स्टोरी हाइलाइट्स
भारत के शास्त्रों में दानवों और राक्षसों की कहानिया भरी पड़ी है. दूसरे अनेक देशों में भी इस तरह के चरित्रों के कहानी-किस्सों की..
दानव कौन और कैसे होते हैं, क्या वे आज भी हैं.. दिनेश मालवीय
भारत के शास्त्रों में दानवों और राक्षसों की कहानिया भरी पड़ी है. दूसरे अनेक देशों में भी इस तरह के चरित्रों के कहानी-किस्सों की कोई कमी नहीं है. इनके नाम अलग-अलग हैं ,लेकिन इनके गुण (दुर्गुण) एक जैसे हैं. हमारे शास्त्रों में राक्षसों या दानवों का हुलिया बहुत भयावह बताया गया है. उनके सर पर सींग होना बताया गया. यह भी बताया गया कि उनके दांत बहुत बड़े, रंग काला स्याह और चेहरा बहुत डरावना होता था.
लेकिन क्या सचमुच ऐसा होता था ? पुराने समय में साहित्य मुख्य रूप में काव्य,कथाओं और रूपकों में लिखा गया था. उस समय विजुअल मीडिया तो था नहीं, इसलिए शब्द चित्रंण ही इस प्रकार किया जाता था कि पाठक के सामने चित्र जैसा खिंच जाए. इसके लिए अलंकारों, अतिरंजना, अभिव्यक्ति में अनूठेपन, प्रतीकों, उपमाओं और बिम्बों का सहारा लिया गया. इनके बिना विषय को जीवन्तता से समझाना बहुत मुश्किल था. विषय को अधिक प्रभावी बनाने के लिए ही यह सब होता था. लेखन विधा में आज भी कमोवेश ऐसा ही है. राक्षसों का ऐसा रूप उनकी वीभत्सता और अमानकीय प्रवृत्तियों को अधिक प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने के लिए ही किया गया. इस बात की पुष्टि इस तथ्य से होती है कि, आज ऐसे लोग बहुत बड़ी संख्या में हैं, जो ऊपर से देखने में बिल्कुल सामान्य मनुष्य लगते हैं, लेकिन उनके काम दानवों को भी शर्मिंदा करने वाले होते हैं. क्या बच्चियों के साथ दुराचार कर उन्हें घोर यातनाएं देकर मारने वालों के सिर पर सींग होते हैं ? क्या सरेआम आम मासूमों का क़त्ल करने वालों के सिर पर सींग होते हैं ? क्या बहुओं को ज़िन्दा जालाने या यातना देने वालों के सिर पर सींग होते हैं ? क्या बेटियों को गर्भ में ही मार डालने वालों के सींग होते हैं ? क्या और भी वीभत्स कर्म करने वालों के सिर पर सींग होते हैं ?
क्या ऐसे लोगों के सर पर सींग होते हैं जो चाहते हैं की सारी दुनिया उनके अनुसार चले, उन्ही की विचारधारा को माने और विश्व की सारी संपदा पर सिर्फ उनका एकाधिकार हो. ये लोग भी देखने में बिल्कुल वैसे ही दीखते हैं, जैसे मानवीय गुणों से परिपूएर्ण दयालु और भले लोग. वीभत्स से वीभत्स और घोर पाप कर्म करने वाले लोग भी देखने में दूसरे लोगों की तरह ही होते हैं. तो फिर सवाल यह उठता है कि दानव या राक्षस कौन होते हैं ? इसका जवाब भी हमारे शास्त्रों ही है. मनुष्य के भीतर दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं- दैवीय और आसुरी. आसुरी प्रवृत्ति को कुछ धर्मों में शैतान का रूपक भी दिया गया है. कहा गया है कि इंसान के मन में शैतान भी होता है, जो उसे बुरे काम करने की ओर धकेलता था. कुछ लोग इसे हैवान कहते हैं, तो कुछ लोग दूसरे नामों से पुकारते हैं. मन में जब जो प्रवृत्ति प्रबल हो जाती है, मनुष्य उसी के अनुसार व्यवहार करने लगता है. ग्रंथों में मनुष्य के भीतर जो दानवीय प्रवृत्तियाँ हैं, उन्हें ही उपरोक्त प्रकार से भयानक रूप में प्रस्तुत किया गया है.
आजकल इलेक्ट्रोनिक मीडिया, फिल्मों आदि ने इस प्रकार के लोगों की भयावहता को और बढ़ा - चढ़ा कर प्रस्तुत कर दिया. ये तो इस हद तक जाते हैं कि अनेक सीरियल्स में राक्षस भी कार्टून दिखाई देते हैं. यहाँ तक कि अनेक सीरियल्स में देवताओं औए ऋषि-मुनियों की वेशभूषा भी हास्यास्पद होती है. यह सही है कि संसार में अनेक प्रकार की प्रजातियाँ हैं, जिनमें नाग,किन्नर, गन्धर्व, देव, दानव आदि शामिल हैं. ये अब देखने को नहीं मिलते. कहीं अदृश्य रूप से उनका अस्तित्व हो तो और बात है. हो सकता है,दानव प्रजाति के लोग देखने में भयंकर दिखाई देते रहे हों. आज भी संसार में अनेक प्रजातियाँ ऎसी हैं, जो हमारे शास्त्रों में बताये गये दानवों जैसी ही दिखती हैं. लेकिन ये लोग दानव नहीं होते. सिर्फ उनके शरीर की बनावट ऐसी होती है. वे भी बहुत सभ्य, शिष्ट और व्यवहार में कुशल होते हैं.
वास्तव में दानव या राक्षस वे लोग होते हैं, जो इस दुनिया को सिर्फ अपनी बपौती मानते हैं. जो चाहते हैं, कि सभी लोग उनकी तरह सोचें, वे जो भी करें उसे सभी लोग सही कहें, उनके विपरीत सोचने वालों को नष्ट करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार हैं, संसार के सभी सुख-साधनों और संसाधनों पर केवल उनका अधिकार हो, वे जिसे चाहें, जो दे दें और जिससे जब जो चाहें छीन लें. दुनिया में केवल उनकी ही बात मानी जाए, सब लोग उनसे डरें और हर चीज पर सिर उनका नियंत्रण हो.
आधुनिक विकसित देश यह कहते हैं कि हम बहुत सभ्य और श्रेष्ठ हैं, लेकिन सच पूछिए तो वे भी बहुत क्रूर और अधिकारवादी हैं. उनमें दुनिया की बादशाहत की चाह है. इसके चलते ही उनके बीच बहुत विनाशक हथियारों की होड़ लगी है. वे पूरी दुनिया पर अपना वर्चस्व क़ायम करना चाहते हैं. वे बहुत घातक हथियार बनाकर दुनिया भर के देशों को बेचते हैं. कुछ देश और लोग ऐसा धर्म के नाम पर भी करना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि सिर्फ उनका धर्म, उनकी सभ्यता, उनकी संस्कृति और उनकी विचारधारा जीवित रहे और बाक़ी सब या तो ख़त्म हो जाएँ या उनके अधीन हो जाएँ. जो लोग उनकी बात नहीं मानेंगे वे उन्हें नष्ट कर देंगे.
कोई चाहता है कि उसकी फौजी ताक़त से दुनिया उनके नियंत्रण में आ जाए. जो लोग दूसरों को अपने पीछे लाने के लिए शांतिप्रिय कहे जाने वाले तरीके अपनाते हैं, वे भी प्रकारांतर से इसी प्रवृत्ति के शिकार हैं. वे यह क्यों नहीं सोचते कि दुनिया में सबको अपनी तरह से जीने और सोचने का अधिकार है. यह कैसे मुमकिन है कि पूरी दुनिया एक ही विचारधारा को माने, एक ही धर्म का पालन करे, सबकी एक ही संस्कृति हो, किसीको भी स्वतंत्र रूप से सोचने का अधिकार न हो, सबकुछ यंत्रवत हो जाए. यह न कभी मुमकिन हुआ है और न होगा.
मानवता के इतिहास में बड़े-बड़े खूंख्वार लोग हुए, जिन्होंने दुनिया को अपने नियंत्रण में करने और अपना वर्चस्व स्थापित करने की जिद और सनक में लाखों लोगों की हत्याएं करवा दीं. हिटलर ने करीब साठ लाख लोगों को मरवा दिया. चंगेज़ खान, तेमूर लंग, नादिर शाह जैसे लोगों के सिर पर तो करोड़ों लोगों को मरवाने का पाप है. आज भी अनेक ऐसे लोग मौजूद हैं. उनके अपने संगठन भी हैं. वे हर चीज की अपने तरीके से व्याख्या करते हैं और केवल ख़ुद को ही सच मानते हैं. अनेक सनकी तानाशाह पहले भी हो चुके हैं और आज भी हैं.
कुल मिलकर दानव और राक्षस ऊपर से देखने में आप-हम जैसे ही हैं. हो सकता है पहले कभी उनकी बनावट में कोई फर्क रहा हो, लेकिन आज के दानव तो बाकायदा दूसरों की तरह ही दीखते हैं. कुछ बहुत सभी दीखते है तो कुछ की वेशभूषा अलग भी होती है. शास्त्रों और दूसरी किताबों में उनका जो चित्रण है, वह सिर्फ उनकी क्रूरता और भयंकरता को दिखाने के लिए ही था. लेकिन न आपने उन्हें देखा और न हमने. बहरहाल, आज के दानव तो हमारे सामने ही हैं.