त रूप में या पूरी सूची तैयार करके की जा सकती है।

चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि अब उन्होंने 'विशेष गहन पुनरीक्षण' नाम से एक नया शब्द गढ़ा है। आयोग का कहना है कि 2003 में भी ऐसा ही किया गया था, लेकिन उस समय मतदाताओं की संख्या बहुत कम थी। अब बिहार में 7 करोड़ से ज़्यादा मतदाता हैं और पूरी प्रक्रिया बहुत तेज़ी से चल रही है। वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल एस. ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह एक राष्ट्रीय प्रथा है और उन्होंने बिहार से इसकी शुरुआत करने का फैसला किया है।