जातिवादी पार्टियों के रास्ते पर चलते हुए कांग्रेस ने जातिगत जनगणना की मांग और समर्थन कर लोकतंत्र के साथ न केवल बेईमानी की है बल्कि पार्टी ने ऐतिहासिक भूल की है. कांग्रेस के लंबे इतिहास में राम जन्मभूमि का राजीव गांधी के कार्यकाल में ताला खुलना बड़ी भूल साबित हुई. कांग्रेस नेता राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने के लिए जन्मभूमि का ताला खोले जाने की शुरुआत का श्रेय लेने की बात अभी भी करते हैं. अयोध्या का राम जन्मभूमि आंदोलन भाजपा के उत्थान तो कांग्रेस के पतन की कहानी कहता है.
नारी शक्ति वंदन विधेयक का समर्थन लेकिन ओबीसी आरक्षण और जातिगत जनगणना की मांग करके कांग्रेस ने वैसी ही गलती की है जैसा दोहरा रवैया जन्मभूमि आंदोलन कानूनी संघर्ष और रामसेतु पर अपनाया था. संसद और विधानसभाओं में ओबीसी आरक्षण और जातिगत जनगणना का समर्थन कांग्रेस करती तो अब तक यह दोनों व्यवस्थाएं देश में लागू हो चुकी होतीं.
कांग्रेस का वर्तमान और भविष्य उसके अतीत के बोझ के नीचे इतना दबा हुआ है कि वह देश में जाति-धर्म, अगड़े-पिछड़े, हिंदू-मुसलमान, एससी- एसटी, किसी भी वर्ग में एक छत्र राज्य करने का विश्वास हासिल नहीं कर सकती. आजाद भारत में कांग्रेस ने अपनी सरकारों में वैचारिक दोहरेपन का जो खेल खेला है उसके कारण किसी भी वर्ग में कांग्रेस की विश्वसनीयता असंदिग्ध नहीं है.
भारत की गुलामी के पीछे ‘डिवाइड एंड रूल’ की अंग्रेज और मुगल मानसिकता, कांग्रेस की जातिगत जनगणना के पीछे भी नज़र आती है. जातिगत जनगणना केवल ओबीसी के लिए की जा रही है. ओबीसी आज भारतीय राजनीति में अगड़े समुदाय का भी नेतृत्व कर रहे हैं. देश के प्रधानमंत्री पिछड़े वर्ग से आते हैं. अधिकांश राज्यों की सरकारों का नेतृत्व पिछड़े वर्ग के नेता ही कर रहे हैं. अगड़ी जातियों की राजनीतिक भूमिका तो अब नेतृत्वकर्ता की नहीं बल्कि दूसरे और तीसरे स्थान की बची है.
जातिगत जनगणना की मांग के पीछे सनातन धर्म को मिटाने की भावना छिपी दिखाई देती है. सनातन के विरुद्ध तमिलनाडु से ‘उदय तूफान’ अचानक नहीं है. इसके पीछे तुष्टीकरण और जातिगत विभाजन से राजनीतिक बहुमत हासिल करने और सनातन को नुकसान पहुंचाने की भावना काम कर रही है. सनातन को गाली देने वाले वक्तव्य का कांग्रेस ने विरोध नहीं किया.
कांग्रेस धर्म से तो समानता की कामना करती है लेकिन कानून में समानता की परिकल्पना का विरोध करती है. सनातन धर्म को तो छुआछूत और ऊंच-नीच की बुराई पर असमानता का धर्म स्थापित करने में कांग्रेस को गुरेज नहीं है लेकिन एक ही देश में दो कानूनों से जो असमानता पैदा हो रही है उससे कांग्रेस को कोई दिक्कत नहीं है. समान नागरिक संहिता की सनातन सोच कांग्रेस को नापसंद है.
महिला आरक्षण के मामले में समर्थन करके कांग्रेस को जो थोड़ा बहुत राजनीतिक लाभ हो सकता था उसे ओबीसी आरक्षण और जातिगत जनगणना की मांग करके कांग्रेस ने अपने हाथों से नुकसान में बदल दिया है. कांग्रेस द्वारा 2010 में लाए विधेयक में ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था नहीं थी. अब जब महिला आरक्षण लागू होने की स्थिति में आ गया है तब ओबीसी आरक्षण की कांग्रेस की मांग का संदेश महिला आरक्षण के विरोध में जा रहा है.
जिन महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिलेगा उनको यह संदेश जा रहा है कि कांग्रेस ओबीसी आरक्षण की मांग के बहाने इसको अटकाना चाहती है. जहां तक ओबीसी वर्ग की महिलाओं का सवाल है तो ओबीसी का जो विश्वास बीजेपी पर बना हुआ है उसे तोड़ना कांग्रेस के लिए संभव नहीं है. संसद और विधानसभाओं में आरक्षण की कांग्रेस की माँग आदिवासी और दलितों के बीच सही संदेश नहीं देगी.
जातिगत जनगणना अगर की जाती है तो क्या केवल ओबीसी जातियों की गणना की जाएगी? मुस्लिम समुदाय में जो जाति प्रथा है क्या उनकी जाति वर्ग में गणना नहीं की जायेगी? आदिवासी और दलित वर्गों में भी जाति व्यवस्था है. क्या यह व्यवस्था जातिगत जनगणना में नहीं आएगी? कौन सा समुदाय है जिसमें कई जातियां नहीं है? केवल हिंदू समुदाय की जातियों को ही क्या जनगणना के नाम पर विभाजित करने की कोशिश सनातन धर्म के विरुद्ध षड्यंत्र नहीं हैं? जातिगत जनगणना से किसको लाभ होगा?
ओबीसी रिजर्वेशन में क्रीमी लेयर की व्यवस्था है. क्रीमी लेयर के नीचे ओबीसी के लोगों को आरक्षण का लाभ उपलब्ध है. जातिगत जनगणना के नतीजों से भी क्रीमी लेयर के ऊपर आरक्षण की व्यवस्था तो नहीं बदल जाएगी? जातिवाद का जहर जरूर समाज में नए सिरे से फैल जाएगा जो कांग्रेस की राजनीतिक बहुमत की कामना के अलावा किसी काम नहीं आएगा.
जातिवादी पार्टियां कांग्रेस को जातियों का नेतृत्व करने का मौका नहीं देंगी. आरजेडी, सपा, जेडीयू और अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ उनका गठजोड़ तभी तक चलेगा जब तक इन पार्टियों का जातिगत जनाधार बना हुआ है. उस जनाधार में सेंध लगाने की कांग्रेस की कोई भी कोशिश गठबंधन को धराशायी कर देगी. अब तो ऐसा लगने लगा है कि जातिवादी पार्टियों से आगे निकलकर जातिगत जनगणना और आरक्षण की 50% की सीमा बढ़ाने को कांग्रेस अपना बड़ा राजनीतिक एजेंडा बनाने की तरफ बढ़ रही है. भले ही कांग्रेस ने ओबीसी को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने का काम नहीं किया है.
भारत के संसदीय लोकतंत्र में पहली बार सनातन धर्म के विचार और प्रतीकों को सरकारी स्तर पर प्रोत्साहित और विकसित करने का ऐतिहासिक काम किया जा रहा है. सबसे सुखद स्थिति ये है कि सनातन धर्म की ध्वज पताका लहराने में ओबीसी समुदाय के नेताओं का सबसे बड़ा हाथ दिखाई पड़ रहा है. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से शुरू होकर महाकाल लोक और सनातन धर्म के सभी तीर्थ स्थलों पर विकास की गंगा बहाने का काम ओबीसी समाज से आने वाले पीएम नरेंद्र मोदी ही कर रहे हैं.
मध्यप्रदेश में सनातन धर्म के प्रणेता आदि शंकराचार्य की प्रेरणा और हर एक में ब्रह्म की एकात्म भावना की विस्तार के एतिहासिक काम को ओबीसी लीडर शिवराज सिंह चौहान ही अंजाम दे रहे हैं. सनातन धर्म के सद्भाव और प्रयास से जातियों का जहर मिट रहा है. सनातन धर्म का विस्तार और विकास अगड़ी जातियों से ज्यादा पिछड़ी जातियों के सनातनधर्मियों ने अपने जीवन का लक्ष्य बनाया हुआ है. इसी भावना को तोड़ना और कमजोर करना कांग्रेस और जातिवादी राजनीतिक दलों की जातिगत जनगणना के पीछे की भावनाएँ हैं.
जातिगत जनगणना की मांग कांग्रेस के राजनीतिक पतन का कारण बनेगी. जातिवाद धर्म और आस्था में समा गया है. अब कांग्रेस की राजनीति ने उसे ही भाजपा के लिए फायदेमंद और खुद के लिए नुकसानदेह मानते हुए जातिगत जनगणना का खेल शुरू किया है. कांग्रेस का यह खेल जातिवादी राजनीतिक दलों को पसंद नहीं आएगा. अभी भले ही वह कांग्रेस के साथ खड़े हों लेकिन जैसे ही कांग्रेस के स्टैंड के कारण उनके जातीय जनाधार प्रभावित होते दिखेंगे सब के सब एक साथ छिटक कर कांग्रेस से दूर हो जाएंगे.
विचारधारा पर कांग्रेस लकवाग्रस्त हो चुकी है. कांग्रेस के लिए किसी भी वर्ग का विश्वास जीतना उसकी अतीत की कारगुजारियों के कारण संभव नहीं हो सकता. कांग्रेस केवल जोड़-तोड़ के जरिए गठबंधन और विभाजनकारी सोच को अपना राजनीतिक वजूद बढ़ाने के लिए उपयोग करने को मजबूर है. देश में राजनीतिक समुद्र मंथन चल रहा है. जाति धर्म और विभाजनकारी राजनीति का जहर खुलकर सामने आने लगा है. यह मंथन भारतीय लोकतंत्र के अमृत को न केवल पहचानेगा बल्कि सही रास्ते को ही अमरत्व देगा.